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बाड़मेर की 'हीरों': पहले पिता का साया उठा फिर मां ने भी साथ छोड़ा, दादा ने दिया साथ तो बन गई हीरो - Hero Meghwal of Barmer

बचपन में ही पहले पिता का साया सिर से उठ गया फिर मां भी छोड़ गई. इस दौरान परिवार की जिम्मेदारी बुजुर्ग दादा के कंधों पर आ गई. घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई (Hero Meghwal of Barmer) जारी रखी. पढ़िए पूरी खबर...

Hero Meghwal of Barmer clears REET exam
बाड़मेर की 'हीरों' बनी सरकारी शिक्षिका.

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Published : Apr 21, 2022, 9:44 AM IST

बाड़मेर.जिले की रावतसर गांव की हीरों मेघवाल (Hero Meghwal of Barmer) ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद रीट परीक्षा में सफलता हासिल की है. उसने (Rank of Hero Meghwal in REET exam) पहले ही प्रयास में एससी वर्ग में प्रदेश में 134 रैंक प्रप्त किया है. हीरों बाड़मेर जिले के रावतसर गांव में अपने दादा-दादी के साथ रहती हैं. वो बताती हैं कि उन्होंने बारहवीं तक की पढ़ाई गांव में रहकर सरकारी स्कूल से ही की. इसके बाद बीएसटीसी डाइट जैसलमेर से की. पढ़ाई पूरी होने के बाद ही वो रीट परीक्षा की तैयारी में जुट गई थी. जिसके बाद आज हीरों ने 134वीं रैंक लाकर पूरे गांव का नाम रौशन किया है.

हीरों बताती हैं कि उनके जन्म से कुछ माह पहले ही पिता का देहांत हो गया था. वहीं जन्म के बाद ही मां भी चल बसी. बेटे-बहू के चले जाने के बाद हीरों की जिम्मेदारी बुजुर्ग दादा-दादी के कंधों पर आ गई. बुजुर्ग दादा भूराराम ने अपनी पोती को शिक्षिका बनाना चाहते थे. गरीब परिवार होने के कारण वो खेतीबाड़ी और पशुपालन आदि करके घर चलाने के साथ अपनी पोती को पढ़ाते लिखाते थे. बारहवीं तक की पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से करने के बाद बीएसटीसी डाइट जैसलमेर से की. बीएसटीसी पूरी होने के बाद रीट परीक्षा की तैयारी बाड़मेर में चाचा के घर रहकर शुरू की.

बाड़मेर की 'हीरों' बनी सरकारी शिक्षिका.

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उन्होंने बताया कि पढ़ाई के दौरान (REET exam result) लोगों ने लड़की को बाहर पढ़ने को लेकर खूब ताने दिए. लेकिन सब बातों को दरकिनार कर अपने (Hero Meghwal of Barmer clears REET exam) लक्ष्य पर ध्यान दिया. इस दौरान दादा दादी ने हमेशा साथ दिया. वो अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने दादा-दादी को देती हैं.

घर से पैदल जाती थी 6 किलोमीटर : हीरों का कहना है कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई है. गांव की स्कूल दूर होने के कारण 6 किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता था. 2019 में बीएसटीसी (बेसिक स्कूल टीचिंग सर्टिफिकेट) में नंबर आ गया. मुझे बीएसटीसी कॉलेज जैसलमेर मिला था।. 2 साल वहां रहकर पढ़ाई की. दादा-दादी ने अपने हौसलें और हिम्मत से मेरी पढ़ाई कभी रूकने नहीं दी.

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