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भील दर्शन पर मंथन: वक्ता बोले- आदिवासी हमारे पूर्वज, हम इनकी संतानें

बांसवाड़ा में गोविंद गुरु राजकीय महाविद्यालय में 'भील दर्शन' पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है. जिसमें देशभर से आए वक्ताओं ने आदिवासी संस्कृति पर अपने विचार व्यक्त किए.

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Published : Sep 9, 2019, 6:00 PM IST

बांसवाड़ा. भारतीय दार्शनिक शोध परिषद नई दिल्ली की ओर से गोविंद गुरु राजकीय महाविद्यालय में 'भील दर्शन' पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है. सोमवार को पहले दिन देशभर से आए विद्वानों की ओर से इस पर अपने शोध रखे गए. इस मंथन में अधिकांश वक्ताओं का मानना था कि आदिवासी हमारे पूर्वज थे और हम उनकी संतान हैं. साथ ही आदिवासी संस्कृति और दर्शन के संरक्षण की जरूरत निरूपित की गई.

भील दर्शन पर मंथन

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मौलिकता खोती जा रही ये संस्कृति

प्रारंभ में अतिथियों ने गोविंद गुरु की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन और माल्यार्पण किया. संगोष्ठी का संचालन कर रहे राजनीतिक विज्ञान के सह प्राचार्य महेंद्र मीणा ने इसकी शुरुआत करते हुए कहा कि आदिवासी दर्शन और संस्कृति असमंजस का शिकार है. यह संस्कृति आज भी जीवित है लेकिन अपनी मौलिकता खोती जा रही है. प्रश्न संस्कृति और दर्शन का नहीं है, आदिवासीयत का है. विकास और संस्कृति की उलझन के बीच अब धर्म आ गया है.

आयोजन सचिव डॉक्टर महेंद्र प्रसाद ने कहा कि प्रसन्न रहना और दूसरे दिन की चिंता नहीं करना यह आदिवासी दर्शन है और किसी और संस्कृति में यह गुण नहीं मिलता. विशिष्ट अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय संस्कृति विभाग के डॉ वेदप्रकाश ने कहा कि जिस प्रकार ऑस्ट्रेलिया के ध्वज पर कंगारू और श्रीलंका के झंडे पर शेर का चिन्ह है उसी प्रकार आदिवासी लोगों के ध्वज पर वानर का चिह्न मिलता है. उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं से भी आदिवासियों के प्रकृति पूजन को जोड़ा.

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आदिवासियों ने की आस्थास्थलों की रक्षा

स्वामी नारायण संस्थान स्वामी नारायण संस्थान नई दिल्ली के जेएन दवे ने अफसोस जताया कि जितना हम दूसरों के लिए करते हैं उतना इस वर्ग के लिए नहीं किया गया जबकि आज भी इन्हें रामायण के कई गीत और श्लोक कंठस्थ है. जरूरत उन्हें गले लगाने की है. मुख्य वक्ता प्रादेशिक परिवहन अधिकारी उदयपुर डॉक्टर मन्नालाल रावत ने खुद को आदिवासी बताते हुए कहा कि मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक आदिवासियों द्वारा ही हमारे आस्था स्थलों की बहादुरी के साथ रक्षा की गई.

मुख्य अतिथि भारतीय दार्शनिक शोध परिषद नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ सिद्धेश्वर भट्ट ने कहा कि आदिवासी हमारे पूर्वज रहे हैं और हम आदिवासियों की संतान हैं हमें इनसे बहुत कुछ सीखने की जरूरत है.

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मंगलवार को होंगे शोध पत्र प्रस्तुत

अध्यक्ष पद से स्थानीय महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ सीमा भूपेंद्र शर्मा ने कहा कि हमें खुशी इस बात की है कि प्रकृति से जुड़े इन लोगों के बीच ही परिषद द्वारा यह कार्यक्रम करवाया जा रहा है. आयोजन से जुड़े डॉ प्रमोद वैष्णव ने बताया कि मंगलवार को भी कई वक्ता अपने शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे.

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