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भीलवाड़ा: हर्षोल्लास से मनाया जा रहा 254वां फूलडोल महोत्सव, 300 साल से चली आ रही परंपरा

भीलवाड़ा में फूलडोल महोत्सव आयोजित किया गया. जिसमें भाग लेने के लिए देश और विदेश से भारी संख्या में भक्तजन भीलवाड़ा पहुंच रहे हैं.

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भीलवाड़ा में फूलडोल महोत्सव का आयोजन

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Published : Mar 15, 2020, 12:51 PM IST

भीलवाड़ा.धर्म और अध्यात्म की नगरी भीलवाड़ा के शाहपुरा कस्बे में स्थित अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय की पीठाधीश्वर में फूलडोल महोत्सव मनाया जा रहा है. जिसमें शमिल होने के लिए देश और विदेश से भक्तजन पहुंच रहे हैं. वहीं संतों की मांग है कि इस मेले को पूर्व में राज्य मेला घोषित किया गया था. जिसे सरकार धरातल पर क्रियान्वित करें.

बता दें कि विक्रम संवत 1822 से अनवरत रूप से हर होली पर रामस्नेही संप्रदाय का वार्षिकोत्सव फूलडोल महोत्सव आयोजित किया जाता है. जो पांच दिन तक चलता है. इस महोत्सव में डोलर की चरचराहट और लोकधुनों पर लोक लहरियां भी सुनाई जाती है. वहीं महोत्सव के समापन पर पीठाधीश्वर जगतगुरू आचार्य रामदयालजी महाराज चार्तुमास की घोषणा करते हैं.

भीलवाड़ा में फूलडोल महोत्सव का आयोजन

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अध्यात्म के रंग में सरोबार शाहपुरा
शाहपुरा में यह परंपरा लगभग 300 साल से चली आ रही है और यह संप्रदाय का 254 वां फूलडोल महोत्सव है. इस दौरान शाहपुरा अध्यात्म के रंग में सरोबार हो जाता है. लोग हर तरफ राम का नाम का जपते है. वहीं होलिका दहन के पश्चात रामस्नेही संप्रदाय के संत आचार्य श्री के संग रामनिवास धाम से बाहर निकलते है और रात को जागरण करते है. वहीं श्रद्धालुओं स्तंभजी के दर्शनों के लिए सुबह से ही कतारों में लगे रहते हैं.

फूलडोल महोत्सव की शुरुआत
रामस्नेही संप्रदाय के महाप्रभु स्वामी रामचरणजी महाराज ने संवत 1817 में भीलवाड़ा में मियाचंद जी की बावड़ी की गुफा में भजन और राम नाम का सुमिरन किया था. इस दौरान उनके कई शिष्य बने. जिन्हें रामस्नेही पुकारा जाने लगा. यहीं से रामस्नेही संप्रदाय का उद्भव हुआ. संवत 1822 में भीलवाड़ा में रामद्वारा का निर्माण प्रांरभ हुआ. शिष्य देवकरण और कुशलराम नवलराम ने होली पर प्रहलाद कथा का अनुरोध किया. जिसके बाद इस आयोजन का नाम फूलडोल पड़ा. जिसके बाद से यह परंपरा निरंतर चल रही है. शाहपुरा राजा के अनुरोध पर स्वामीजी संवत 1826 में शाहपुरा पहुंचे. जहां राजा भीमसिंह और उनकी माता ने स्वामीजी का शिष्यत्व ग्रहण किया.

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