कामां (भरतपुर).महाशिवरात्रि का पर्व वैसे तो पूरे देशभर में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन कामां कामवन में महाशिवरात्रि के पर्व पर कस्बे के प्रसिद्ध कामेश्वर महादेव का पूर्वजों ने एक अलग ही महत्व बताया है. जिसके चलते कामां कस्बे के अलावा दूरदराज के भक्त भी हजारों की तादाद में महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को जल चढ़ाने आते हैं. उल्लेखनीय है कि कामां कामवन क्षेत्र जो भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा स्थलीय है, यहां भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं से सबको रस मग्न किया था और उनके प्रपोत्र वज्रनाभ ने विरासतों से सजाया है.
भगवान श्रीकृष्ण के गौलोक गमन के पश्चात् वज्रनाभ मथुरा के राजा हुए. उस काल में ब्रज वीरान हो चुका था. वज्रनाभ ने परीक्षित और शांडिल्य ऋषि की सहायता से श्रीकृष्ण के लीला स्थलों की पुनः स्थापना की. कामां अर्थात काम्यवन में तीन विग्रह पधराए गये. जिनमें कामेश्वर महादेव प्रसिद्ध है. कामेश्वर महादेव की गणना ब्रज के प्रमुख शिवालयों में की जाती है.
श्री कृष्ण जन्म से पूर्व का हैं यह मन्दिर
कामेश्र्वर के रूप में विराजमान हुए कामां के 'महादेव' काम्यवन में मथुरा दरवाजे के पास कामेश्वर महादेव का आदि विग्रह विराजित है. बाबा नंद और यशोदा के श्रीकृष्ण का जन्म इनकी मान्यता से ही हुआ. यह शिवालय 5 हजार वर्ष प्राचीन है. वज्रनाभ ने इन्हें यहां पुनः स्थापित किया है. कामेश्वर महादेव की कथासृष्टि के रचैया ब्रह्मा जी से जुड़ी हुई है. श्रीमद्भागवत में इसका वर्णन है.
ऐसी है पौराणिक कथा
इसी स्थान पर भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था. सतयुग में ब्रह्माजी ने इस धरती पर तप किया था. उनके अंग से श्वेत कुंडली पुरुष का जन्म हुआ. ब्रह्माजी ने उससे कहा कि, हे पुत्र! तुम जाकर शिव पर प्रहार करो. उस समय भगवान विष्णु भगवान शिव की रक्षा को गए और कहा कि तुम अपने त्रिशूल से मेरी भुजा को काट दो, यह तुम्हारी रक्षा करेगी. भगवान शिव ने आज्ञा का पालन किया. उस भुजा ने शिव त्रिशूल से श्वेत कुंडली पर कटि प्रदेश में प्रहार किया. आहत श्वेत कुंडली के शरीर से रक्त की धारा भगवान शिव के कपाल पात्र में गिरी. इस रक्त धारा से रक्त कुंडली पुरुष उत्पन्न हुआ. तब दोनों में युद्ध आरम्भ हो गया और आकाशवाणी हुई की मेरी शक्ति के अनुसार काम्यवन की पावन वसुन्धरा पर तुम्हारा प्राकट्य होगा. कालांतर में श्वेत कुंडली कामेश्वर महादेव के रूप में प्रकट हुए और रक्त कुंडली बैजनाथ के रूप में, कलियुग के प्रारंभ में श्रीकृष्ण के प्रपोत्र वज्रनाभ ने कामेश्वर महादेव की पुनः स्थापना की थी.
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महाशिवरात्रि के दिन कामां कस्बे सहित दूरदराज के क्षेत्रों के लाखों श्रद्धालु और भक्तगण कांवड़ से गंगाजल चढ़ाने के लिए मंदिर पर पहुंचते हैं. मंदिर का महत्व पूरे ब्रज क्षेत्र के साथ-साथ सभी जगह कामेश्वर महादेव के नाम से गुणगान किया जाता है. ब्रज चौरासी कोस में 4 महादेव हैं. विराजमान जिनमें प्रमुख हैं, कामेश्वर महादेव, ब्रज चौरासी कोस में 4 महादेव विराजमान हैं. जिनमें करीब 5000 वर्ष पूर्व कामां के कामेश्वर महादेव विराजमान हैं. कामवन कामां में कामेश्वर, मथुरा में भूतेश्वर, वृंदावन में गोपेश्वर और गोवर्धन मत चकलेश्वर महादेव विराजमान हैं.
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कंबन के कामेश्वर महादेव राजा के नाम से जाने जाते हैं, जो करीब 5000 वर्ष से अधिक वर्ष पहले द्वापर युग में इनकी स्थापना हुई थी. भगवान श्री कृष्ण के परपोते बद्रीनाथ द्वारा इनकी स्थापना की गई थी. कामेश्वर महादेव ने कामदेव को कामवन में ही भस्म किया था, जिसके बाद इनका नाम कामेश्वर महादेव पड़ा जिसका अर्थ होता है कामनाओं को पूर्ण करने वाले कामेश्वर महादेव जिसके बाद यह कहावत है 'कामवन आए तो काम बन जाते हैं', इसका अर्थ होता है कि कामवन में आने से ही लोगों की मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं, और उसमें भी अगर कामेश्वर महादेव की पूजा अर्चना की जाए तो वह धन्य हो जाता है ऐसी मानता है.