ढाई दशक में सूख गई भरतपुर की तीन नदियां भरतपुर. हर वर्ष पर्यावरण सुरक्षा का संकल्प लिया जाता है, लोगों को जागरूक भी किया जाता, ताकि पर्यावरण और प्रकृति का संरक्षण किया जा सके. भारत सरकार विदेश की 13 नदियों के पुनरुद्धार की योजना तैयार करने में जुटी है. भरतपुर के लिए भी कुछ इसी तरह के प्रयासों की जरूरत है. बीते ढाई दशक में भरतपुर जिले के पर्यावरण में काफी नकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं. वेटलैंड के लिए दुनियाभर में पहचान रखने वाला भरतपुर कभी बाणगंगा, रूपारेल और गंभीरी नदियों के पानी से लबालब रहता था. जिले का भूजलस्तर अच्छा था. लेकिन बीते ढाई दशक में ये तीन नदियां पूरी तरह से सूख गईं. इसका दुष्प्रभाव ये हुआ कि जिले का भूजल स्तर गिर गया. दर्जनों गांव सूखाग्रस्त हो गए. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से भी कई प्रजाति के पक्षियों ने मुंह मोड़ लिया. यदि समय रहते प्रशासन और लोगों ने जिले में पानी के प्राकृतिक प्रबंध नहीं किए, तो यहां के पर्यावरण में बड़े बदलाव झेलने पड़ेंगे.
1998 के बाद नदियां सूखी : पर्यावरणविद डॉक्टर सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि जिले में पहले बाणगंगा, रूपारेल और गंभीरी नदी के माध्यम से प्राकृतिक पानी आया करता था. इससे पूरे जिले का भूजल स्तर दुरुस्त रहता था. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को भरपूर पानी मिलता था, बड़ी संख्या में पक्षी आते थे. पूरे जिले का पर्यावरण सुव्यवस्थित बना हुआ था, लेकिन ये तीनों नदियां वर्ष 1998 के बाद से सूखी पड़ी है. वर्ष 1998 में बाणगंगा नदी में पानी आया था उसके बाद कभी भी जिले में बाढ़ नहीं आई. उसके बाद से न ही नदियों में भरपूर पानी आया. वर्ष 2022 में जरूर पंचाना बांध से गंभीरी नदी में कुछ ओवरफ्लो का पानी छोड़ा गया था. अन्यथा तीनों नदियां ढाई दशक से सूखी पड़ी हैं. डॉ सत्यप्रकाश मेहरा ने बताया कि जिले में आने वाली तीनों नदियों के सूखने का प्रमुख कारण मानवीय हस्तक्षेप रहा।
बाणगंगा नदी : जयपुर की ओर से मध्य अरावली की पहाड़ियों से निकलने वाली बाणगंगा का पानी भरतपुर तक पहुंचता था. जब से जयपुर में जमवारामगढ़ बांध बना तब से बाणगंगा का पानी भरतपुर को मिलना बंद हो गया और बाणगंगा नदी सूख गई.
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गंभीरी नदी :करौली जिले की तरफ से गंभीरी नदी का पानी भरतपुर तक पहुंचता था. यह पानी न केवल जिले निवासियों के लिए बल्कि घना के लिए भी संजीवनी का काम करता था. लेकिन जब से करौली जिले के पांचना बांध की दीवारें ऊंची की हैं तब से इस नदी में भी पानी आना बंद हो गया हैं.
रूपारेल नदी : वर्षों पहले अलवर की तरफ से रूपारेल नदी में पानी आता था. लेकिन अलवर और अन्य क्षेत्रों में नदी के बहाव क्षेत्र को अवरूद्ध कर दिया गया. जिससे रूपारेल नदी सूख गई.
159 गांव सूखाग्रस्त :तीनों नदियों में पानी आना बंद होने से जिले का भू जलस्तर गिर गया. राजस्थान भूजल विभाग ने वर्ष 2018 में जिले के 334 गांव का सर्वे किया था, जिसमें जिले के 159 गांव सूखाग्रस्त पाए गए थे. इन गांवों का भू जलस्तर गिर गया, गांवों के कुओं का पानी सूख गया. इतना ही नहीं जिले में पानी की कमी के चलते किसानों ने भी कृषि का पैटर्न बदल दिया है. पहले ज्यादा पानी की जरूरत वाली फसलों की बुवाई की जाती थीं जैसे कि मूंगफली, चना आदि. लेकिन अब किसान कम पानी वाली फसलें पैदा करने पर ध्यान दे रहे हैं.
पक्षियों ने मुंह मोड़ा :डॉ मेहरा ने बताया कि जब तक केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिल रहा था तब तक यहां पर लाखों की संख्या में पक्षी आया करते थे. लेकिन अब साइबेरियन सारस के साथ ही लार्ज कॉर्वेंट, मार्वल टेल, रिवर्टन बर्ड जैसी कई प्रजाति के पक्षियों ने यहां आना बंद कर दिया है. इतना ही नहीं पक्षियों की संख्या में भी काफी गिरावट आई है.
पॉलिथीन का इस्तेमाल हो बंद : डॉ मेहरा ने बताया कि इस बार विश्व पर्यावरण की थीम 'बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन ' है. पॉलिथीन और प्लास्टिक पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा रही है. भरतपुर की बात करें तो यहां की जमीन पहले ही पानी कम सोखती थी लेकिन अब पॉलिथीन की वजह से यह समस्या और बढ़ गई है. पानी निकासी के स्रोत पॉलिथीन की वजह से ब्लॉक हो रहे हैं. मिट्टी में जमा हो रही पॉलिथिन की वजह से वर्षाजल जमीन के अंदर नहीं जा पा रहा है. इसलिए लोगों को जागरूकता दिखाते हुए पॉलिथिन का इस्तेमाल पूरी तरह बंद करना चाहिए. तभी पर्यावरण सुरक्षित रह पाएगा.