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बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्रः दिग्गज नेताओं के पार्टी बदलते ही समीकरण भी बदले, जानें कौन किस पर भारी

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Published : Mar 23, 2019, 3:34 PM IST

2014 चुनाव में जातिगत समीकरण उस वक्त बदले जब कांग्रेस के कद्दावर नेता कर्नल सोनाराम चौधरी की एंट्री भाजपा में हुई.

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बाड़मेर.किसी भी चुनाव में जातिगत वोट बैंक पार्टियों को लिए सत्ता की चाबी की तरह होता है. पार्टियां समय-समय पर जातियों को साधने के लिए लोकसभा प्रत्याशियों के चेहरों में बदलाव करती रहती हैं. लेकिन बाड़मेर-लोकसभा सीट पर खुद प्रत्याशियों के चेहरे बदल जाने से वहां के समीकरण बदलकर कर रख दिए हैं.

बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र में 2014 चुनाव में जातिगत समीकरण उस वक्त बदले जब कांग्रेस के कद्दावर नेता कर्नल सोनाराम चौधरी की एंट्री भाजपा में हुई. अबतक कांग्रेसी रहे सोनाराम को भाजपा के टिकट से मैदान में उतारा गया जबकि अटल सरकार में विदेश मंत्री रहे कद्दावर नेता जसवंत सिंह का टिकट काट दिया गया. ऐसी स्थिति में जसवंत सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा. उसी समय से इस लोकसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण बदल गए.

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इससे पहले यह देखा जाता था कि एक बड़ा वोट बैंक जाट-किसान कांग्रेस खेमे में ज्यादा जाता था वहीं राजपूत मतदाताओं को भाजपा का एक बड़ा वोट बैंक माना जाता था. लेकिन जसवंत सिंह के निर्दलीय आने और कर्नल सोनाराम के भाजपा में आने से तमाम समीकरण बदले और जाटों का वोट भाजपा के खाते में आना शुरू हो गया. हालांकि इस वोट बैंक का खास फायदा कर्नल सोनाराम विधानसभा में नहीं उठा पाए और उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

लेकिन इसी के साथ एक बड़ा बदलाव बीते दिसंबर में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में तब देखने को मिला जब पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह के पुत्र मानवेन्द्र सिंह ने स्वाभीमान का झंडा बुलंद करते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया. मानवेन्द्र सिंह के कांग्रेस खेमे में जाने के चलते यहां के जातिगत समीकरण में बड़ा उथल-पुथल देखने को मिला है. इस राजनीतिक बदलाव का नतीजा यह भी रहा कि कांग्रेस ने यहां अच्छी बढ़त बनाई.

बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट का इतिहास
1952-1957 - भवानी सिंह-निर्दलीय
1957-1962 - रघुनाथ सिंह बहादुर-निर्दलीय
1962-1967 - तन सिंह -राम राज्य परिषद
1967-1971 - अमृत नाहटा - कांग्रेस
1971-1977- अमृत नाहटा - कांग्रेस
1977-1980 - तन सिंह- जनता पार्टी
1980-1984 - विरधी चन्द जैन- कांग्रेस
1984-1989 - विरधी चन्द जैन- कांग्रेस
1989-1991 - कल्याण सिंह कालवी- जनता दल
1991-1996 - राम निवास मिर्धा - कांग्रेस
1996-1998 - कर्नल सोनाराम- कांग्रेस
1998-1999 - कर्नल सोनाराम- कांग्रेस
1999-2004- कर्नल सोनाराम- कांग्रेस
2004-2009- मानवेन्द्र सिंह- भाजपा
2009-2014- हरीश चौधरी- कांग्रेस
2014 से 2019-कर्नल सोनाराम- भाजपा

जातिगत समीकरण
बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा 3.50 लाख के आसपास वोटर्स जाट-किसानों के हैं. अनुसूचित जाति और जनजाति के तीन लाख के आसपास, तीन लाख के आसपास ही मुस्लिम वोटर और करीब ढ़ाई लाख के आसपास राजपूत और रावणा राजपूत मतदाता हैं. इस सीट पर अक्सर देखा गया है कि कोई भी दो यां उससे अधिक जातियां आपस में मिलकर एकतरफा वोट करती हैं जिससे जीत-हार तय होती है. कर्नल सोनाराम जब पिछली बार जीते थे तो जाट मतदाताओं के साथ-साथ उन्हें अनुसूचित और जनजाति मतदाताओं का समर्थन भी प्राप्त हुआ था.


इन 8 विधानसभाओं के मतदाता करते हैं सांसद का चुनाव
बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभाएं आती हैं. हाल 7 विधानसभा क्षेत्रों पर कांग्रेस का कब्जा है. वहीं एकमात्र सिवाना विधानसभा सीट भाजपा के खाते में है. इस स्थिति को देखते हुए लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूत माना जा सकता है.
बाड़मेर-कांग्रेस
शिव-कांग्रेस
बायतू-कांग्रेस
चौहटन-कांग्रेस
गुढ़ामलानी-कांग्रेस
पचपदरा-कांग्रेस
जैसलमेर-कांग्रेस
सिवाना-भाजपा

इस बार समीकरण बदले
2014 में मोदी लहर के चलते भाजपा ने यहां एक बड़ी जीत दर्ज की थी. तब राज्य में भी भाजपा की सरकार थी और लोकसभा क्षेत्र के दायरे में आने वाली विधानसभाओं पर भी भाजपा ही थी. लेकिन इस बार समीकरण काफी बदल चुके हैं. कांग्रेस के पास यहां सीट से उतारने के लिए बेहतरीन विकल्प हैं वहीं भाजपा के पास ऐसा कोई करामाती चेहरा नहीं है जो इस विरोधी लहरों के बीच पार्टी की नैय्या पार उतार सके.


दूसरा इस लोकसभा सीट का इतिहास यही रहा है कि राज्य में जिसकी सरकार होती है उसी का प्रत्याशी यहां जीत दर्ज करता है. इस बार कांग्रेस के सात विधायक मौजूदा स्थिति में हैं जाहिर सी बात है अपनी पार्टी के प्रत्याशी को जिताने में दमखम लगाएंगे. वहीं एक फेक्टर के तौर पर यह भी देखने वाली बात होगी कि हनुमान बेनीवाल किस जाती से अपना उम्मीदवार मैदान में उतारते हैं.

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