भरतपुर.विधानसभा चुनाव 2023 की रणभेरी बज चुकी है सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं. बड़े-बड़े दिग्गज नेताओं ने अब दिल्ली और जयपुर जैसे महानगरों से निकलकर छोटे-छोटे शहर और कस्बों की दूरी नापना शुरू कर दिया है. लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस की किस्मत का फैसला पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों की जनता तय करेगी. पूरे राजस्थान की कुल जनसंख्या की 40% आबादी इन 13 जिलों में रहती है. इन जिलों की 3.50 करोड़ जनता बीते 6 साल से ईआरसीपी के धरातल पर साकार होने की उम्मीद लगाए बैठी है. लेकिन इस योजना को भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का जरिया बना लिया. दोनों पार्टियों ने केवल इस योजना को फुटबॉल बना दिया बल्कि जनभावनाओं को भी दरकिनार कर दिया. अब आगामी विधान सभा चुनावों में यही ईआरसीपी मुद्दा पूर्वी राजस्थान के साथ पूरे प्रदेश का भविष्य तय करेगा.
ये है योजना और उसका उद्देश :पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) का उद्देश्य दक्षिणी राजस्थान की चंबल, कुन्नू, पार्वती, काली सिंध और उसकी सहायक नदियों के बरसात के पानी को इकट्ठा करना है. इन नदियों के बरसाती जल को पूर्वी राजस्थान की बनास, बाणगंगा, मोरेल, गंभीर और पार्वती नदियों में पहुंचाना है. योजना का उद्देश्य है कि वर्ष 2051 तक इन नदियों के पानी का उपयोग राजस्थान के 13 पूर्वी और दक्षिणी पूर्वी जिलों की पेयजल, औद्योगिक और कृषि की जरूरत को पूरा किया जाएगा.
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ये जिले होंगे लाभान्वित :इस योजना से प्रदेश के भरतपुर, सवाई माधोपुर, करौली, अलवर, दौसा, धौलपुर, झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, अजमेर, टोंक और जयपुर जिलों को पानी मिलेगा. इस योजना के तहत 13 जिलों के 3.50 करोड़ लोगों को पीने के पानी के साथ ही 2 लाख हैक्टेयर नया सिंचाई क्षेत्र सृजित करना और 80 हजार हैक्टेयर क्षेत्र को स्थिरीकरण प्रदान करने की योजना थी.
अब तक ईआरसीपी :असल में वर्ष 2017 में वसुंधरा सरकार ने ईआरसीपी योजना तैयार की थी. इस योजना को तैयार कर इसे जांच और अनुमति के लिए भारत सरकार को भेजा गया. लेकिन अगस्त 2018 में केंद्रीय जल आयोग ने जरूरी संशोधनों के लिए इसे वापस राज्य सरकार को भेज दिया. उसके बाद प्रदेश में कांग्रेस सरकार आ गई. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सरकार के अन्य मंत्रियों का कहना है कि इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाए लेकिन भारत सरकार ने इस ओर कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में इस योजना पर 1000 करोड रुपए खर्च हो चुके थे. जबकि गहलोत सरकार के समय में 700 करोड रुपए खर्च हो चुके हैं. साथ ही 13,800 करोड़ के कार्य कराने की घोषणा भी की जा चुकी है.