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SPECIAL : एक ताने से बसा शहर है बीकानेर, पूरा किया 534 साल का सफर - When was the establishment of Bikaner

अपनी ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत को समेटे और इतिहास के कई पन्नों में अपनी मौजूदगी का अहसास कराता शहर बीकानेर आज 534 साल का हो गया. 5 शताब्दी बाद भी आज एक युवा की भांति अनवरत विकास के लिए तेज गति से भाग रहा है. देखिए बीकानेर स्थापना दिवस पर यह खास रिपोर्ट...

बीकानेर का स्थापना दिवस, Foundation Day of Bikaner
बीकानेर ने पूरे कर लिए 534 साल का सफर

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Published : May 13, 2021, 1:42 PM IST

Updated : May 13, 2021, 2:19 PM IST

बीकानेर.मैं बीकानेर हूं. जोधपुर से नया शहर बसाने निकले राव बीकाजी का बसाया शहर बीकानेर. आज बीकानेर अपनी स्थापना का 534वां दिवस मना रहा है. इन 534 सालों के इतिहास में कई सुनहरे पन्ने बीकानेर की यादों में आज भी ताजा है. विश्व विख्यात मां करणी के आशीर्वाद से राव बीका ने इस शहर की स्थापना की नींव डाली थी और अनवरत विकास के पथ पर बीकानेर आगे बढ़ता जा रहा है.

बीकानेर ने पूरे कर लिए 534 साल का सफर

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देश की विविधता अनेकता और सांस्कृतिक छटा के एक नायाब उदाहरण के रूप में बीकानेर की पहचान होने के चलते देश और विदेश से लोग स्थापत्य कला के नायाब नमूने के रूप में स्थापित जूनागढ़ हो या फिर नक्काशेदार कारीगरी का जीता जागता उदाहरण बनी हजारों हवेलियों को निहारने के लिए आते हैं. यह सब आज भी रियासत के उस वक्त से संपन्न होने का गवाह है. चाहे बात तीज त्योहार की हो या फिर दुनिया भर में बीकानेर की पहचान बताने की. हर वक्त बदलते समय के साथ इस शहर का जिक्र होता रहता है.

स्थापना दिवस पर चंदा उड़ाने की परंपरा आज भी जीवित है

बदलते समय के साथ आधुनिक युग में खानपान के लिए भी बीकानेर को पूरी दुनिया में पहचान मिली है. यहां के लोगों की बोली में जो मिठास है वह बीकानेरी रसगुल्ले की मिठास जैसी है और किसी भी त्योहार पर रसगुल्ला बेहद खास माना जाता है. वैसे भी बीकानेरी नमकीन और रसगुल्ले विश्व प्रसिद्ध है.

राव बिकाजी

कब हुई थी स्थापनाः

विक्रम संवत 1545 वैशाख द्वितीया शनिवार को बीकानेर की स्थापना राव बीका ने एक चन्दा उड़ाकर की थी. दरअसल जोधपुर के दरबार में बीकानेर शहर की स्थापना से जुड़ी रोचक बात है. एक ताने के चलते यह शहर बसा दिया गया था. राव बीका अपने चाचा से जोधपुर दरबार में बैठकर किसी बात पर चर्चा कर रहे थे और इसी दौरान जोधपुर के महाराजा ने उन्हें ताना देते हुए कहा कि चाचा भतीजा इतनी गंभीर चर्चा कर रहे हो क्या कोई नया शहर बसा रहे हो. बस यही बात राव बीकाजी के मन मे बैठ गई और उन्होंने रास्ता तय किया और तब जांगल प्रदेश पहुंचे और मां करणी के आशीर्वाद से बीकानेर की स्थापना हुई, और तभी से कहा जाने लगा कि

"पन्द्रह सौ पैंतालवै सुद वैसाख सुमेर

थावर बीज थरपियो बीको बीकानेर"

इसका मतलब है कि सन 1545 में वैशाख महीने में शनिवार के दिन राव बीकाजी ने बीकानेर की स्थापना की.

बीकानेरी भुजिया

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534 साल भी प्रेम और सद्भावनाः

बीकानरे की स्थापना के 534 साल बाद भी मेरे शहर के लोग बड़े प्रेम प्यार से रहते हैं और सभी धर्मों का आपस में गहरा रिश्ता है और यही कारण है कि कभी भी यहां के किसी भी धर्म के व्यक्ति की दूसरे धर्म के किसी भी व्यक्ति से कोई विवाद नहीं हुआ. बीकानेर के 534 साल की इस यात्रा में यह भी एक बड़ी बात है. तभी तो बीकानेर इतिहास की गाथा लिखने वाले लोग कहते हैं कि

"कण-कण में खुद खुदा बिराजे...

हर हिवडे में राम रे...

धोरा री इण धरती रो...

शहर बीकाणो नाम रे"...

आज भी निभाते हैं चंदा उड़ाने की परंपराः

आज बीकानेर की स्थापना का 534वां साल है और आज भी लोग चंदा उड़ाने की उस परंपरा को बड़ी शिद्दत के साथ निभाते हैं जिस चंदे को उड़ा कर बीकानेर की सीमाओं को तय किया गया था. उस परंपरा को आज भी निभाया जाता है और चिलचिलाती धूप में भी दो दिन तक लोग छतों पर खड़े रहकर पतंग उड़ाते हैं. घरों में भी धान का खिचड़ा बनाया जाता है.

बीकानेरी रसगुल्ले

हालांकि पिछले साल की तरह इस साल भी बीकानेर की स्थापना को लेकर कोई बड़े आयोजन सार्वजनिक रूप से नहीं किए जाएंगे क्योंकि महामारी की चपेट में पूरी दुनिया है और शहर के लोग भी स्वस्थ रहें इसलिए सबने मिलकर इस बार आयोजनों पर रोक लगाई है, लेकिन घरों में रहकर सब अपनी खुशी का इजहार जरूर करेंगे.

Last Updated : May 13, 2021, 2:19 PM IST

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