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भरतपुर के दानघाटी मंदिर में आकर पूर्ण होती है गोवर्धन पर्वत की सप्तकोषीय परिक्रमा, जानिए क्या है इतिहास

Daan Ghati Temple in Bharatpur, आज पूरा देश गोवर्धन पर्व मना रहा है. इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है. मान्यता है कि गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है. इसके पीछे का इतिहास और किवदंती बड़ी ही रोचक है, जिसका हिंदू धर्म के तमाम धार्मिक ग्रंथों में जिक्र मिलता है. आईए जानते हैं गोवर्धन पूजा कब, क्यों शुरू हुई और इसका इतिहास क्या है...

Govardhan Puja 2023
भरतपुर का दानघाटी मंदिर

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 14, 2023, 7:47 PM IST

गोवर्धन पूजा पर जानिए इतिहास...

भरतपुर. दीपावली और गोवर्धन पर्व हिंदू धर्म में प्रमुख त्योहार माना जाता है. दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा होती है, वहीं गोवर्धन वाले दिन गाय के गोबर से गोवर्धन की प्रतिमा बनाकर अन्नकूट और अन्य मिष्ठान से पूजा की जाती है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण और गायों के पूजन का भी विधान है. ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है. इस दिन गोवर्धन महाराज की सप्तकोशीय परिक्रमा पूर्ण करने के बाद श्रद्धालु भरतपुर के दानघाटी मंदिर पहुंचते हैं. यहां पर 'यमुनाजी' में स्नान करने के बाद दानघाटी मंदिर में गोवर्धन महाराज और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं. इसी के साथ सप्तकोशीय परिक्रमा पूर्ण मानी जाती है.

इस तरह शुरू हुई परंपरा : पंडित प्रेमी शर्मा ने बताया कि द्वापर युग में भगवान विष्णु ने ब्रज में भगवान श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था. नंदगांव और बरसाना में भगवान श्री कृष्ण लीलाएं करते थे. भगवान श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत पर गाय चराने जाते थे. उस समय सभी बृजवासियों में इंद्रदेव की पूजा करने की परंपरा थी. दीपावली के अगले दिन नंद बाबा और बृजवासी इंद्रदेव की पूजा करने की तैयारी में जुटे हुए थे. इसपर भगवान श्री कृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि हम इंद्रदेव की पूजा क्यों करते हैं, जबकि हमारी गायों को भोजन और हमारी अन्य जरूरत गोवर्धन पर्वत पूरी करते हैं. हमें इंद्रदेव के बजाय गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए. इस तरह पहली बार ब्रजवासियों ने इंद्रदेव के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की.

दानघाटी मंदिर में की जाती है पूजा

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कुपित हो गए थे इंद्रदेव :पंडित प्रेमी शर्मा ने बताया जब बृजवासियों ने इंद्रदेव के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की तो इससे इंद्रदेव नाराज हो गए. इंद्रदेव ने ब्रज पर अपना कहर बरपान शुरू कर दिया और दिन-रात मूसलाधार बरसात का दौर शुरू हो गया. पूरा ब्रज बरसात से त्राहिमाम कर रहा था, तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाएं हाथ की कनिष्का उंगली पर गोवर्धन पर्वत को धारण किया और उसके नीचे पूरे ब्रज क्षेत्र के लोग, गाय और जीव जंतुओं ने शरण ली.

इंद्रदेव का किया मान मर्दन :इंद्रदेव गुस्से में 7 दिन 7 रात तक ब्रज क्षेत्र पर मूसलाधार बरसात करते रहे. इस दौरान पूरा ब्रज गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण लेकर बैठा रहा. गोवर्धन पर्वत के ऊपर भगवान श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चलता रहा और पूरे ब्रज क्षेत्र की मूसलाधार बरसात और इंद्रदेव के क्रोध से रक्षा की. आखिर में इंद्रदेव का क्रोध शांत हुआ और वो भगवान श्री कृष्ण की शरण में पहुंचे. तभी से दीपावली के अगले दिन प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जा रही है.

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सप्तकोशीय परिक्रमा से मिलता है पुण्य :पंडित प्रेमी शर्मा ने बताया कि द्वापर युग से ही गोवर्धन पर्वत की महत्ता बढ़ गई, तभी से श्रद्धालु ब्रज क्षेत्र में स्थित गोवर्धन पर्वत के चारों तरफ सप्तकोशीय परिक्रमा लगाते हैं. मान्यता है कि सप्तकोशीय परिक्रमा लगाने से मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और पारिवारिक सभी कष्ट मिट जाते हैं.

ऐसे करें गोवर्धन पूजा :कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को सूरज ढलने के बाद विधि विधान से गोवर्धन पूजा की जाती है. गाय के गोबर से गोवर्धन की प्रतिमा तैयार कर उसकी नाभि में चांदी की कटोरी में दूध, दही, शहद, घी आदि भरकर अन्नकूट और दालबाटी चूरमा का भोग लगाना चाहिए. साथ में भगवान श्री कृष्ण और गायों का भी पूजन करना चाहिए. पूजन के बाद गोवर्धन की प्रतिमा की परिक्रमा लगानी चाहिए.

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