बाड़मेर.मटका पद्धति से पौधों को पानी देने पर समय के साथ मेहनत की भी बचत होगी. एनसीसी कैडेट और उजास ओपन स्काउट रोवर दल के सोलह रोवर्स का जन्मदिन जुलाई माह में आता है. सभी ने चार हजार साल पुरानी एक पौधा एक मटका पद्धति को अपनाते हुए पौधे रोपित किए. पौधे को सुरक्षित करने के लिए मटके का प्रयोग किया जा रहा है, जिसका पानी रिस कर पौधे को संरक्षित करेगा. कैप्टन किशोर जानी ने एनसीसी कैडेट्स को इन पौधों की सुरक्षा और देखभाल को लेकर शपथ दिलाई.
चार हजार साल पुरानी पद्धति 'एक पौधा एक मटका' NCC कैडेट्स ने किया पौधारोपण - पानी की बचत
देशभर भर में पानी बचाने की बात हो रही है. साथ ही पानी के बूंद-बूंद को सहेजे जाने की जरूरत पर भी तमाम कोशिशें की जा रही हैं. ऐसे में बाड़मेर जिला मुख्यालय पर पीजी महाविद्यालय में एनसीसी कैडेट और उजास ओपन स्कॉउट रोवर दल के रोवर्स ने चार हजार साल पुरानी 'एक पौधा एक मटका' पद्धति से पौधारोपण किया.
गौरतलब हो कि पीएम मोदी ने हाल ही में मटका सिंचाई पद्धति का अपने कार्यक्रम मन की बात में जिक्र किया था. उन्होंने अफ्रीका की चार हजार साल पुरानी एक पौधा एक मटका पद्धति की जानकारी ब्लॉक में भी दी है. पीएम ने ब्लॉग में लिखा कि इस पद्धति का इस्तेमाल गुजरात के कई हिस्सों में सालों से किया जा रहा है. इस पद्धति से पानी को 70 प्रतिशत तक बचाया जा सकता है. इससे पौधा हरा भरा रहता है. मटका सिचांई की शुरुआत अफ्रीका में करीबन चार हजार साल पहले हुई थी. अफ्रीका मे इसे ओल्ला कहते है और सिचांई के लिए छिद्रित मटके का इस्तेमाल किया जाता है.
दरअसल, पौधा रोपते समय जो गड्ढा खोदा जाता है. उसी के गड्ढे में कुछ दूर पर कोई पुराना मटका रख देते हैं और मटके की तली में एक छेद किया जाता है. इस छेद से होकर एक जूट की रस्सी पौधे की जड़ तक पहुंचाई जाती है. अब पौधा रोपने के बाद मटकी के निचले हिस्से को पानी भी पौधे की जड़ों की तरह खोदी गई मिट्टी से मटके को मुंह तक ढक दिया जाता है. इससे फायदा यह होगा कि एक बार मटके को पानी से भर देंगे तो अगले चार-पांच दिन तक फिर से पौधे को पानी देने की जरूरत नहीं होगी. मटके की तली में लगी जूट की रस्सी बूंद-बूंद टपकते हुए पौधे की जड़ों तक पानी पहुंचाती रहेगा. जैसे-जैसे पानी लेता रहेगा, वैसे-वैसे मटके का पानी कम होता जाएगा. इस तरह तो पानी, समय और मेहनत की बचत होगी. वहीं दूसरी तरफ पौधे की बढ़ने की गति तेज रहेगी.