भरतपुर. साइबेरियन क्रेन और सारस क्रेन विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पक्षी प्रेमियोें के लिए आकर्षण का केंद्र रहते थे, लेकिन साइबेरियन क्रेन ने तो दो दशक से यहां आना ही बंद कर दिया. वहीं सारस क्रेन की संख्या में भी (sarus cranes is continuously decreasing) लगातार गिरावट आ रही है. यही हालात रहे तो वह दिन दूर नहीं जब साइबेरियन क्रेन की तरह ही सारस क्रेन को देखने के लिए भी लोग तरस जाएंगे. यहां कम होते पानी, फसलों में कीटनाशक का छिड़काव और बिजली की हाईटेंशन तार से होने वाली दुर्घटनाओं के चलते उद्यान और आसपास के क्षेत्र में सारस क्रेन की संख्या कम होती जा रही है. देखिए सारस क्रेन पर खास रिपोर्ट...
285 से 4 तक आया आंकड़ा
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के सेवानिवृत्त रेंजर व पक्षी विशेषज्ञ भोलू अबरार ने बताया कि जब तक उद्यान में नदियों का भरपूर पानी आता था तब तक सैकड़ों की संख्या में सारस क्रेन आते थे. वर्ष 1985 में गणना के दौरान उद्यान व आसपास (water crisis in Keoladeo National Park) के क्षेत्र में 285 सारस क्रेन थे, लेकिन धीरे-धीरे उद्यान को पानी मिलना कम होता गया जिससे उद्यान का हैबिटेट प्रभावित हुआ और साइबेरियन क्रेन के बाद सारस क्रेन की संख्या भी कम (number of sarus cranes decreasing in Ghana) होती गई. अब हालात ये हैं कि घना और आसपास के क्षेत्र में सिर्फ 4 जोड़ा यानी 8 क्रेन ही रह गए हैं. जबकि बीते वर्षों में पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में पानी की उपलब्धता अच्छी हुई है. लोग धान की बुवाई अधिक करने लगे हैं जिससे घना से महज 20 किमी दूर ही अच्छी संख्या में सारस क्रेन नजर आ जाते हैं.
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कीटनाशक बन रहा जानलेवा
भोलू अबरार ने बताया कि पहले भरतपूर में भरपूर पानी आता था तो खेतों में दीमक और फसलों में भी रोग कम लगते थे. बाद में पानी कम होता गया तो फसलों में रोग बढ़ते गए. फसलों को रोग से बचाने के लिए किसान काफी मात्रा में कीटनाशक का इस्तेमाल करने लगे. जब सारस क्रेन कीटनाशकयुक्त बीज और फसल को चुगते तो ओवर फीडिंग और कीटनाशक के प्रभाव से उनकी भी मौत होने लगी. भोलू अबरार ने बताया कि वर्ष 1996 के आसपास उद्यान और क्षेत्र में करीब 18 क्रेन की मौत इस वजह से हुई थी. बाद में चिकित्सकों के उपचार के दौरान भी यह तथ्य सामने आया था.