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बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर चला किसका मैजिक, 23 मई को नतीजे बताएंगे - Loksabha Election 2019

प्रदेश की सभी 25 सीटों पर मतदान संपन्न हो चुका है. बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट पर 29 अप्रैल को रिकॉर्ड मतदान हुआ. इस सीट पर पार्टियों ने अपनी-अपनी जीत के दावे करने शुरू कर दिए हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर

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Published : May 6, 2019, 7:54 PM IST

बांसवाड़ा.29 अप्रैल को प्रदेश की 13 लोकसभा सीटों के साथ बांसवाड़ा संसदीय क्षेत्र के लिए हुए मतदान ने भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दलों के नेताओं को टेंशन में ला दिया है. यहां बाड़मेर के बाद सर्वाधिक मतदान हुआ. जिसे लेकर पार्टी नेता भी खुलकर कोई निष्कर्ष नहीं निकल पा रहे हैं.

आजादी के बाद से पहली बार यहां रिकॉर्ड 72.81 प्रतिशत मतदान हुआ है जबकि यहां मोदी फैक्टर के अलावा कोई अन्य मुद्दा भी प्रभावी नहीं रहा है. इसके बावजूद मतदाताओं का पोलिंग बूथों पर पहुंचना कई प्रकार के कयासों को जन्म दे रहा है. इस सीट पर भाजपा के मैदान में आने से पहले कांग्रेस के अलावा समाजवादी दल प्रभावी रहे हैं. लेकिन 90 के दशक के बाद भाजपा ने अपने पैर पसारे और वर्ष 2000 के आते-आते अपनी जड़े जमा ली.

इसके बाद से ही भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा चुनावी मुकाबला होता रहा है. लेकिन हाल ही में प्रदेश में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में बीटीपी ने डूंगरपुर जिले की सागवाड़ा और चौरासी दोनों सीटें जीतकर राजनीतिक पंडितों को भी चौंका दिया था. उसके चार महीने बाद पार्टी ने लोकसभा चुनाव में उतर कर भाजपा और कांग्रेस के लिए मुसीबत पैदा कर दी है. क्योंकि भाजपा का मुख्य आधार यूथ रहा है जिस पर बीटीपी ने पकड़ बना ली. हालांकि इसका सबसे ज्यादा खतरा कांग्रेस को माना जा रहा है.

VIDEO: बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर बढ़े मतदान ने बढ़ाई भाजपा-कांग्रेस की टेंशन

बीटीपी ने बढ़ाया अपना नेटवर्क
इस सीट पर युवा को छोड़कर शेष अन्य आदिवासी मतदाता जो परंपरागत रूप से कांग्रेस का वोट बैंक रहा है, बीटीपी उन्हें भी अपनी ओर मोड़ने में सफल रहा है. इस प्रकार जहां कांग्रेस को सीधा नुकसान अपने परंपरागत वोट बैंक से हो सकता है वहीं भाजपा को युवा वर्ग से अपना आधार खिसकता दिखाई दे रहा है. दोनों ही प्रमुख दलों ने चुनाव प्रचार में कोई कमी नहीं रखी. वहीं बीटीपी ने भी अपना प्रचार विधानसभा चुनाव की तर्ज पर किया. इस नई नवेली पार्टी के नेता हर गांव में व्यक्ति से घर-घर पहुंचे और युवाओं पर अपना जाल फेंका.

जानकार सूत्रों के अनुसार बीटीपी को युवाओं के साथ-साथ सरकारी कर्मचारियों का भी गोपनीय तरीके से खासा सपोर्ट रहा है. हैरत की बात यह है कि अधिकांश आदिवासी युवा बीटीपी के गुणगान करता दिखाई दे रहा है. कुछ लोगों से बात करने पर सामने आया कि बांसवाड़ा में भी बीटीपी को खासा सपोर्ट मिला है जबकि अब तक इसका प्रभाव डूंगरपुर जिले में ही माना जा रहा था.

