भरतपुर. दीपावली और गोवर्धन पर्व हिंदू धर्म में प्रमुख त्योहार माना जाता है. दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा होती है, वहीं गोवर्धन वाले दिन गाय के गोबर से गोवर्धन की प्रतिमा बनाकर अन्नकूट और अन्य मिष्ठान से पूजा की जाती है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण और गायों के पूजन का भी विधान है. ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है. इस दिन गोवर्धन महाराज की सप्तकोशीय परिक्रमा पूर्ण करने के बाद श्रद्धालु भरतपुर के दानघाटी मंदिर पहुंचते हैं. यहां पर 'यमुनाजी' में स्नान करने के बाद दानघाटी मंदिर में गोवर्धन महाराज और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं. इसी के साथ सप्तकोशीय परिक्रमा पूर्ण मानी जाती है.
इस तरह शुरू हुई परंपरा : पंडित प्रेमी शर्मा ने बताया कि द्वापर युग में भगवान विष्णु ने ब्रज में भगवान श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था. नंदगांव और बरसाना में भगवान श्री कृष्ण लीलाएं करते थे. भगवान श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत पर गाय चराने जाते थे. उस समय सभी बृजवासियों में इंद्रदेव की पूजा करने की परंपरा थी. दीपावली के अगले दिन नंद बाबा और बृजवासी इंद्रदेव की पूजा करने की तैयारी में जुटे हुए थे. इसपर भगवान श्री कृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि हम इंद्रदेव की पूजा क्यों करते हैं, जबकि हमारी गायों को भोजन और हमारी अन्य जरूरत गोवर्धन पर्वत पूरी करते हैं. हमें इंद्रदेव के बजाय गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए. इस तरह पहली बार ब्रजवासियों ने इंद्रदेव के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की.
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कुपित हो गए थे इंद्रदेव :पंडित प्रेमी शर्मा ने बताया जब बृजवासियों ने इंद्रदेव के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की तो इससे इंद्रदेव नाराज हो गए. इंद्रदेव ने ब्रज पर अपना कहर बरपान शुरू कर दिया और दिन-रात मूसलाधार बरसात का दौर शुरू हो गया. पूरा ब्रज बरसात से त्राहिमाम कर रहा था, तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाएं हाथ की कनिष्का उंगली पर गोवर्धन पर्वत को धारण किया और उसके नीचे पूरे ब्रज क्षेत्र के लोग, गाय और जीव जंतुओं ने शरण ली.