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विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस: देश तरक्की की राह पर लेकिन मरुस्थल सूखा का सूखा, जानें- ताजा स्थिति - विश्व मरुस्थलीकरण दिवस की खबर

देश लगातार आर्थिक उन्नति कर रहा है. बड़े-बड़े कारखाने, ऊंची-ऊंची इमारतें और चमकदार सड़कें इस दावे को और मजबूत करती है. लेकिन इस तरक्की के बीच कुछ नहीं बदला तो वो है मरुस्थलों की स्थिति. मरुस्थल पहले भी सूखे की समस्या से जूझ रहे थे और आज भी जूझ रहे हैं. मरुस्थलों में रहने वाले लोग पहले भी पेयजल समस्या से परेशान थे और आज भी परेशान ही हैं. विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस पर ईटीवी भारत की टीम विशेष पड़ताल की और जाना की यहां रहने वाले लोगों के सामने आने के समय में कौन-कौनसी चुनौतियां हैं. देखें- ये स्पेशल रिपोर्ट...

बाड़मेर के मरुस्थल, Deserts of Barmer
विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस

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Published : Jun 17, 2020, 7:03 AM IST

बाड़मेर. क्षेत्रफल की दृष्टि से देश के सबसे बड़ा राज्य राजस्थान का कुल क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किलोमीटर है. राजस्थान के भू-भाग का 2,00,000 वर्ग किलोमीटर रेगिस्तानी है. ऐसे में स्वतः ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के उत्तर पश्चिमी हिस्से में मरुस्थलीकरण कितनी बड़ी समस्या हो सकती है. थार, रेगिस्तान के भारतीय क्षेत्र के साथ ही देश का सबसे गर्म जोन भी है. राजस्थान में देश के कुल शुष्क क्षेत्र (32 मिलियन हेक्टेयर) में से सबसे अधिक हिस्सा (20.8 मिलियन हेक्टेयर या 62 प्रतिशत) आता है. थार रेगिस्तान पूर्व में अरावली पर्वत शृंखला के पश्चिमी किनारे से लेकर पश्चिम में सिंधु नदी के मध्य तक स्थित है. थार में अम्लता सूचकांक पूर्व में -66.6 प्रतिशत से लेकर पश्चिम में अधिकतम -93.7 प्रतिशत तक है.

'विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस'

अरावली पर्वत और सिंधु नदी दोनों ही थार के पर्यावरण के क्षेत्रीय जलवायु, भू-भाग और जलीय विज्ञान को प्रभावित करते हैं. मौसमी और वार्षिक तापमान सीमा यहां काफी अधिक है. गर्मियों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है, जबकि सर्दियों में यह -4 डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है. वार्षिक औसत वर्षा भी यहां बहुत कम होती है, जो एक साल के दौरान पश्चिम में 100 मिमी से लेकर और पूर्वी भाग में 500 मिमी तक हो सकती है, लेकिन रेगिस्तान में वाष्पीकरण की अत्यधिक दर (1,800 मिमी) के चलते पानी की उपलब्धता काफी कम हो जाती है.

जानवर भी तरस रहे पानी की एक बूद के लिए

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खासकर गर्मियों में हवा की गति कभी-कभी बहुत अधिक (40-60 किमी प्रति घंटा) हो जाती है, इस दौरान कम आर्द्रता के चलते पर्यावरण असुविधाजनक हो जाता है. वातज या रेत से ढके इलाके यहां के 80 प्रतिशत क्षेत्र में फैले हुए हैं. इस भू-भाग का अधिकतर हिस्सा रेत के टीलों से ढका हुआ है. भौगोलिक रूप से 12 जिलों और 4 कृषि-जलवायु क्षेत्रों व एक प्रमुख कृषि भूमि उपयोग वाले हिस्से में बंटे पश्चिमी राजस्थान में एक बड़ी आबादी (2011 की जनगणना के अनुसार 28 मिलियन) निवास करती है.

'विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस':

17 जून को 'विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस' है. इस मौके पर ईटीवी भारत आपको बताएगा कि रेगिस्तान के ग्रामीण इलाकों में आज से 30-40 साल पहले किस तरीके के हालात हुआ करते थे. जब से लोगों ने मरुस्थल के साथ छेड़छाड़ की है उसके बाद लोगों का जीना पूरी तरीके से बेहाल हो गया है. बता दें की पहले रेगिस्तानी इलाकों में लोगों के लिए सब कुछ पशुधन हुआ करता था. उनकी पहचान भी पशुधन से हुआ करती थी. रेगिस्तान के रहने वाले राजा राम भील बताते हैं कि 20-30 साल पहले जब किसी का रिश्ता करना होता था तो यह देखा जाता था कि उसके घर में किस तरीके का पशुधन है. जिसके पास ज्यादा पशुधन है मतलब वह उस इलाके का सबसे धनी व्यक्ति है.

मीलों दूर पानी की तलाश

परंपरागत पशु मेलाः

उस जमाने में लोग अपने पशुओं को बेचने के लिए जगह-जगह रेगिस्तानी इलाकों में परंपरागत पशु मेले लगाया करते थे. कभी धोरीमना में कभी बालोतरा में कभी बाड़मेर में तो कभी कहीं और. इसी तरीके से लोगों का पूरा व्यापार चलता रहता था. लेकिन अब सब कुछ बदल गया है. 20-30 साल पहले प्रकृति मरुस्थल पर पूरी तरह से मेहरबान हुआ करती थी. लोगों के पानी के परंपरागत सोर्स पूरे तरीके से भरे रहते थे. लेकिन जैसे लोगों ने कुएं, बांवड़ी और तालाबों की अनदेखी की तो उसके बाद आज रेगिस्तान के लोग पानी की एक-एक बूंद को तरस रहे हैं.

पानी को तरसते कंठ

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जिले के 81 साल के कानाराम बताते हैं कि काफी साल पहले हालात बहुत अच्छे थे. उस समय लोग रेगिस्तान में महज 1 रुपए के लिए मजदूरी करते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है. जो गांव थे वह शहर में तब्दील हो रहे हैं. जिस वजह से गांवों में अब पानी की भी समस्या काफी हो गई है. वन्य प्रेमी मुकेश अमन बताते हैं कि जिस तरीके से लगातार गांव के अंदर ओरण और गोचर को लेकर अतिक्रमण किया जा रहा है जिसके चलते अब पशुओं के खाने पीने की भी दिक्कत हो रही है. जिससे पशुओं की मौत हो जाती है. मुकेश का कहना है कि अगर लोगों ने समय रहते पानी के स्रोत पर ध्यान नहीं दिया और उसका खामियाजा आज के समय में ग्रामीण इलाके के लोग भुगत रहे हैं.

पानी की जद्दोजहद

रेगिस्तान के जहाज को बचाने के लिए कोई गंभीर नहीं

जिले के वरिष्ठ पत्रकार शिव प्रकाश सोनी बताते हैं कि रेगिस्तान के जहाज ऊंट को कागजों में तो सरकार ने राज्य पशु घोषित कर दिया है. लेकिन जमीनी स्तर पर इसे बचाने के लिए किसी भी तरीके का कोई विशेष अभियान नहीं चलाया गया है. जिसके चलते दिन-ब-दिन रेगिस्तानी इलाकों में रेगिस्तान का जहाज दम तोड़ रहा है. प्रकृति से छेड़छाड़ का अंजाम आज लोगों को ही भुगतना पड़ रहा है. लोगों को पानी की एक बूंद के लिए कई किलोमीटर का सफर और रात भर इंतजार करना पड़ रहा है. क्योंकि इलाके में पानी का लेवल हर दिन कम होता जा रहा है.

'विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस' के मौके पर हम आपको बताने का प्रयास किया कि अगर समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति और भी ज्यादा भयावह हो जाएगी.

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