बालोतरा (बाड़मेर).शहर में 'ममता' जैसे शब्द को कलंकित करने का काम एक मां ने किया है. जहां कुछ घंटों पहले अपनी कोख से बालिका को जन्म देने के बाद ही उसे कंटीली झाड़ियों में फेंक दिया, लेकिन ऊपर वाले ने बच्ची की तकदीर में कुछ और ही लिखा था. 2 से 6 घंटे तक लूनी नदी किनारे लगी झाड़ियों में तड़पती नवजात को मां की ममता तो नहीं मिल पाई, लेकिन वो जिंदगी की जंग जीत गई. इसके लिए वरदान बनकर सामाजिक कार्यकर्ता नेमीचंद माली सामने आए हैं.
मां ने बच्ची को जन्म के बाद फेंका झाड़ियों में क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता नेमीचंद माली रोज मॉर्निंग वॉक पर अपने घर से निकलते हैं. इस दौरान शनिवार को रास्ते में उन्हें सुबह लूनी नदी के किनारे झाड़ियों से रोने की आवाज सुनाई दी. एक बार रुकने के बाद बार-बार रोने की आवाज पर उन्होंने जाकर देखा तो कपड़े में लिपटी एक नवजात बच्ची मिली.
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जिसके बाद उन्होंने वहां से बच्ची को निकाला और उसे लेकर सीधा शहर के राजकीय नाहटा अस्पताल पहुंचे. ये कदम उठाकर माली ने एक मिसाल कायम की है. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में बेटी को लक्ष्मी का रूप माना गया है. इसके बावजूद लोग इसे बोझ मानकर मरने के लिए कचरे, नाले, झाड़ियों और पटरियों पर फेंक रहे हैं. जबकि राज्य और केंद्र सरकार बेटी बचाओ पर हर साल अरबों रुपए खर्च कर कई योजनाएं चला रही है. माली ने बताया कि पचपदरा विधायक मदन प्रजापत ने भी उनसे जानकारी ली और वे खुद अस्पताल पहुंचे और डॉक्टरों से जानकारी ली.
नवजात बच्ची को सामाजिक कार्यकर्ता ने पहुंचाया अस्पताल शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. कमल मूंदड़ा के मुताबिक नवजात का जन्म कुछ घंटे पहले ही हुआ है, जिसके बाद बच्ची को छोड़ दिया गया. बच्ची को शहर के सामाजिक कार्यकर्ता लेकर आए हैं. डॉक्टर ने कहा कि जब उसे लेकर आए थे तो उसका टेम्परेचर अधिक था. अब उसका स्वास्थ्य ठीक है. हम उसे बाड़मेर शिशु गृह में भेजेंगे.