बीकानेर. भीष्म द्वादशी पर भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विधान बताया गया है. जो कोई भी व्यक्ति इस दिन सच्ची श्रद्धा और पूरे विधि विधान से पूजा करता है उसके जीवन से सभी कष्ट और परेशानियां दूर होती हैं. आज दो फरवरी दिन गुरुवार को भीष्म द्वादशी का व्रत और पूजन किया जाएगा. भगवान ने यह व्रत भीष्म पितामह को बताया था और उन्होंने इस व्रत का पालन किया था, जिससे इसका नाम भीष्म द्वादशी पड़ा.
यह व्रत एकादशी के ठीक दूसरे दिन द्वादशी को किया जाता है. यह व्रत समस्त बीमारियों को मिटाता है. आज के दिन उपवास रखने से समस्त पापों का नाश हो जाता है. साथ ही मनुष्य को अमोघ फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक ग्रंथों में माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को श्राद्ध और द्वादशी के दिन भीष्म पितामह की पूजा करने का विधान है. इससे घर में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है. ऐसी मान्यता है कि द्वादशी तिथि को भीष्म पितामह की पूजा करने से पितृ प्रसन्न होकर साधक को सुख और सौभाग्य प्रदान करते हैं.
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इच्छा अनुसार निर्णय- जब भीष्म पितामह घायल हुए, तो उस समय सूर्य दक्षिणायन था. इस वजह से भीष्म पितामह ने प्राण नहीं त्यागा. बाण शैया पर आराम कर सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की. जब सूर्य उत्तरायण हुआ, तो भीष्म पितामह ने अष्टमी तिथि को अपना प्राण त्यागा. इसके चार दिन बाद द्वादशी तिथि को भीष्म पितामह की पूजा-उपासना की गई. कालांतर से माघ माह में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म पितामह की पूजा उपासना की जाती है.
भीष्म द्वादशी पूजा विधि- भीष्म द्वादशी के दिन इस विधि से पूजा करना कल्याणकारी माना जाता है. इस दिन भीष्म की कथा सुनी जाती है. मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा पूर्वक विधि विधान से पूजा करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. बीमारियां दूर होती हैं और पितृ दोष से छुटकारा भी मिलता है. भीष्म द्वादशी के दिन स्नान ध्यान के बाद भगवान विष्णु के स्वरूप श्रीकृष्ण की पूजा करें. भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर भीष्म पितामह के निमित्त तर्पण करें. खुद तर्पण नहीं कर सकते तो किसी जानकार से भी तर्पण करा सकते हैं. ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराएं. इस दिन तिल का दान भी करना चाहिए.