भरतपुर.भीषण गर्मी के बीच पेयजल संकट से गुजर रहे प्रदेशवासियों का का हाल बेहाल है. भरतपुर में करीब 400 वर्षों से जीवदायी बने अजान बांध पर उड़ती धूल हकीकत बयां करती है. करीब 15 वर्ष पहले पानी से लबालब रहने वाले इस बांध पर महज रेत ही दिखती है.
राजस्थान में 400 साल से हलक करने वाले बांध में उड़ती है रेत राजस्थान में इस समय पानी को लेकर त्राहि- त्राहि मच गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों कि दिनचर्या पानी की व्यवस्था करने में ही बीत जाती है. लोग पानी के लिए कई किलोमीटर का सफर करते हैं. आमतौर पर ऐसे संकट का कारण लोग प्रकृति को ही मानते हैं, लेकिन प्रदेश सरकार की अनदेखी के चलते आज लोगों को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ है. अजान बांध के पानी निर्भर रहने वाले लोग आज बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं.
करीब 15 वर्ष पहले ये अजान बांध में पानी से लबालब रहा करता था. इस बांध से सैकड़ों गांव के किसानों को सिचाई और पीने के लिए पानी दिया जाता था, लेकिन जब से करौली में पांच मौसमी नदियों को जोड़कर पांचना बांध का निर्माण किया गया. उसमें पानी रोकना शुरू हुआ है तब से अजान बांध को पानी की एक बूंद तक नहीं मिली है. अगर ज्यादा बरसात के समय में पांचना बांध से पानी छोड़ भी दिया जाता है तो बीच में गांव वाले एनीकट बनाकर पानी को रोक लेते हैं जिससे पानी अजान बांध तक नहीं पहुंच पाता है.
अधिक बारिश होने पर जब पांचना बांध में पानी खतरे के निशान से ऊपर चला जाता है. ऐसे में बांध का पानी छोड़ा जाता है. यह पानी अजान बांध तक आता है, लेकिन यह पानी ग्रामीणों को नहीं मिलता. जबकि पांचना बांध के इस पानी को राष्ट्रीय पक्षी उधान केवलादेव को उपलब्ध करा दिया जाता है. वहीं ग्रामीणों को सिंचाई और पीने की पानी की व्यवस्था नहीं हो पाती है. यह बांध करीब 15 वर्ष से यह बांध सूखा पड़ा है. जहां सिर्फ धूल उड़ती दिखाई देती है पानी का कोई नामोनिशान नहीं है.
बता दें कि वर्ष 2008 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत केवलादेव नेशनल पार्क को पानी की कमी के चलते की डेंजर जोन की सूची में डाल दिया था. जिसके बाद सरकार ने करौली के पांचना बांध का पानी कुछ मात्रा में अजान बांध के लिए छोड़ने का फैसला किया. भरतपुर की स्थापना 1733 में महाराजा सूरजमल ने की थी. उस समय यहां का अपवाह तंत्र अद्वतीय था. जिसकी नकल कई देशों ने की थी. यहां का अपवाह तंत्र इस तरह से बनाया गया था की यदि ज्यादा बरसात और बाढ़ के हालात हो जाए तो उसका पानी सीधे यमुना नदी में निकाल दिया जाता था.
अकाल और सूखा की स्थिति से निपटने के लिए यहां सैकड़ों की संख्या में छोटे बड़े बांध बनाये गए थे. जहां बरसात का जल इकठ्ठा होता था. ये जल अकाल के समय लोगों के पीने और सिंचाई के काम आता था, लेकिन वर्तमान समय में यह प्रवाह तंत्र पूर्ण रूप से खत्म हो चुका है. देखरेख के अभाव में बांधों की स्थिति बदतर है.
दूसरा भरतपुर में लंबे समय से अच्छी बरसात ना होने से यहां पानी की समस्या रहती है. यहां जल स्तर करीब 400 फीट तक नीचे जा पहुंचा है. पानी खारा होने के कारण सिंचाई और पीने योग्य नहीं है. किसान लम्बे समय से गुड़गांव-कैनाल से यमुना जल की मांग करते रहे हैं, लेकिन उनकी वह मांग भी आज तक पूरी नहीं हो सकी है.