भीलवाड़ा.विश्वव्यापी कोरोना महामारी से समाज का हर तबका प्रभावित है, लेकिन गरीब तबके पर इसकी मार अधिक पड़ रही है. इनमें भीलवाड़ा के बागरिया समाज के लोग भी शामिल हैं जो झाड़ू बनाकर विभिन्न राज्यों में बेचते हैं. भीलवाड़ा के बागरिया जाति का काम कोरोना की वजह से ठप है. वहीं इन कारीगरों में इस बात की भी नाराजगी है कि सरकार ने इस मुश्किल समय में उनकी सहायता तक नहीं की.
कोरोना ने बागरिया जाति के सामने खड़ी की मुश्किलें प्रदेश में सबसे पहले कोरोना की शुरुआत भीलवाड़ा जिले से हुई. जिले में कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में सारे कामकाज बंद हो गए. वहीं अनलॉक के बाद भी कई समाज के लोगों को संघर्ष करना पड़ रहा है. ईटीवी भारत की टीम भीलवाड़ा जिले के NH-79 पर पहुंची, जहां बातचीत के दौरान झाड़ू बनाने वाले बागरिया जाति के लोगों का दर्द छलक पड़ा.
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इन लोगों का कहना है कि कोरोना ने कमर तोड़ दी है. हमारे पास ना तो जमीन है, ना रहने को मकान. हम झुग्गी-झोपड़ी में रहकर झाड़ू बनाकर ही परिवार का पेट पालते हैं. इस कोरोना काल में हमारे सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.
अधिकतर जम्मू कश्मीर में जाते हैं झाड़ू बेचने
जिले के शाहपुरा, मांडल और हुरडा पंचायत समिति क्षेत्र के एक दर्जन गांव में बागरिया जाति के लोग निवास करते हैं. जिले में दो हजार बागरिया जाति के परिवार हैं. ये लोग खजूर के पेड़ से टहनी तोड़कर लाते हैं और झाड़ू बनाते हैं.
कोरोना के कारण नहीं बिक रही झाड़ू ये कारीगर राजस्थान के साथ अन्य राज्यों में भी झाड़ू बेचने जाते हैं. अधिकतर ये लोग जम्मू कश्मीर में झाड़ू बेचने जाते हैं लेकिन कोरोना संक्रमण को देखते हुए इन्हें घरों पर ही रहने को मजबूर होना पड़ रहा है.
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इस काम से जुड़े सांवरलाल का कहना है कि चार महीने से घर पर बैठे थे. जिससे हम झाड़ू बेचने भी कहीं नहीं जा सके. सांवरलाल ने दु:ख व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार ने कोरोना के समय हमारी सहायता भी नहीं की.
श्रमिकों का कहना मुश्किल से हो रहा गुजारा वहीं सुगना देवी कहती हैं कि इस समय हम बहुत परेशान हैं. अभी झाड़ू की बिक्री नहीं हो रही है. अन्य प्रदेश में जाना चाह रहे हैं लेकिन वहां जाने के लिए भी साधन नहीं मिलने से दिक्कत आ रही है. ऐसे में घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है.
एक दो झाड़ू बिकती है तब होता एक वक्त के खाने का जुगाड़ कामगार युवा नारायण का कहना है कि हमारा परिवार चलाना बहुत जरूरी है. परिवार चलाने के लिए हम झाड़ू बेचने का काम करते हैं. वहीं हफ्ते भर में में तीन-चार झाड़ू ही बिकती है. ऐसे में कुछ ही सामान घर चलाने के लिए जुगाड़ हो पाता है.