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बाड़मेर में डॉक्टरों की मेहनत लाई रंग, बैस सर्किट से कोरोना के रोगी हो रहे ठीक - बैस सर्किट

राजस्थान में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है. वहीं, बाड़मेर में 45 साल की दामी जिसको फेफड़ों में इंफेक्शन था. जिसके बाद महिला को अस्पताल में 17 दिन तक बैस सर्किट पर रखा गया था जो कारगार साबित हुआ. जिसके बाद अब महिला को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है.

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बाड़मेर में बैस सर्किट से कोरोना मरीज हो रहे ठीक

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Published : May 27, 2021, 7:17 PM IST

बाड़मेर.राजस्थान के बाड़मेर जिले के मेडिकल कॉलेज में कोरोना मरीजों की जान बचाने में लगे डॉक्टरों की मेहनत रंग ला रही है. ऐसे ही 45 वर्षीय दामी जिसको फेफड़ों में इन्फेक्शन (एचआरसीटी ) का स्कोर 22 और ऑक्सीजन लेवल 30 के आसपास था. उसी 27 दिन पहले मेडिकल कॉलेज के गर्ल्स हॉस्टल की कोविड-19 सेंटर में भर्ती करवाया था. असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विक्रम सिंह की टीम लगातार इस मरीज का इलाज कर ली थी 27 दिन बाद सब कुछ डिस्चार्ज कर दिया गया है.

बाड़मेर में बैस सर्किट से कोरोना मरीज हो रहे ठीक

दरअसल जिले के गुड़ामालानी नालपुरा निवासी दामी (45) को 30 अप्रैल को मेडिकल कॉलेज अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती हुई थी. मेडिसिन असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विक्रम सिंह के अनुसार इस मरीज को 17 दिन तक बैस सर्किट पर रखा गया था जो कारगार साबित हुआ. साथ ही दामी को उसके बाद 7 दिन तक हाई फ्लो ऑक्सीजन पर रखा गया और फिर इसकी धीरे-धीरे रिकवरी होती गई. मरीज को दो दिन तक हमनें बिना ऑक्सीजन के हॉस्पिटल में रोककर रखा. कोई तकलीफ हो जाए या ऑक्सीजन की जरूरत पड़ भी जाए लेकिन दो दिन तक ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ी और आज 27 दिन बाद तक कुशल अस्पताल से छुट्टी दी गई है.

क्या है बैस सर्किट

डॉ. विक्रम सिंह का कहना है कि बैस सर्किट गले में नली डालकर कृत्रिम ऑक्सीजन देने का तरीका हैं. वैंटिलेटर पर शिफ्ट करने से पहले मरीज को बैस सर्किट पर रखा जाता है. वो ट्यूब डालकर रखते है, लेकिन इस बार हमारे प्रिंसिपल ने एक तरीका बताया था कि मास्क को बैस सर्किट से कनेक्ट करके उस पर मरीजों को रखें. यह तरीका बहुत ही कारागार साबित हुआ है.

गौरतलब है कि इस बार बाड़मेर जिले के मेडिकल कॉलेज के राजकीय अस्पताल के इलाज की चर्चा पूरे राजस्थान में है. यहां तक की दूसरी लहर में बाड़मेर के राजकीय अस्पताल में जैसलमेर जालौर से लेकर जयपुर गुजरात तक के मरीज अपना इलाज करवा कर सही सलामत घर लौटे हैं. यह अपने आप में इस बात को दर्शाता है कि किस तरीके से मेडिकल कॉलेज बनने के बाद डॉक्टरों की टीम लगातार लोगों की जान बचाने के लिए पूरी मेहनत कर रही है और उसी का नतीजा है कि इस तरीके की गंभीर जान बच रही है.

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आमतौर पर मेडिकल कॉलेज से पहले राजकीय अस्पताल बाड़मेर के मरीजों को ज्यादातर जोधपुर रेफर किया जाता था लेकिन अब गंभीर मरीजों का इलाज भी इसी अस्पताल में हो रहा है और उसके बाद वह सही हो कर घर जा रहे हैं.

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