भरतपुर.तेजी से बढ़ते शहरीकरण, ऊंची-ऊंची इमारतें, प्रदूषण और मोबाइल टावर से निकलने वाला रेडिएशन गौरैया की जान पर भारी पड़ रहा है. बीते दशक में देश के कई हिस्सों में तो गौरैया की संख्या में तेजी से गिरावट देखी गई है. एक शोध में सामने आया है कि देश के तटवर्ती राज्यों में तो गौरैया की संख्या में 70 से 80% तक की गिरावट आयी है. लेकिन राजस्थान के हालात इस मामले में काफी बेहतर हैं. बीते करीब दो तीन साल में भरतपुर और राजस्थान के अन्य जिलों में फिर से गौरैया की चहचहाहट बढ़ने लगी है. विश्व गौरैया दिवस पर जानकार बता रहे हैं कि देश में गौरैया की संख्या किस वजह से और किन किन क्षेत्रों में कम हो रही है.
अध्ययन में दर्ज हुई गिरावट
लुधियाना की सीटी यूनिवर्सिटी एक शोधपत्र और इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) के अध्ययन में सामने आया है कि वर्ष 2020 से पहले देश के अलग अलग राज्यों में गौरैया की संख्या में तेजी से गिरावट आई. आईसीएआर के अध्ययन से पता चला कि आंध्र प्रदेश में गौरैया की संख्या में 80% तक की कमी आई है. जबकि राजस्थान, गुजरात और केरल में गौरैया की संख्या में तकरीबन 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. इतना ही नहीं रिसर्च में पता चला है कि देश के तटवर्ती राज्यों में गौरैया की संख्या काफी तेजी से गिरी. इन राज्यों में 70 से 80 तक की गिरावट देखने को मिली है. बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री ऑफ सोसाइटी (बीएनएचएस) ने वर्ष 2005 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ मिलकर हैदराबाद के रंगा रेड्डी जोन में एक सर्वे कराया, जिसमें गौरैया की संख्या में बेहद कमी दर्ज की गई.
भरतपुर समेत राज्य में वृद्धि
पर्यावरणविद डॉ सत्यप्रकाश मेहरा ने बताया कि 90 के दशक के बाद से लगातार गौरैया की संख्या में कमी आई है. लेकिन बीते दो तीन वर्षों में यानी कोरोना काल और उसके बाद भरतपुर समेत अन्य जिलों में गौरैया की संख्या बढ़ी है. डॉ मेहरा ने बताया कि वर्ष 2007 में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के गांवों में गौरैया के बमुश्किल 20 से 25 के झुंड नजर आते थे. लेकिन अब यहां इनकी संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिली है. कई कई जगह 50 से 100 के झुंड नजर में आ जाते हैं.