जान गंवा रहा भारत का राष्ट्रीय पशु भरतपुर.बाघों के संरक्षण के लिए देश में वर्ष 1973 में 'प्रोजेक्ट टाइगर' की शुरुआत की गई थी. इसके बाद बाघों की संख्या में इजाफा देखने को मिला, लेकिन इसके साथ ही बाघों की मौत का आंकड़ा भी बढ़ गया. भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ अलग-अलग कारण से जान गंवा रहा है. हालांकि बीते पांच साल में बाघों के शिकार के मामलों में काफी कमी आई है, लेकिन प्राकृतिक कारणों से होने वाली मौतें दोगुना तक बढ़ गई हैं.
पांच सालों में 591 बाघों की मौत :वन विभाग के आंकड़ों की मानें तो बीते 5 वर्ष के दौरान रणथंभौर समेत पूरे देश में बाघों की मौत का आंकड़ा बढ़ा है. रणथंभौर टाइगर रिजर्व में बीते दो साल में 12 बाघ और शावकों की मौत दर्ज की गई है, जबकि पूरे देश में वर्ष 2018 से 5 मार्च 2023 तक कुल 591 बाघों की मौत हो चुकी है.
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शिकार घटा, प्राकृतिक मौत बढ़ी :विभागीय आंकड़ों के अनुसार पांच साल में बाघों के शिकार के प्रकरणों में काफी गिरावट आई है. वर्ष 2018 में पूरे देश में बाघों के शिकार के कुल 44 मामले सामने आए थे, जो वर्ष 2019 में 27, वर्ष 2020 में 15, वर्ष 2021 में 18 और वर्ष 2022 में 10 रह गए. इसके बाद बाघों के प्राकृतिक मौत के आंकड़ों में काफी वृद्धि देखी गई. वर्ष 2018 में देश में 53 बाघों की प्राकृतिक मौत हुई जो वर्ष 2022 में बढ़कर 108 तक पहुंच गई.
बीते सालों में बढ़ा बाघों का कुनबा इसलिए बढ़ा मौत का आंकड़ा :सेवानिवृत्त डीएफओ सुनयन शर्मा ने बताया कि पहले घने जंगलों में बुढ़ापे या बीमारी की वजह से बाघ की प्राकृतिक मौत हो जाती थी तो पता नहीं चल पता था, लेकिन बीते दो दशक से पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए विभागीय कर्मचारियों की जंगल के अंदर पहुंच बढ़ी है. ऐसे में प्राकृतिक मौत होने पर जानकारी मिल जाती है और मौत का आंकड़ा बढ़ जाता है. अभी भी बाघों के शिकार के मामले प्रकाश में आते हैं. विभागीय अधिकारी कार्रवाई से बचने के लिए कई बार इस तरह की घटनाओं को छुपा लिया जाता है. कई बार टेरिटरी के लिए आपसी संघर्ष होता है और कमजोर बाघ की मौत हो जाती है.
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ऐसे किया जा सकता है नियंत्रण :सेवानिवृत्त डीएफओ सुनयन शर्मा ने बताया कि बाघों की अप्राकृतिक मौत और शिकार जैसे अन्य कारणों को नियंत्रित किया जा सकता है. विभाग को सबसे ज्यादा फोकस ओवर क्राउडेड रिजर्व के बाघों की शिफ्टिंग पर करना चाहिए, ताकि आपसी संघर्ष में होने वाली मौतों को रोका जा सके. साथ ही इंसान और बाघों के संघर्ष को रोकने के लिए टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बसे गांवों को अन्यत्र शिफ्ट करना चाहिए.
कई बार पर्यटकों को होती है साइटिंग रणथंभौर में इसलिए ज्यादा मौत :सुनयन शर्मा ने बताया कि रणथंभौर टाइगर रिजर्व में अच्छी गति से बाघों की संख्या बढ़ी है. वर्ष 2018 में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार रणथंभौर में 56 बाघों को रखने के लायक क्षेत्रफल है, लेकिन वर्तमान में यहां 75 से अधिक बाघ हैं. ऐसे में यहां बाघों के बीच में आपसी संघर्ष भी बढ़ा है, हालांकि विभाग की ओर से धौलपुर क्षेत्र में नए टाइगर रिजर्व की तरफ काम किया जा रहा है. यहां से अन्य टाइगर रिजर्व में भी बाघों की शिफ्टिंग की गई है. विभाग को बाघों के नए प्राकृतिक क्षेत्रों के विकास और सुरक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है, इससे हालात काफी नियंत्रित होंगे.