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Special: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले साइबेरियन सारस 18 साल से नहीं आए भरतपुर

भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पहुंचने वाले साइबेरियन सारस ने भरतपुर के उद्यान से मुंह मोड़ लिया है. बीते 18 वर्षों से वो यहां लौटकर नहीं आए हैं. पक्षी विशेषज्ञों की मानें तो ग्लोबल वार्मिंग और अफगानिस्तान में साइबेरियन सारस का बड़े पैमाने पर शिकार किया जाना भी इनके न आने की एक अहम वजह है.

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साइबेरियन सारस 18 साल से नहीं आए भरतपुर

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Published : Oct 17, 2020, 10:47 PM IST

भरतपुर. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले साइबेरियन क्रेन(साइबेरियन सारस) अब मानों सपना बन गए हैं. हजारों किलोमीटर का सफर तय करके भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पहुंचने वाले साइबेरियन सारस ने भरतपुर के उद्यान से मुंह मोड़ लिया है. बीते 18 वर्षों से वो यहां लौटकर नहीं आए हैं. उद्यान के अधिकारियों और पक्षी विशेषज्ञों की मानें तो ग्लोबल वार्मिंग और अफगानिस्तान में साइबेरियन सारस का बड़े पैमाने पर शिकार किये जाने की वजह से इस पक्षी ने भरतपुर से मुंह मोड़ लिया है.

साइबेरियन सारस 18 साल से नहीं आए भरतपुर

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक मोहित गुप्ता ने बताया कि पहले अफगानिस्तान और ईरान के रास्ते(सेंट्रल एशियन फ्लाई वे) साइबेरियन क्रेन हर वर्ष उद्यान पहुंचते थे. लेकिन पर्यावरण बदलाव, अफगानिस्तान में शिकार और गृह युद्ध के चलते साइबेरियन क्रेन ने भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आना धीरे-धीरे बंद कर दिया. बाद में हालात यह हो गए कि वर्ष 2001-02 के दौरान साइबेरियन क्रेन का अंतिम जोड़ा केवलादेव घना पहुंचा. उसके बाद फिर कभी साइबेरियन क्रेन लौटकर भरतपुर नहीं आया.

घना में इसलिए आते थे साइबेरियन क्रेन पक्षी

विशेषज्ञ और केवलादेव घना के रिटायर्ड रेंजर भोलू अबरार ने बताया कि मध्य एशिया से निकलने वाला साइबेरियन पक्षियों का झुंड भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पहुंचता था. साइबेरियन सारस के यहां आने की सबसे बड़ी वजह यह थी कि उसके खाने के लिए यहां पर्याप्त भोजन मिलता था और रहने और प्रजनन के लिए सुरक्षित वातावरण. साइबेरिया में साइबेरियन सारस मांसाहारी होता था. लेकिन भरतपुर के केवलादेव घना में आने के बाद वह शाकाहारी बन जाता था. यहां पर साइबेरियन सारस का ट्यूबर (मोंथा) और निम्फिया (पानी में पैदा होने वाला फूल) खाते थे जोकि यहां पर्याप्त मात्रा में मिलता है. साथ ही पानी और सुरक्षित वातावरण भी मिलता था. यही वजह है कि यहां पर साइबेरियन सारस अच्छी संख्या में पहुंचते थे.

चीन में अभी भी पहुंच रहे साइबेरियन क्रेन पक्षी

उधर विशेषज्ञ भोलू अबरार ने बताया कि साइबेरिया में तीन स्थानों से साइबेरियन पक्षी उड़ान भरता था. इसमें मध्य साइबेरिया से निकलने वाला साइबेरियन भरतपुर के घना पहुंचता था. वेस्टर्न साइबेरिया से क्रेन उड़ान भर के ईरान पहुंचता था और तीसरा मार्ग ईस्टर्न साइबेरिया से उड़ान भरने के बाद साइबेरियन क्रेन चीन पहुंचता था. सेंट्रल और वेस्टर्न से उड़ान भरने वाला साइबेरियन क्रेन ईरान और भारत नहीं पहुंच रहे. जबकि ईस्टर्न मार्ग सुरक्षित होने की वजह से आज भी साइबेरियन क्रेन चीन पहुंच रहे हैं. सारस की वापसी के प्रयास विफल साइबेरियन क्रेन को फिर से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में लाने के लिए वर्ष 2012 में प्रयास किए गए. उस दौरान केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव कार्यशाला के दौरान विशेषज्ञों ने एक जोड़ा घना में लाने की बात कही.

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विशेषज्ञों ने उद्यान में सेमि कैक्टिव सेंटर स्थापित कर बेल्जियम स्थित (ब्रीडिंग एंड कंजर्वेशन सेंटर) से साइबेरियन क्रेन का जोड़ा लाकर उद्यान में रखने का सुझाव दिया था. जिस पर सहमति भी बन गई थी. उस समय राज्य सरकार ने 1.10 करोड़ की स्वीकृति भी जारी कर दी थी. बाद में यह प्रोजेक्ट राष्ट्रीय जंतुआलय नई दिल्ली को भेजा गया. इस प्रोजेक्ट को लेकर केंद्र स्तर पर कुछ समय के लिए प्रयास हुए, लेकिन बाद में यह प्रोजेक्ट बंद कर दिया गया.

साइबेरियन क्रेन नहीं आने की मुख्य वजह

  • ग्लोबल वार्मिंग और प्राकृतिक बदलाव
  • अफगानिस्तान और ईरान में बड़े पैमाने पर साइबेरियन क्रेन का शिकार
  • अफगानिस्तान में गृह युद्ध के दौरान साइबेरियन क्रेन के निवास स्थान नष्ट हो गए

गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में हर वर्ष देशी और विदेशी 400 प्रजाति के हजारों पक्षी आते हैं. इन पक्षियों में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र साइबेरियन क्रेन हुआ करता था. लेकिन लंबे समय से यह पक्षी घना में नहीं आ रहा है. हालांकि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में इंडियन सारस के साथ ही अन्य सैकड़ों प्रजाति के पक्षी अभी भी हर वर्ष आते हैं.

फैक्ट से समझें साइबेरियन सारस का सफर

साल संख्या

  • 1964-65- 200
  • 1969-70- 76
  • 1974-75- 63
  • 1975-76-61
  • 1976-77- 57
  • 1977-78- 55
  • 1978-79- 43
  • 1979-80- 33
  • 1980-81- 33
  • 1984-85- 41
  • 1990-91- 10

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