बांसवाड़ा. हर इंसान की तमन्ना सात समंदर पार जाने की होती है. लोग मोटी कमाई की आस में अरब देश में जाते हैं. जिले से अच्छी कमाई की आस में कुवैत गए श्रमिकों की लॉकडाउन में हालत खराब हो गई है. घर लौटे मजदूरों ने बताया कि वो पिछले साढ़े तीन महीने से वो सभी कमरों में बंद थे. वहां मजदूर खाने के लिए दानदाताओं पर निर्भर हैं. ऐसे में उन्हें कई बार भूखे पेट सोने के लिए मजबूर होना पड़ा.
कुवैत गए श्रमिकों में खासकर कांटेक्ट पर जाने वाले लेबर की हालत बदतर है. लॉकडाउन के कारण कोई इनका का सोच भी नहीं रहा. ऐसे में देश लौटना तो दूर उनके खाने-पीने तक के लाले पड़ गए हैं. हाल ही में कुवैत से लौटे कुछ प्रवासी मजदूरों से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. जिसमें कुवैत में फंसे मजदूरों की हालत सामने आई. वागड़ अंचल के प्रतापगढ़, बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों से करीब 30 हजार लोग कुवैत सहित अरब कंट्रीज में काम कर रहे थे. जिनमें से कोरोना महामारी के बाद बड़ी संख्या में लोग अपने वतन लौट आए.
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एयरपोर्ट के बाद इन लोगों को अपने-अपने इलाकों की संस्थाओं में क्वॉरेंटाइन किया जा रहा है. जिले में इनके लिए लोधा स्थित नवोदय विद्यालय को आरक्षित किया गया है, जहां पर करीब पौने दो सौ प्रवासी भारतीयों को रखा गया है. ईटीवी भारत ने क्वारंटाइन की व्यवस्थाओं के साथ कुवैत के हालात पर श्रमिकों से बातचीत की तो कांटेक्ट मजदूरों के भयावह हालात सामने आए.
श्रमिकों का कहना है कि मार्च से कुवैत में लॉकडाउन चल रहा है. ऐसे में 3 महीने से अधिक समय से वह लोग अपने किराए के मकानों में कैद होकर रह गए थे. उस पर काम-धंधा बंद होने से गुजारा भी मुश्किल हो गया था. इसी कारण वह अपने घर लौटना चाहते थे लेकिन आए तो भी कैसे, फ्लाइट भी बंद थी. भारत सरकार ने जून के दूसरे पखवाड़े में फ्लाइट शुरू की लेकिन किराए काफी था. उसमें भी वेटिंग लिस्ट काफी बड़ी थी. ऐसे में हमें लंबे समय तक फ्लाइट का इंतजार करना पड़ा.