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विश्व पर्यटन दिवस : दुनिया भर में पक्षियों का स्वर्ग है राजस्थान का घना....118 साल पुराना है इतिहास

राजस्थान के भरतपुर में स्थित केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान दुनिया भर में पक्षियों के स्वर्ग के रूप में पहचाना जाता है. लेकिन वर्षों पहले कहते हैं यह स्थान पक्षियों का स्वर्ग नहीं बल्कि शिकारगाह हुआ करता था. यहां दुनिया भर से करीब 400 प्रजाति के हजारों पक्षी प्रवास पर हर साल आते हैं...

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राजस्थान का घना दुनिया भर में पक्षियों का स्वर्ग कहा जाता है

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Published : Sep 27, 2020, 7:10 PM IST

Updated : Sep 27, 2020, 8:04 PM IST

भरतपुर.केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान दुनिया भर में पक्षियों के स्वर्ग के रूप में पहचाना जाता है लेकिन वर्षों पहले यह स्थान पक्षियों की एक शिकारगाह था. जहां रियासतकाल में राजा-महाराजा और अंग्रेज हर दिन हजारों बत्तखों का शिकार करते थे. धीरे धीरे समय गुजरता गया और यह शिकारगाह पक्षियों के लिए सबसे सुरक्षित स्थान बन गया. अब हर वर्ष यहां दुनियाभर से करीब 400 प्रजाति के हजारों पक्षी प्रवास पर आते हैं. इन पक्षियों की अठखेलियां देखने के लिए भी विश्वभर से लाखों पर्यटक यहां पहुंचते हैं.

राजस्थान का घना दुनिया भर में पक्षियों का स्वर्ग कहा जाता है
ऐसे हुई घना की उत्पत्ति
केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान के निदेशक मोहित गुप्ता कहते हैं कि यह क्षेत्र शुरू में एक निचला क्षेत्र था. यह मौसमी बाढ़ और ऐतिहासिक रूप से यमुना नदी के बाढ़ प्रभावित तटीय क्षेत्र का हिस्सा था. 18वीं शताब्दी में भरतपुर राज्य के शासक महाराजा सूरजमल ने अजान बांध बनवाया जोकि 3270 हेक्टेयर में फैला हुआ था. बांध के दो उद्देश्य थे एक तो बाढ़ के पानी को रोकना और दूसरा पानी को खेती के काम में लेना. सन 1850 से 1899 के दौरान गुजरात में मोर्वी रियासत के प्रशासक हरभामजी ने इस क्षेत्र में पानी के नियंत्रण के लिए नहरों और बांधों की प्रणाली शुरू कर इसमें महत्वपूर्ण संशोधन किया. ऐसा इस क्षेत्र को बत्तखों के आखेट और गांवों के पशुओं के लिए चारागाह उपलब्ध कराने के उद्देश्य से किया गया था.
उद्यान में पहुंचे सैलानियों के लिए तैयार मैप

शिकारगाह से पक्षी अभयारण्य तक
मोहित गुप्ता कहते हैं कि 19वीं सदी के अंत में नहरें और बांध बनने के बाद इस क्षेत्र में ताजे पानी का दलदल बनना शुरू हुआ जिससे यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आकर्षित होने लगे. इस तरह से प्राकृतिक रूप से रूखा क्षेत्र राजघराने के अतिथियों के लिए बत्तख आखेटस्थल बना दिया गया. उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन ने सन 1902 में संगठित बत्तख आखेटस्थल के रूप में इसका औपचारिक रूप से उद्घाटन किया लेकिन सन 1956 तक यह आखेट चलता रहा. आखिर में यह पक्षी विहार सन 1981 में एक उच्च स्तरीय संरक्षण दर्जा प्राप्त राष्ट्रीय पार्क के रूप में स्थापित हुआ. सन 1985 में उद्यान को विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिया गया.
केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान
आसमान नहीं आता था नजर

