बांसवाड़ा. जिले से करीब 5 किलोमीटर दूर विजवा माता का मंदिर अपने आप में अनूठा कहा जा सकता है. कहते हैं कि रियासत काल में यहां एक झोपड़ी में माता रानी की मूर्ति की स्थापना की गई थी. ऐसी आस्था है कि कुछ समय तक नियमित माता की प्रतिमा की परिक्रमा करने पर विकलांग लोग स्वस्थ होकर अपने घर लौटते हैं.
इस मंदिर की ख्याति बांसवाड़ा ही नहीं डूंगरपुर, उदयपुर, गुजरात और मध्य प्रदेश के निकटवर्ती गांव तक भी फैल गई है. यहां हजारों श्रद्धालु अपनी हाजिरी लगाने पहुंचते हैं. जैसे-जैसे मूर्ति की ख्याति फैलती गई माता का मंदिर अपना स्वरूप बदलता रहा. आज माता का मंदिर हजारों लोगों की श्रद्धा का प्रमुख केंद्र बन चुका है. खासकर नवरात्र के दौरान यहां मेला भरने के साथ आसपास के इलाकों से भी हजारों श्रद्धालु माता के दरबार में अपनी हाजिरी लगाने पहुंचते हैं.
200 साल पुराना है विजवा माता का इतिहास-
हालांकि मूर्ति स्थापना को लेकर कोई तथ्यात्मक जानकारी तो सामने नहीं आई है लेकिन मंदिर के पुजारी परिवार का मानना है कि करीब डेढ़ सौ से 200 साल के बीच उनके पूर्वज ने उस समय के जंगल में मूर्ति की स्थापना की थी. वे अकेले ही झोपड़ी में मूर्ति की पूजा अर्चना करते थे. कुछ दिन बाद निकट स्थित कुपड़ा गांव के लोग भी पहुंचने लगे और धीरे-धीरे कुछ दिन बाद गांव के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया. पुजारी कचरू भाई के अनुसार दादा के बाद उनके पिता भगवान भाई ने मंदिर की पूजा अर्चना का काम संभाला. कुछ वर्षों में ही माता का यह मंदिर इतना विख्यात हो गया कि समय-समय पर राज दरबार कि लोग भी यहां शीष झुकाने पहुंचने लगे.
माता दूर कर देती हैं विकलांगता की बिमारी-
माता की सबसे अधिक ख्याति विकलांगता दूर होने को लेकर है. मान्यता है कि कालिका माता का प्रतिरूप मानी जाने वाली विजवा माता शरीर में किसी भी प्रकार की विकलांगता की पीड़ा को दूर कर देती हैं. जिन लोगों की शारीरिक विकृति को लेकर चिकित्सक भी हाथ खड़े कर देते हैं, जिन लोगों को कंधों पर लेकर आते हैं, यहां मन्नत मांगने के बाद वो अपने पैरों पर घर लौटकर जाते हैं.
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