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सुषमा स्वराज के ऐतिहासिक निर्णय से बाड़मेर की रेशमा को मिली थी जन्नत, खुले थे भारत पाकिस्तान तारबंदी के द्वार

पूर्व विदेशमंत्री सुषमा स्वराज हमारे बीच नहीं हैं. मंगलवार रात उनकी दिल्ली के एम्स में हार्ट अटैक से मौत हो गई. लेकिन सुषमा स्वराज को यह देश हमेशा याद रखेगा. वह केवल अच्छे व्यक्तित्व की धनी ही नहीं अच्छी नेता भी थी. उनके कई फैसलों को देश हमेशा याद रखेगा. उन्हीं में से एक निर्णय ऐसा है जिसे राजस्थान का बाड़मेर कभी भूल नहीं पाएगा.

Sushma Swaraj's Historical Decision on reshma

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Published : Aug 9, 2019, 2:42 PM IST

बाड़मेर. सुषमा स्वराज विदेशमंत्री रहते हुए मानवीय संवेदनाओं के मुद्दों में हमेशा तत्पर रहीं. इसी के चलते बाड़मेर की रेशमा के पाकिस्तान में निधन के बाद विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने उसका शव भारत लाने की हर संभव कोशिश की और वह कामयाब भी हुई. अंतत: दोनों देशों भारत और पाकिस्तान ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए पहली बार किसी शव के लिए मुनाबाव बॉर्डर के गेट खोले और रेशमा के शव को भारत लाया गया.

सुषमा स्वराज के ऐतिहासिक निर्णय से बाड़मेर की रेशमा को मिली थी जन्नत

कैसे हुई रेशमा की मदद

दरअसल, राजस्थान के बाड़मेर के अगासड़ी गांव की रेशमा पाकिस्तान अपनी बेटियों से मिलने गई थी. जहां 18 जुलाई 2018 को उसका निधन हो गया. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को इसकी जानकारी मिली. जिसके बाद उन्होंने पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को ट्वीट किया और मदद का आग्रह किया.

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विदेशमंत्री के ट्वीट करते ही पाकिस्तान विदेश मंत्रालय हरकत में आया और परिजनों को रेशमा के शव को भारत ले जाने की अनुमति दे दी, लेकिन पाकिस्तान में चुनाव के चलते कार्यालय बंद थे और परिजनों के वीजा और अन्य दस्तावेज वहां बंद थे. जिसके बाद सोशल मीडिया द्वारा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तक यह जानकारी पुन: पहुंचाई गई और उन्होंने फिर मदद करते हुए पाकिस्तान में भारतीय दूतावास को अवकाश के दिन खुलवाया और परिजनों को दस्तावेज उपलब्ध करवाए.

इस तरह पहुंचा रेशमा का शव भारत
वहीं दस्तावेज मिलने के बाद परिजन शव लेकर रवाना हुए लेकिन थार एक्सप्रेस की रवानगी बॉर्डर से होने लगी. विदेश मंत्रालय तक प्रशासन ने बात रखी तो इसको फिर तवज्जो देते हुए सुषमा स्वराज की मदद से थार एक्सप्रेस को रुकवाया गया. शव समय पर नहीं पहुंचा पाया और रेल को डेढ़ घंटे के इंतजार के बाद रवाना करना पड़ा. जिसके बाद मुनाबाव बॉर्डर ही एक मात्र विकल्प बचा था.

जिससे एक बार फिर उम्मीद की किरण विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की ओर थी. मिडिया से मिली जानकारी के बाद विदेश मंत्री ने फिर ट्वीट किया. विदेश मंत्री की संवेदनशीलता और पाक में इस बात को लेकर पैरवी का नतीजा रहा कि दोनों देशों ने एक साथ 31 जुलाई को निर्णय किया कि मुनाबाव बॉर्डर के गेट खोल दिए जाएंगे.

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पाक रेंजर्स ने रेशमा के जनाजे को दिया कंधा

1 अगस्त को जब बॉडर्र के गेट खुले तो पाक रेंजर्स रेशमा के जनाजे को कंधों पर उठाकर भारत लाए और सामने भारतीय बीएसएफ के जवानों ने शव को कंधों पर लिया. जिसके बाद परिजनों को शव सौंपा गया.

पूर्व विदेशमंत्री सुषमा स्वराज की कोशिशों का नतीजा रहा कि रेशमा अपने वतन लौट सकी और उसका शव सुपुर्द-ए-खाक हो सका. सुषमा स्वराज ने जिस तरह कोशिश के साथ पाकिस्तान से सरहदी जिले बाड़मेर के अगासड़ी गांव की रेशमा का शव वतन लाने में मदद की. यह जिला इस बात को कभी नहीं भूल पाएगा. और हमेशा सुषमा स्वराज को याद रखेगा.

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