पीड़ितों ने बयां किए 31 साल पुराना दर्द भरतपुर.जिले के बहुचर्चित कुम्हेर कांड में 31 साल बाद शनिवार को एससी-एसटी कोर्ट ने फैसला सुना दिया. 9 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, जबकि 41 को बरी कर दिया गया. कुम्हेर कांड के पीड़ित परिवारों को 31 साल के लंबे इंतजार के बाद आखिर न्याय मिल गया, लेकिन जिन परिवारों ने कुम्हेर कांड में अपनों को खोया वो परिजन आज भी उन भयावह हालातों को याद कर सिहर उठते हैं. कहीं बेटे के आंखों के सामने अपने ही पिता को पीट-पीट कर मार डाला तो कहीं जिंदा जला दिया गया. कुम्हेर कांड में फैसला आने के बाद ईटीवी भारत ने ऐसे ही कुछ पीड़ित परिवारों से मुलाकात कर दहशत की कहानी सुनी.
पिता के साथ बचने के लिए निकला था सुभाष : कुम्हेर के बड़ा मोहल्ला निवासी 52 वर्षीय सुभाष चंद ने बताया कि सिनेमा घर से शुरू हुए विवाद ने विकराल रूप ले लिया था. पैंघोर में चामड़ मंदिर पर एक बड़ी पंचायत हुई, उसके बाद भीड़ भड़क गई. सुभाष ने बताया कि 6 जून को सुबह 5 बजे वो शौच के लिए जा रहा था, तभी उसने बड़ी संख्या में पुलिस की गाड़ियों को आते देखा. पुलिस लोगों को पकड़-पकड़ कर ले जा रही थी. सुभाष ने वापस घर पहुंचकर सभी परिजनों को सावधान किया. पुलिस के डर से वो अपने पिता के साथ खेत की तरफ निकल गया.
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आंखों के सामने भीड़ ने पिता को मार डाला :पुलिस और भीड़ के डर से पिता गोपालीराम और सुभाष छुपने के लिए देवकीनंदन पटवारी के घर में घुस गए, लेकिन देवकीनंदन पटवारी ने लोग न देख लें इस डर से दोनों को घर के बाड़े में जाने के लिए बोल दिया. सुभाष और एक अन्य युवक झाड़ियों में छुप गए, जबकि उनके पिता गोपालीराम बाड़े में छुपे हुए थे. दोपहर करीब 1.45 बजे भीड़ का जत्था आया, सभी के हाथों में लाठी, डंडे, फरसा, बल्लम थे. भीड़ ने सुभाष के पिता गोपालीराम को घेर लिया और पीट-पीटकर मार डाला. सुभाष और उसका साथी झाड़ियों में ही छुपे रहे. भीड़ ने आसपास के जाटव समाज के घरों में आग लगा दी. हर तरफ चीख पुकार मची हुई थी. शाम करीब 6.30 बजे आर्मी आ गई और कर्फ्यू लग गया.
पिता का कटा हुआ पैर छुपाया :बड़ा मोहल्ला निवासी फूल सिंह ने बताया कि कुम्हेर कांड के समय उनकी उम्र करीब 24 साल थी. सभी लोग भीड़ से बचने के लिए यहां-वहां जाकर छुप रहे थे. तभी एक पड़ोसी लड़के ने आकर बताया कि तुम्हारे पिता (बुद्धि) को भीड़ ने काटकर मार दिया है. मौके पर जाकर देखा तो पिता का कटा हुआ शरीर बिटौरा (ईंधन रखने की जगह) में पड़ा हुआ था. पिता के कटे हुए पैर को पास ही में घूरे में (गोबर का ढेर) छुपा दिया और पिता के शव को छुपकर जलाया. बाद में पिता का कटा हुआ पैर डीजीपी को सौंपा था.
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कई दिन तक भूखे-प्यासे छुपे रहे :पीड़ित चरण सिंह ने बताया कि कस्बा और आसपास के गांवों से आग की लपटें उठ रही थीं. उग्र भीड़ से बचने के लिए लोग बच्चों को लेकर घर की छत पर छुप गए. पूरी रात बच्चे, महिला सहित पूरा परिवार भूखा-प्यासा छत पर ही छुपा रहा. करीब दो दिन तक बिना पानी और भोजन के इसी तरह छुपकर रहे. बाद में पुलिस पहुंची तब सभी लोग छत से नीचे उतरे और हमें खाना और पानी दिया
ये था मामला :कुम्हेर के बड़ा मोहल्ला निवासी हंसराज ने बताया कि 1 जून 1992 को बड़ा मोहल्ला के चार-पांच युवक कुम्हेर के संजय सिनेमा टॉकीज में फिल्म देखने गए थे. इस दौरान उनमें से एक युवक फिल्म की टिकट लेने के लिए चला गया, बाकी के युवक अंदर गेट पर पहुंच गए और फिल्म के पोस्टर को देखने के लिए खड़े हो गए. तभी संजय सिनेमा के गेट कीपर ने बुलाया और टिकट को लेकर पूछताछ की. युवकों ने कहा टिकट लेने गया है, आ रहा है. इसी बात को लेकर गेट कीपर ने युवकों के साथ धक्का-मुक्की कर दी. छोटे से विवाद ने कुम्हेर कांड का रूप ले लिया. बाद में मजदूर लोग पैंगोर में मजदूरी करने गए तो वहां पर उनके साथ भी मारपीट की गई.