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वोकल फॉर लोकल: कुम्हारों के लिए आई खुशियों की दीपावली, मिट्टी के दीयों के सामने फीकी पड़ी चाइनीज लाइटें - भारत और चीन सीमा विवाद

बाड़मेर के कुम्हारों का कहना है कि इस बार खुशियों की दीपावली आएगी. भारत और चीन सीमा विवाद के बाद वोकल फॉर लोकल अभियान जोरों पर हैं. ऐसे में मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ गई है. इस बार चाइनीज लाइटों की रौशनी दीयों के सामने फीकी रहेगी.

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बाड़मेर में मिट्टी के दीयों की बढ़ी मांग

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Published : Nov 6, 2020, 2:22 PM IST

बाड़मेर. इस साल दीपावली मिट्टी के दीयों से और अधिक रौशन होगी. बाड़मेर वासियों ने इस बार स्वदेशी अपनानी की ठानी है. इस कारण बाड़मेर में दीपावली को लेकर मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ गई है. ऐसे में कुम्हारों के घर इस बार लक्ष्मी आने से खुशियां बरसेंगी.

बाड़मेर में मिट्टी के दीयों की बढ़ी मांग

भारत और चीन विवाद के कारण देश में चाइना के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा है. यही वजह है कि देश में चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करने का पूरजोर समर्थन किया जा रहा है. लोग स्वदेशी सामानों की ओर रुख कर रहे हैं. हर साल दीपावली पर चाइनीज लाइटें बाजार में कब्जा जमा लेती थी. इस कारण मिट्टी के दीए चाइनीज लाइटों के सामने टिक नहीं पाती थी और कुंभकारों की दीपावली पर कमाई भी चाइनीज सामान खा जाती थी लेकिन इस बार कुम्हार काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं.

ग्राहकों सिर्फ खरीद रहे मिट्टी के दीये

बाजार भी मांग से बदला

ईटीवी भारत ने बाड़मेर कुम्हारों से बातचीत की. कुम्हारों ने बातचीत के दौरान बताया कि इस बार प्रधानमंत्री द्वारा स्वेदशी वस्तुओं की खरीद पर जोर देने पर बाजार बदला-बदला नजर आ रहा है. मार्केट में दुकानदार मिट्टी के दीयों की अधिक मांग कर रहे हैं. इसलिए इस बार कुम्हारों को कमाई की एक उम्मीद जगी है और वे पूरे परिवार के साथ दीयों के निर्माण में जुटे हैं.

अधिक मांग से ज्यादा बन रहे दीये

दीयों के सामने चाइनीज लाइटें लुप्त

कुम्हारों का कहना है कि इस बार हमारे परिवार के लिए खुशियों की दीपावली आई है. पिछले कुछ सालों से दीपावली के पर्व पर चाइनीज रंग-बिरंगी लाइट्स ने दिये की रोशनी को कम कर दिया था लेकिन इस बार दीयों की रोशनी के आगे चाइनीज लाइटें लुप्त सी हो गई है. पिछले 50 सालों से दीये निर्माण करने वाले बुजुर्ग लालाराम कहते हैं कि इस बार दिवाली को लेकर दीपों की बिक्री पहले से कुछ अच्छी है. इस बार जितने दीये बन रहे हैं, सब बिक रहे हैं.

दीयों में रंग भरता कुम्हार

उत्साहित हैं कुम्हार

कुम्हार पीराराम कहते हैं कि मेरे दादा जी मिट्टी के दीए बनाते थे लेकिन अब मेरे पिताजी मैं और मेरा बेटा हम तीनों मिलकर दीपावली को लेकर मिट्टी के दीए बनाने में जुटे हुए हैं. इस बार जब से मोदी जी ने स्वदेशी की बात कही है, तब से हमारे मिट्टी के दीयों की बिक्री बढ़ी है. पीराराम उत्साहित तो है पर एक निराश भी उनके मन में है. वे कहते हैं कि मिट्टी के दीए बनाने में मेहनत तो ज्यादा लगती है लेकिन दाम उतने नहीं मिलते.

मांग बढ़ने से दाम भी बढ़ा

इस बार बाजार मिट्टी के रंग-बिरंगे दीयों से सजा नजर आ रहा है. दुकानदार लोगों की डिमांड देखकर सिर्फ दीये ही दुकान में रख रहे हैं. मिट्टी के बर्तन और दीपक विक्रेता कानाराम प्रजापत कहते हैं कि पिछले कई सालों के मुकाबले में इस बार मिट्टी के दीयों की डिमांड बढ़ी है.

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हालांकि, कोरोना की वजह से थोड़ी मंदी जरूर है लेकिन लोग खुद सिर्फ दीयों की डिमांड कर रहे हैं. दीया विक्रेताओं का कहना है कि इस बार डिमांड ज्यादा होने से दीयों की कीमत भी बढ़ी है. पहले एक दीपक 1 रुपए में बिकता था, आज दो रुपए में आसानी से बिकता है.

कुम्हारों और दुकानदारों को अच्छी कमाई की उम्मीद

भारत और चीन विवाद के बाद देश में चाइनीज सामान के बहिष्कार से एक अच्छी पहल हुई है. जिससे स्थानीय व्यापार के साथ इन छोटे कुम्हारों की भी दीपावली खुशी से मनेगी क्योंकि हर साल कुम्हारों के दीये चाइनीज सामान के सामने फीके पड़ जाते थे.

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