संकट में घना का विश्व विरासत का दर्जा! भरतपुर.दुनिया भर में पक्षियों की वजह से अपनी खास पहचान रखने वाले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान का विश्व विरासत (वर्ल्ड हेरिटेज साइट) का दर्जा अब खतरे में आ गया है. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की 3 सदस्यीय टीम केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पहुंच गई है. यह टीम 17 फरवरी तक उद्यान का हर पहलू का निरीक्षण करेगी.
क्या छिन जाएगा दर्जा : घना के डीएफओ नाहर सिंह के अनुसार जल संकट से जूझ रहे केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को पूर्व में आईयूसीएन ने एक चेतावनी का पत्र भेजा था, जिसके बाद यहां के हालात देखने के लिए टीम घना पहुंची है. निरीक्षण के बाद टीम यहां की रिपोर्ट आईयूसीएन को सौंपेगी. इसके बाद तय होगा कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल रखा जाएगा या नहीं.
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तीन सदस्यीय टीम कर रही निरीक्षण :आईयूसीएन की रिएक्टिव मिशन टीम भरतपुर पहुंची है. तीन सदस्यीय टीम में दो सदस्य ब्रिटेन व मंगोलिया से हैं, जबकि एक सदस्य वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, देहरादून से हैं. ये टीम 13 से 17 फरवरी तक उद्यान का निरीक्षण करेगी. टीम यहां पानी का प्रबंधन, उसकी उपलब्धता, यहां आने वाली पक्षियों की प्रजाति, कम हो रही प्रजाति, जैव विविधता समेत तमाम पहलुओं पर बारीकी से जानकारी जुटा रही है. विभागीय अधिकारियों से चर्चा के साथ ही टीम के सदस्य खुद उद्यान के अलग अलग ब्लॉक का निरीक्षण कर रहे हैं.
फैक्ट फाइल :केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान 28.73 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है. वर्ष 1981 में इसे संरक्षित पक्षी अभ्यारण्य घोषित किया गया. वर्ष 1985 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट/ विश्व धरोहर घोषित किया गया था. उद्यान का निर्माण 250 वर्ष पूर्व कराया गया था. घना में स्तनधारी जीवों की करीब 34 प्रजातियां मौजूद हैं. इसके अलावा वनस्पतियों की भी 372 प्रजातियां और मछली की 57 प्रजातियां मौजूद हैं.
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जल संकट से बढ़ा अस्तित्व पर खतरा :डीएफओ ने बताया कि पहले उद्यान को पांचना बांध से भरपूर पानी मिलता था. इसमें भरपूर फूड भी साथ आता, जिसे पक्षी बहुत पसंद करते थे. इसके बाद पांचना बांध की दीवारें ऊंची होती चली गईं और पानी को लेकर राजनीति शुरू हुई. तब से घना को पांचना का पानी यदा कदा ही मिल पाता है. इसकी भरपाई गोवर्धन ड्रेन और चंबल पेयजल योजना से करने का प्रयास किया जाता है.
घना को हर वर्ष करीब 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत होती है. गोवर्धन ड्रेन और चंबल से इसकी पूर्ति करने का प्रयास किया जाता है. गत वर्ष तो करौली के पांचना बांध से 226 एमसीएफटी पानी मिल गया था. इस बार लौटते हुए मानसून से उद्यान को अच्छी मात्रा में पानी मिल गया. बीते करीब 20 वर्षों में कभी भी घना को जरूरत का पूरा पानी नहीं मिला. अब हालात ये हो गए हैं कि उद्यान के वर्ल्ड हेरिटेज साइट के दर्जा पर संकट खड़ा हो गया है.