बाड़मेर.सरहदी रेगिस्तानी इलाके बाड़मेर में जीनगर समाज की महिलाओं की ओर से लेदर पर कढ़ाई की जाती है. आज के मशीनी युग में भी बाड़मेर में जीनगर समाज की महिलाएं हाथों से घंटों तक लेदर पर बारीकी से कशीदाकारी का कार्य करती हैं. इस प्रकार की कशीदाकारी से जूतियां और बैग को ना केवल खूबसूरत बनाया जाता है बल्कि इसी वजह से ये ग्राहकों का दिल भी जीत लेती हैं.
लेदर पर कढ़ाई सीखती युवतियां बाड़मेर में जीनगर समाज की महिलाएं अपनी इस कलाकारी को बचाने के लिए अब युवा पीढ़ी की बेटियों को भी लेदर पर कशीदाकारी का काम सिखा रही हैं. जिगर मोहल्ले में करीबन 25 से 30 महिलाओं का समूह है जो लेदर पर कशीदाकारी का कार्य करता है. वहीं महिलाएं अब अपनी इस कला को बचाने के लिए बेटियों को भी लेदर पर कशीदाकारी की ट्रेनिंग दे रही हैं.
लुप्त हो रही कशीदाकारी को बचा रही अगली पीढ़ी मेहनत ज्यादा, मजदूरी कम
पिछले 25 वर्षों से लेदर पर कशीदाकारी का कार्य कर रही धापू देवी बताती हैं कि लेदर पर कशीदाकारी के कार्य में मेहनत ज्यादा होती है, लेकिन मजदूरी कम मिलती है. वह बताती हैं कि पहले इसमें ज्यादा मजदूरी नहीं मिलती थी, लेकिन अब सरकार ने कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम के लेदर क्राफ्ट पर 15 दिन का शिविर लगाया है. जिसमें अच्छी मजदूरी मिल रही है. इसके साथ ही वह कई लड़कियों और महिलाओं को लेदर पर कशीदाकारी का कार्य सिखा रही हैं. जिससे उन्हें भी रोजगार मिलेगा.
लेदर पर खूबसूरत कशीदाकारी करती महिला कशीदाकारी का कार्य सीख रही ही बालिका दुर्गा ने बताया कि हस्तशिल्प कला लुप्त होती जा रही है, लेकिन इस शिविर के माध्यम से उन्हें हस्तशिल्प को लुप्त होने से बचाया जा सकता है और वे खुद इस शिविर में प्रशिक्षण लेकर लेदर पर कशीदाकारी सीख रही हैं. उन्होंने बताया कि हमारे जीनगर समाज की कई बुजुर्ग महिलाएं जो लेदर पर कशीदाकारी का हुनर जानती है वे अब हमें सिखा रही हैं जिससे लुप्त हो रही हस्तशिल्प कला को बचाया जा सकता है.
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गौरतलब है कि लेदर से बैग, पर्स, बेल्ट, जूते आदि कई प्रकार की वस्तुएं बनाई जाती है. लेदर पर हाथों से बेहतरीन कढ़ाई कर एक से एक डिजाइन दार जूतियां, बैग सहित कई प्रकार के लेदर से निर्मित प्रोडक्ट तैयार किए जाते हैं, जो हर किसी को अपनी ओर खींच लेते हैं.