डीग के महल में जाट रानियों और दासियों ने तलवार से काट लीं थीं अपनी गर्दनें भरतपुर.राजस्थान का इतिहास रणबांकुरों की वीरता और रानियों व महिलाओं के सतित्व की कहानियों से भरा हुआ है. रणबांकुरे अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए युद्ध के मैदान में प्राण न्योछावर कर देते थे. वहीं रानियां पराधीनता स्वीकार करने के बजाय व्यभिचार से बचने और पवित्रता कायम रखने के लिए जौहर कर लेती थीं. राजस्थान में जल कुंड और अग्नि कुंड में कूदकर जौहर की बहुत कहानियां सुनी गईं हैं. इससे भी बड़ी वीरता की कहानी भरतपुर के डीग में रानियों और दासियों ने लिखी है. उन्होंने तलवार से खुद की गर्दन काटकर जौहर किया था. इतिहास में इसे भारत के अंतिम जौहर के रूप में भी जाना जाता है.
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जाट सैनिकों ने 7 माह तक नजफ खां से लिया था लोहाः इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल और महाराजा जवाहर सिंह के बाद भरतपुर की बागडोर अल्पवयस्क महाराज केशरी सिंह और उनके बड़े भाई महाराज रणजीत के हाथों में थी. भरतपुर राज्य आंतरिक कलह के दौर से गुजर रहा था. इसी दौरान वर्ष 1775 के अंत में दिल्ली के वजीर नजफ खां ने डीग पर हमला बोल दिया. जाट सैनिकों ने 7 माह तक नजफ खान की सेना से लोहा लिया. लंबे युद्ध के चलते लगातार जाट सैनिकों की संख्या कम हो रही थी. उधर नजफ खां की सेना में हर दिन नए सैनिक शामिल होते जा रहे थे.
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छोटे भाई को सुरक्षित कुम्हेर पहुंचायाः इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि नजफ खां की सेना का लंबा घेरा चलने की वजह से डीग के किले में सैनिकों के लिए भोजन की कमी आने लगी थी. अनाज का भंडार खत्म होने लगा था. सैनिकों की संख्या भी लगातार कम हो रही थी. डीग की सुरक्षा कमजोर पड़ने लगी थी. ऐसे में महारानी खेत कौर ने महाराजा रणजीत सिंह को अपने छोटे भाई 9 वर्षीय महाराजा केशरी सिंह को सुरक्षित कुम्हेर के किले पहुंचाने का आदेश दिया. महाराजा रणजीत सिंह डीग के रनिवास की सुरक्षा में सैनिक तैनात कर 29 अप्रैल 1776 के दिन छोटे भाई महाराज केशरी सिंह को लेकर कुम्हेर निकल गए और उन्हें सुरक्षित कुम्हेर के किले में पहुंचाया.
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तोड़ दी थी सुरक्षाः रामवीर वर्मा ने बताया कि महाराजा रणजीत सिंह के कुम्हेर निकलने के बाद नजफ खां की सेना ने डीग किले का सुरक्षा घेरा तोड़ दिया था. दुश्मन सैनिक डीग के किले में घुस गए. दुश्मन सेना जैसे ही रनिवास के पास पहुंची तो रानियों की सुरक्षा में तैनात सैनिकों ने दुश्मन सेना पर हमला बोल दिया. इसी दौरान महारानी खेत कौर एवं अन्य सात रानियों सहित दासियों ने सतीत्व की रक्षा का प्रण लिया. दुश्मन सेना को नजदीक आता देख कर महारानी खेत कौर व 60 रानियों और दासियों ने अपने खड़ग उठा लिए. अपने स्वाभिमान और सतीत्व की रक्षा के लिए सभी रानियों और दासियों ने तलवार से अपने शीश धड़ से अलग कर दिए और सती हो गईं.
निराश हो गया था वजीर नजफ खांः वजीर नजफ खां जब रनिवास में पहुंचा तो भौंचक्का रह गया. उसे निराशा हुई कि वो भरतपुर के स्वाभिमान को नहीं तोड़ सका. बताते हैं रानियों के जौहर, किले में जाट सैनिकों व दुश्मन सेना के बीच हुए युद्ध के कई दिनों बाद तक किले की नालियों से खून बहता रहा था. इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि यह भारत का अंतिम जौहर था. इसके बाद भारत की किसी रियासत में कोई जौहर नहीं हुआ.