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स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी चिंतक मामा बालेश्वर दयाल की 21वीं पुण्यतिथि मनाई गई

बांसवाड़ा के कुशलगढ़ में गुरुवार को गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी चिंतक मामा बालेश्वर दयाल (मामाजी) की 21 वीं पुण्यतिथि मनाई गई. मामा बालेश्वर दयाल की 21वीं पुण्यतिथि पर कस्बे में स्थित मामाजी चौराहे पर मामा बालेश्वर दयाल की प्रतिमा पर फुलमाला अर्पित कर श्रंद्धाजलि दी गई.

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Published : Dec 26, 2019, 4:57 PM IST

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मामा बालेश्वर दयाल की 21वीं पुण्यतिथि मनाई गई

कुशलगढ़ (बांसवाड़ा).26 दिसंबर गुरुवार को मामा बालेश्वर दयाल की 21वीं पुण्यतिथि पर कस्बे में स्थित मामाजी चौराहे पर मामा बालेश्वर दयाल की प्रतिमा पर फुलमाला अर्पित कर श्रंद्धाजलि दी गई. इस अवसर पर डॉ.सुनीलम ने कहा कि 26 दिसंबर को उस मसीहा को याद करने का दिन हैं, जिसने जीवनभर समाज के उपेक्षित, गरीब वर्ग और आदिवासियों के उत्थान के लिए न केवल संघर्ष किया, बल्कि उनके बीच ही रहकर उन्हीं की तरह जीवन यापन भी किया और अपने जीवन के अंतिम क्षण कुटिया में बिताए.

मामा बालेश्वर दयाल की 21वीं पुण्यतिथि मनाई गई

गुरुवार को गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी चिंतक मामा बालेश्वर दयाल (मामाजी) की 21 वीं पुण्यतिथि हैं. क्षेत्र सहित मध्यप्रदेश और गुजरात के कई क्षेत्रों में मामाजी को भगवान का दर्जा मिला हुआ हैं.

समाजसेवी डॉ. सुनीलम ने बताया कि मामा जी विशुद्ध राजनीतिक व्यक्ति थे. उन्होंने आजीवन समाजवादी आचरण ही किया. उन्हें समाजवाद की जीवन्त मूर्ति कहना ही न्यायसंगत होगा. उनका यही गुण उन्हें अन्य नेताओं की तुलना में विश्ष्टि स्थान दिलाता हैं. हमने डॉ. राममनोहर लोहिया के 'जेल, वोट, फावड़ा' के सिद्धांत को सुना लेकिन तीनों क्षेत्रों में योगदान करते मामा जी को जाना और समझा. मामा जी अंग्रेजों की जेल में रहे और आजादी के बाद भी जेल गये.

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डॉ.सुनीलम ने कहा कि मामा जी ने न केवल राजनीतिक और वैचारिक प्रशिक्षण दिया बल्कि उन्होंने धर्मग्रंथों के माध्यम से भी आदिवासियों को तमाम किस्म की सीख देने का काम किया.
मामा जी लोक भाषा, लोक भूषा, लोक भोजन और लोक संस्कृति को अपनाने वाले समाजवादी नेता रहे. उन्होंने भीली भाषा में तमाम किताबें लिखीं. हिन्दी तो मामा जी की मातृ भाषा थी ही लेकिन उन्होंने गांव-गांव में जाकर भीली भाषा में भी आदिवासियों के साथ संवाद किया.

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उन्होंने आगे कहा कि मामा जी को भारत रत्न देने की मांग उनके अनुयायी कई सालों से कर रहे हैं. लेकिन अभी तक सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. उनके अनुयायीओं का कहना है कि मामा जी जैसे नेता कई सदियों में एक बार ही होते हैं. इस अवसर पर समाजवादी समागम,जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. सुनीलम, पीसीसी सदस्य हंसमुख सेठ, डॉ.निधि जैन मौजूद रहे.

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