भरतपुर.प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 की चौसर बिछ गई है. सियासी दलों के रणबांकुरे चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं. मतदाता भी पसंदीदा प्रत्याशियों को वोट देने का मन बनाने लगे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने खूब बढ़-चढ़कर वोट किया था, लेकिन दूसरी तरफ किसी न किसी मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों से नाराज वोटरों ने नोटा (Nota in Rajasthan election) विकल्प का इस्तेमाल भी खूब किया था.
साल 2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो प्रदेश के 4 लाख 67 हजार 988 मतदाताओं ने प्रत्याशियों को सिरे से नकारा था. यही वजह रही की प्रदेश में 1.31% मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था. सबसे ज्यादा NOTA का इस्तेमाल बांसवाड़ा जिले की कुशलगढ़ विधानसभा सीट के मतदाताओं ने किया था.
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यहां हुआ 'NOTA' का सबसे ज्यादा इस्तेमाल: निर्वाचन विभाग के आंकड़ों के अनुसार साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कुल 3 करोड़ 57 लाख 6 हजार 726 लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, इनमें से 4 लाख 67 हजार 988 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया, जो कि कुल मतदान का 1.31 फीसदी था. प्रदेश में यूं तो हर विधानसभा सीट पर मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया, लेकिन सबसे ज्यादा नोटा का इस्तेमाल बांसवाड़ा जिले की कुशलगढ़ सीट के मतदाताओं ने किया. कुशलगढ़ में 11,002 मतदाताओं ने नोटा दबाया था. वहीं प्रदेश में सबसे कम नोटा का इस्तेमाल अलवर जिले की रामगढ़ सीट के मतदाताओं ने किया, जहां सिर्फ 241 वोटरों ने 'NOTA' के बटन को दबाया था. कुशलगढ़ के बाद उदयपुर की झाड़ोल सीट पर लोगों ने नोटा को पसंद किया. वहीं, सिरोही जिले की रेवदर, उदयपुर की खेरवाड़ा, प्रतापगढ़ की धरियावाद, बासंवाड़ा की बागीडोरा, उदयपुर की सलूंबर, बाड़मेर की चौहटन, पाली की बाली और बांसवाड़ा की घाटोल सीट पर भी वोटोरों ने नोटा के बटन को खूब बढ़-चढ़कर दबाया.
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बता दें कि पिछले चुनाव में उदयपुर, जयपुर, बांसवाड़ा, जोधपुर और भीलवाड़ा जिले में सर्वाधिक नोटा का इस्तेमाल हुआ. प्रदेश के अन्य जिलों के साथ ही भरतपुर संभाग के धौलपुर, करौली और सवाई माधोपुर जिलों के 28,431 मतदाताओं ने भी प्रत्याशियों को नकारा था. भरतपुर के 7751 मतदाताओं ने, सवाई माधोपुर के 7653 ने, करौली के 6639 ने और धौलपुर के 6388 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया.
क्या है नोटा ?नोटा का मतलब है 'नान ऑफ द एबव' यानी इनमें से कोई नहीं, यदि मतदाता को राजनीतिक पार्टियों का कोई प्रत्याशी पसंद न हो और मतदाता इनमें से किसी को वोट नहीं देना चाहता है, तो वो नोटा का बटन दबा सकता है. निर्वाचन आयोग ने ऐसे ही मतदाताओं के लिए नोटा की व्यवस्था की है. मतगणना के समय नोटा के वोट भी गिने जाते हैं. ईवीएम से पहले जब बैलट पेपर से मतदान होता था तो मतदाता बैलट पेपर को खाली छोड़कर अपना विरोध दर्ज कराता था.