कुशलगढ़ (बांसवाड़ा).26 दिसंबर गुरुवार को मामा बालेश्वर दयाल की 21वीं पुण्यतिथि पर कस्बे में स्थित मामाजी चौराहे पर मामा बालेश्वर दयाल की प्रतिमा पर फुलमाला अर्पित कर श्रंद्धाजलि दी गई. इस अवसर पर डॉ.सुनीलम ने कहा कि 26 दिसंबर को उस मसीहा को याद करने का दिन हैं, जिसने जीवनभर समाज के उपेक्षित, गरीब वर्ग और आदिवासियों के उत्थान के लिए न केवल संघर्ष किया, बल्कि उनके बीच ही रहकर उन्हीं की तरह जीवन यापन भी किया और अपने जीवन के अंतिम क्षण कुटिया में बिताए.
गुरुवार को गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी चिंतक मामा बालेश्वर दयाल (मामाजी) की 21 वीं पुण्यतिथि हैं. क्षेत्र सहित मध्यप्रदेश और गुजरात के कई क्षेत्रों में मामाजी को भगवान का दर्जा मिला हुआ हैं.
समाजसेवी डॉ. सुनीलम ने बताया कि मामा जी विशुद्ध राजनीतिक व्यक्ति थे. उन्होंने आजीवन समाजवादी आचरण ही किया. उन्हें समाजवाद की जीवन्त मूर्ति कहना ही न्यायसंगत होगा. उनका यही गुण उन्हें अन्य नेताओं की तुलना में विश्ष्टि स्थान दिलाता हैं. हमने डॉ. राममनोहर लोहिया के 'जेल, वोट, फावड़ा' के सिद्धांत को सुना लेकिन तीनों क्षेत्रों में योगदान करते मामा जी को जाना और समझा. मामा जी अंग्रेजों की जेल में रहे और आजादी के बाद भी जेल गये.