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Lalechi Mata Temple Balotra : 800 साल पहले पहाड़ फाड़कर प्रकट हुई थी ललेची माता, नवरात्रि में लगता है आस्था का मेला - shardiya navratri 2023

शारदीय नवरात्रि के दौरान हर देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है. मंदिरों में आने वाले श्रद्धालु मइया के दर्शन करते हुए मन्नतें मांग रहे हैं. इस बीच आज हम आपको बालोतरा में स्थित ललेची माता के इतिहास को बता रहे हैं. इस मंदिर में हर नवरात्रि में आस्था का सैलाब उमड़ता है.

Lalechi Mata Temple in Balotra
बालोतरा में ललेची माता का मंदिर

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 21, 2023, 9:27 PM IST

बालोतरा में ललेची माता का मंदिर

बालोतरा. शारदीय नवरात्र बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है. इस दौरान माता के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जा रही है. शारदीय नवरात्र के इस मौके पर आज हम आपको राजस्थान के बालोतरा जिले में पहाड़ों के बीच में स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जहां देवी एक पहाड़ को फाड़कर प्रकट हुई थी. इस मंदिर को ललेची माता के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है. यहां देवी के तीन रूप देखने को मिलते हैं.

समदड़ी कस्बे के पहाड़ों के बीच ललेची माता का मंदिर स्थित है. नवरात्रि में इस मंदिर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. हजारों की संख्या में यहां श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. मान्यता है कि सदियों पुराने इस मंदिर में आने से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती है. यही वजह है कि लोगों की इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था है.

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800 साल पहले पहाड़ को फाड़कर प्रकट हुई थी देवी : ललेची माता के मंदिर के पुजारी मोहनसिंह राजपुरोहित बताते हैं कि यह मंदिर 800 साल पुराना है. मान्यता है कि धुंबड़ा में नौ देवियों में हुए विवाद के कारण वहां से माता रवाना होकर गुफा के अंदर से समदड़ी के पहाड़ों के बीच प्रकट हुई. आज भी वह सुरंग माताजी की प्रतिमा के पास से गुजरती हुई जालौर जिले के धुंबड़ा तक पहुंचती है.

ललेची माता के बारे में जरूरी तथ्य

देवी के दिखते है तीन रूप : उन्होंने बताया कि यहां कुदरती तौर पर देवी की तीन प्रतिमाएं प्रकट हुई थी. तब से तीनों रूपों में मां की पूजा की जाती है. तीनों ही प्राकृतिक प्रतिमाओं के अलग-अलग रूप हैं. यहां बाल अवस्था, यौवन अवस्था व बुजुर्ग अवस्था के रूप में मां की प्रतिमाएं हैं. सुबह-शाम व दोपहर को मां की तीनों प्रतिमाएं अपना रूप भी बदलती हैं. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में हर पूर्णिमा को मेला लगता है. वहीं, नवरात्रि के समय 9 दिनों तक माता का विशेष श्रृंगार और पूजा-अर्चना की जाती है.

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गोवंश के लिए यहां है ओरण भूमि : पुजारी ने बताया कि पहाड़ फाड़कर माता के प्रकट होने के दौरान हुई तेज गर्जना से कई गायें डरकर जहां तक भागी, वहां तक माताजी की ओरण भूमि है. ओरण भूमि से एक लकड़ी तक गांव के लोग नहीं ले जाते हैं. बेजुबान पशुओं के विचरण के लिए यह जगह छोड़ रखी है. माताजी के नाम से गोशाला का भी निर्माण करवाया गया है, जिसमें हजारों गोवंश हैं.

1997 से हो रहा है भव्य गरबा महोत्सव :मंदिर कमेटी के सचिव प्रकाश मेहता बताते हैं कि मंदिर को लेकर लोगों की बड़ी आस्था है. नवरात्रि के दिनों में यहां हजारों की संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं. उन्होंने बताया कि मंदिर में 1997 से निरंतर गांव के लोगों के सहयोग से युवा भव्य नवरात्र महोत्सव का आयोजन करते हैं. हालांकि कोरोना काल में दो वर्ष के लिए यह आयोजन स्थगित हुआ था.

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पहाड़ों पर बैठकर गरबा देखते हैं लोग :इस मंदिर के प्रति केलोगों की अटूट श्रद्धा जुड़ी हुई है. दूरदराज से श्रद्धालु दर्शन के लिए यहां आते हैं. मंदिर कमेटी के सचिव प्रकाश मेहता बताते हैं कि मंदिर में इस बार भी भव्य गरबा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. ललिता पंचमी और होम अष्टमी को गरबा महोत्सव में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. लोग पहाड़ों पर बैठकर गरबा महोत्सव देखते हैं.

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