भरतपुर.कान्हा की धरती ब्रज क्षेत्र कृष्ण लीला के लिए विख्यात है. ब्रज की होली भी पूरी दुनिया में खासी पहचान रखती है. द्वापर युग से ही भगवान कृष्ण और राधा रानी की होली की परंपराओं का लगातार निर्वाह किया जा रहा है. आज भी ब्रज के गांव-गांव में वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार बंब के साथ धुलंडी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. लोग होलिका दहन के अगले दिन प्रतिपदा को एक-दूसरे को गुलाल लगाकर धुलंडी मनाते हैं.
बंब के साथ फाग: ब्रज के ग्रामीण क्षेत्रों में धुलंडी के दिन बंब बजाते हुए फाग गाने की परंपरा है. जिले के खेरली गडासिया निवासी कुलदीप ने बताया कि धुलंडी के लिए पहले से बंब तैयार कर लिया जाता है. धुलंडी के दिन सभी लोग गांव के चौक में इकट्ठा हो जाते हैं और बंब के साथ फाग गाते हैं. इस दौरान लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाकर और गले मिलकर होली की शुभकामनाएं देते हैं. कुलदीप ने बताया कि गांव में वर्षों से परंपरा के अनुसार धुलंडी का त्योहार मनाया जाता है.
पढ़ें:Holi 2023 : धुलंडी के दिन निभाई गई तणी काटने की परंपरा, जानें क्या है खास
हाथी पर होली खेलने निकलते थे राजा:भरतपुर रियासत के समय भी धूमधाम से होली मनाई जाती थी. इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि रियासतकाल में महाराजा ब्रिजेंद्र सिंह मोतीमहल से हाथी पर सवार होकर शहर में होली खेलने निकलते थे. लोगों पर रंग गुलाल उड़ाते हुए होली खेलते हुए बिजली घर, गंगामंदिर होते हुए किला स्थित दादी जी के महल तक जाते थे. उनके होली के जुलूस में स्वांग रचने वाले बंदर, भालू बनकर करतब दिखाते हुए चलते थे. सैकड़ों की संख्या में लोग होली के इस पर्व में शामिल होते थे.
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि उससे एक दिन पहले शाम को मोतीमहल में होलिका दहन होता था. मोतीमहल में होलिका दहन के बाद ही पूरी भरतपुर रियासत के गांव-गांव में होलिका दहन होता था. आज भी गांवों में एक ही स्थान पर होलिका दहन होता है. उसके बाद ग्रामीण उस होलिका से लुक्का (मशाल) जलाकर अपने अपने घर लेकर जाते हैं और घरों में होलिका दहन करते हैं.