विधानसभा चुनाव में बीटीपी ने करीब पौने दो लाख वोट हासिल किए थे. हालांकि बीटीपी का प्रभाव क्षेत्र डूंगरपुर ही रहा लेकिन लोकसभा चुनाव को देखते हुए उसने बांसवाड़ा में भी अपनी जड़ें जमा लही. जानकारों का मानना है कि बीटीपी इन 4 महीनों में काफी उलटफेर करने में कामयाब रही है. हालांकि कांग्रेस ने बेणेश्वर में राहुल गांधी की सभा करवा कर अपने टूटते मतदाताओं को बचाने का प्रयास किया लेकिन बीटीपी की भाषा युवा वर्ग में घर कर गई है. इस कारण राहुल गांधी का कार्ड कांग्रेस को कितना सहारा दे पाएगा यह कहा नहीं जा सकता.

कांग्रेस में गुटबाजी तो भाजपा ने भुनाए मौके
कांग्रेस की गुटबाजी किसी से छुपी नहीं है. यहां तक की राहुल गांधी की जनसभा के दौरान भी पार्टी की गुटबाजी खुलकर सामने आ गई थी. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी ताराचंद भगोरा दोनों ही जिलों के प्रमुख नेताओं का विश्वास हासिल नहीं कर पाए और कुछ लोगों के ही भरोसे रहे. चुनाव प्रचार कार्य भी भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का काफी फीका रहा. इन कारणों को देखते हुए फिलहाल इस सीट पर भाजपा और बीटीपी के बीच चुनावी संघर्ष माना जा रहा है.

भाजपा द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री आवास उज्जवला और सौभाग्य योजना खूब भुनाया गया. यहां तक की जिस जिस परिवार को इसका लाभ मिला कार्यकर्ता उस परिवार तक पहुंच गए. पार्टी लाभान्वित परिवार के मतदाताओं के अलावा मोदी मैजिक के सहारे चुनावी वैतरणी पार होने की उम्मीद लिए बैठी है. वहीं कांग्रेस नेता न्याय योजना के सहारे वोट मिलने की आस में है. इस सीट पर मोदी की हवा चली, इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन साथ ही अंदर खाने बीटीपी ने जो पांव पसारे उससे संघर्ष और भी रोचक हो गया है. ये बात अलग है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां बीटीपी को मैदान में ही नहीं मानते.

क्या है भाजपा और कांग्रेस के दावे
भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष और लोकसभा चुनाव संयोजक ओम पालीवाल का कहना है कि विधानसभा चुनाव में डूंगरपुर के पार्टी नेता बीटीपी की अंदर की राजनीति को समझ नहीं पाए थे इसी कारण चुनाव परिणाम हमारे पक्ष में नहीं रह पाए लेकिन अब बीटीपी का हव्वा वहां उतार पर आ गया है हालांकि बांसवाड़ा में इस नई पार्टी ने अपना प्रभाव बढ़ाया है लेकिन वोट बैंक नहीं जुटा पाई है. हमारी चुनावी रणनीति और मोदी का फैक्टर हमारी जीत का आधार होगा.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बलवंत वसीटा का दावा है कि हमारे पक्ष में हवा चल रही है. खासकर पार्टी की न्याय योजना लोगों के अंदर तक उतर गई है वही मोदी सरकार की नाकामियां कांग्रेस को जीत दिला रही है. इधर बीटीपी के प्रदेश महासचिव वसंत गरासिया का दावा है कि 23 मई को आने वाले चुनाव परिणाम काफी संभावनाओं से भरे होंगे. खासकर बांसवाड़ा लोकसभा सीट का परिणाम चौकाने वाला होगा.

भाजपा कांग्रेस का पुराने चेहरों पर दाव
आपको बता दें कि भाजपा ने यहां से पूर्व राज्यसभा सदस्य और मंत्री रहे कनक मल कटारा को मैदान में उतारा है वहीं बीटीपी ने युवा कांतिलाल रोत पर विश्वास जताया. कांग्रेस ने तीन बार लोकसभा सदस्य रहे ताराचंद भगोरा पर भरोसा जताते हुए उन्हें चौथी बार मौका दिया है. 29 अप्रैल को हुए मतदान में कुल 18 लाख 16022 मतदाताओं में से 13 लाख से अधिक मताधिकार का उपयोग किया. इस सीट पर जीत किसे मिलेगी यह तो 23 मई को आने वाले नतीजे ही बताएंगे.

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