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जीतू खटीक मामला: दलित समाज और प्रशासन के बीच दूसरी समझौता वार्ता भी विफल

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Published : Feb 29, 2020, 12:04 AM IST

जीतू खटीक मामले के 36 घटे बीत जाने के बाद भी दलित परिवार को न्याय नहीं मिल रहा है. गहलोत सरकार ने आनन-फानन में पुलिस वालों पर भले ही गाज गिराई गई हो, लेकिन अभी तक परिवार और समाज के लोग अपनी 4 सूत्रीय मांगों को लेकर अड़े हुए हैं. पीड़ित पक्ष और प्रशासन के बीच हुई समझौता वार्ता दूसरी बार भी विफल रही.

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दलित समाज और प्रशासन के बीच दूसरी समझौता वार्ता भी रही विफल

बाड़मेर.जीतू खटीक मामले के 36 घटे बीत जाने के बाद भी दलित परिवार को न्याय नहीं मिल रहा है. परिवार और दलित समाज के लोग अपनी 4 सूत्रीय मांगों को लेकर अभी भी अड़े हुए हैं. धरनास्थल पर जिला और पुलिस प्रशासन के कई आला अधिकारी मौके पर पहुंचकर शव उठाने की समझाइश कर रहे है, लेकिन परिजन अपनी जिद अडिग हैं. इस मामले को लेकर दूसरी बार की गई समझौता वार्ता भी निफल रही.

दलित समाज और प्रशासन के बीच दूसरी समझौता वार्ता भी रही विफल

दलित समाज के नेता लक्ष्मण बडेरा ने बताया कि प्रशासन ने हमें दूसरी बार समझौता वार्ता के लिए बुलाया था और हमने पहले ही 4 सूत्रीय मांग पत्र उन्हें दे दिया. इस मामले में सरकार की ओर से 10 लाख रुपए का मुआवजा, दूसरी मांग पर संविदा पर नगर पालिका में नौकरी और प्लॉट देने का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन इसके लिए हमने साफ तौर पर मना कर दिया है.

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एडीजी रवि प्रकाश ने बताया कि कलेक्टर, आईजी रेंज और हमारी पूरी टीम लगातार प्रयास कर रही हैं. एक प्रस्ताव हमारा था, जो अभी उनके सामने रखा गया, लेकिन उनको वह मंजूर नहीं हुआ. उनकी बेसिक मांग है कि वे एक करोड़ रुपए का मुआवजा, पक्की सरकारी नौकरी और प्लॉट की मांग कर रहे हैं. ऐसा कोई प्रावधान नहीं है इसलिए यह वार्ता फिलहाल सफल नहीं हुई है, लेकिन हम लगातार कोशिश करेंगे, वार्ता से ही हल निकलेगा.

उन्होंने कहा कि सरकार के पास एससी-एसटी एक्ट में जो प्रावधान है, पोस्टमार्टम होगा, उनको वह राशि मिलेगी. साथ ही कहा कि नौकरी का कोई प्रावधान नहीं है, जो भी हमने अपने स्तर पर कुछ किया, उनको वह राशि ऑफर की, लेकिन वह उनको मंजूर नहीं है. वह एक करोड़ रुपए की मांग कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनकी मांगों को सरकार तक कलेक्टर साहब के माध्यम से भिजवा दिया गया है. इस पूरे मामले की पल-पल की खबर से राज्य सरकार को अवगत करवाया जा रहा हैं.

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