वन्यजीव विशेषज्ञ भोलू अबरार कहते हैं कि यहां वर्षों पहले घना में नदियों का भरपूर पानी आता था साथ ही उसमें मछलियां और पक्षियों का भोजन भी प्रचुर मात्रा में आता था इससे यहां बड़ी संख्या में देशी विदेशी पक्षी आते थे. विशेषज्ञ भोलू अबरार ने यादें ताजा करते हुए कहते हैं कि घना में इतने पक्षी आते थे कि उनकी उड़ान से पूरा आसमान काला हो जाता था. आसमान नजर ही नहीं आता था. लेकिन बीते वर्षों में घना को पानी की कमी का सामना करना पड़ा है. हालांकि इस बार प्रशासन की मदद से घना को अच्छी मात्रा में पानी मिल रहा है.

घना में विचरण करता हुआ हरण
हर दिन होता था हजारों पक्षियों का शिकार
वन्यजीव और पक्षी विशेषज्ञ (से.नि. रेंजर) भोलू अबरार कहते हैं कि रियासत काल में घना में राजा महाराजा और अंग्रेज बत्तखों का शिकार करते थे. पहले पटाखे फोड़ते और उसकी आवाज से जब बत्तख उड़तीं तो उनका शिकार करते थे. सन 1916 में लार्ड चेम्सफोर्ड ने एक ही दिन में 4206 बत्तखों का शिकार किया था.
राष्ट्रीय पक्षी उद्यान में घूम रहे सारस पक्षी
केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान में पिछले पांच सालों में कब कहां से कितने पर्यटक पहुंचे-
वर्ष- विदेशी- देशी- कुल-
2015-16 1,22,720 21,409 1,44,129
2016-17 1,21,833 25,417 1,47,250
2017-18 1,14,631 23,345 1,37,976
2018-19 1,32,184 26,231 1,58,415
2019-20 1,08,204 20,773 1,28,917

इस तरह मिली दुनिया में पहचान-
केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान के निदेशक मोहित गुप्ता कहते हैं कि घना में डॉ. सलीम अली ने पक्षियों पर काफी समय तक शोध किया. अन्य कई संस्थाओं ने भी पक्षियों की प्रजातियों पर शोध कार्य किये जिससे घना की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी. उसके बाद देश के अलग अलग हिस्सों से और दुनियाभर से पर्यटक यहां पहुंचने लगे.

केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान में लुत्फ लेते हुए सैलानी

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कोरोना ने तोड़ दी कमर-
निदेशक मोहित गुप्ता ने बताया कि हर वर्ष घना में देशी विदेशी करीब सवा लाख से डेढ़ लाख तक पर्यटक आते हैं लेकिन इस बार कोरोना के चलते घना करीब तीन माह तक बंद रहा. इससे पर्यटकों की संख्या बीते वर्ष की तुलना में काफी कम रही. आने वाले पर्यटन सीजन में भी विदेशी पर्यटकों के पहुंचने की उम्मीद कम है लेकिन देशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए घना प्रशासन और पर्यटन विभाग की ओर से प्रचार प्रसार के माध्यम से प्रयास किया जा रहा है.

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कोरोना संक्रमण से बचाव के इंतजाम-
मोहित गुप्ता कहते है कि यहां पर आने वाले पर्यटकों को संक्रमण से बचाव के लिए सभी जरूरी इंतजाम किए हुए हैं. यहां प्रवेश द्वार पर ही फुल बॉडी सैनिटाइजेशन चैंबर लगाया गया है साथ ही टिकट खिड़की के सामने भी सोशल डिस्टेंसिंग की पालना कराने के लिए घेरे बनाए गए हैं. सभी स्टाफ को मास्क का इस्तेमाल अनिवार्य किया गया है साथ ही यहां आने वाले पर्यटकों से भी मास्क लगाने की अपील की जाती है.

Last Updated : Sep 27, 2020, 8:04 PM IST

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