भरतपुर.क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस गुनाह को न किया जाए और उसकी सजा सबसे डरावनी, दर्दनाक और तड़पा देने वाली मिले. खाकी जिस पर पूरे समाज की रक्षा करने की जिम्मेदारी होती है वो खुद गुनहगार बन जाए तो क्या होगा. एक रिक्शा चालक जिसकी दिन भर की आमदनी से पूरा परिवार चलता है वो अगर सलाखों में बंद हो जाए और बेगुनाह हो उसका दर्द का अंदाजा क्या कोई लगा सकता है. ऐसी ही रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी है अरुण कटारा की, जिसे बेगुनाह होते हुए भी यातनाएं दी गई, तड़पाया गया, डराया गया और धमकाया गया लेकिन फिर सबूत नहीं मिलने की वजह से रिहा कर दिया गया.
गोपालगढ़ मोहल्ला में रहने वाले अरुण कटारा की मां नर्वदा कहती हैं- मेरा बेटा बेगुनाह था लेकिन यह साबित होने में 2 साल का वक्त गुजर गया. आंखों में आंसू भरकर नर्वदा ने बेटे के बेगुनाह साबित होने पर भगवान का शुक्रिया अदा कर रही हैं. वो कहती हैं कि बीते 2 साल के दौरान पुलिस ने उनके बेटे अरुण कटारा को खूब टॉर्चर किया. पूरे परिवार को भी परेशान किया.
नर्वदा कहती हैं, 'मेरे पांच बेटे हैं और सभी इज्जत से मेहनत मजदूरी करके परिवार पाल रहे हैं. हमें किसी से मतलब नहीं होता है हम अपनी जिंदगी से खुश थे, लेकिन पुलिस ने हमारी खुशियां छीन ली. बेटे को जबरन हत्या के आरोप में पकड़ा गया और उसे टॉर्चर किया गया'.
जबरन जुर्म कबूल करने पर मजबूर किया गया
मिथिलेश हत्याकांड में पुलिस ने अरुण कटारा को आरोपी बताते हुए गिरफ्तार किया था. अरुण कटारा 7 महीनों तक सलाखों में बंद रहे इस दौरान कई ऐसी यातनाएं सही जिसे वो भूल नहीं पा रहे हैं.
अरुण कटारा कहते हैं- पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने के बाद 3 दिन तक थर्ड डिग्री टॉर्चर किया. उनके साथ मारपीट की गई और तब तक प्रताड़ित किया गया जब तक जुर्म नहीं कबूल कर लिया. उन्होंने कहा मुझे धमकी दी जाती थी कि अगर कोर्ट में जुर्म कबूल नहीं किया तो बद से बत्तर जिंदगी कर देंगे. उस डरावने लम्हे को याद करते हुए आगे अरुण कहते हैं कि उन्हें उंगली काटने, बिजली हीटर पर पेशाब कराने जैसी धमकी दी जाती थी. यही वजह थी कि डर के मारे कोर्ट में बेगुनाह होते हुए भी जुर्म कबूल कर लिया.
'हत्यारे का भाई बोलकर नहीं मिलती थी नौकरी'
बीते हुए दिनों को याद करते हुए अरुण कटारा के भाई विष्णु उभासी लेते हुए अचानक शांत हो जाते हैं. शायद वो कुछ बोल नहीं पा रहे थे. शब्द मुंह में आकर अटक रहे थे लेकिन फिर वो कोशिश करते हुए खुद को संभालते हैं. विष्णु कहते हैं- पुलिस ने भाई अरुण को मिथिलेश हत्याकांड का आरोपी बताकर गिरफ्तार किया था. इसके बाद का वक्त पूरे परिवार के लिए सदमे के जैसे था. हम तो परेशान ही थे लेकिन आसपास के लोग और कुछ अपने भी गलत तरीके से हमें देखते थे. रास्ते से निकलते तो लोग हत्यारे का भाई बोलकर ताना मारते थे. कहीं पर काम या रोजगार की तलाश में जाते तो कोई भी व्यक्ति उन्हें हत्यारे का भाई बताकर नौकरी पर रखने के लिए तैयार नहीं होता था.