बांसवाड़ा.नैंसर्गिक सौंदर्य के साथ-साथ मानगढ़ धाम हो या सत्ता की देवी मां त्रिपुरा सुंदरी का भव्य मंदिर. समंदर सा दिखने वाला माही बांध हो, या फिर यहां अरथुना के प्राचीन मंदिर. बांसवाड़ा को देश और दुनिया में नई पहचान दिलाते हैं. लेकिन बांसवाड़ा शहर को स्थापित करने वाले बांसिया भील की शूरवीरता और उनके बलिदान को पहचान नहीं मिल पाई है.
आदिवासी वर्ग की भावनाओं को देखते हुए तत्कालीन भाजपा सरकार की ओर से उनकी भव्य प्रतिमा स्थापित करने का प्रोजेक्ट बनाया और तत्काल धरातल पर उतारने का प्रयास किया. अचरज की बात यह है कि, बांसिया भील की भव्य प्रतिमा स्थापित होने के साथ प्रोजेक्ट के अनुरूप सारा कामकाज भी पूरा हो गया. परंतु मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से अनावरण कराए जाने के प्रयासों में यह भव्य प्रतिमा कपड़ों में कैद होकर रह गई है.
नगर परिषद प्रशासन पिछले 1 साल से प्रतिमा के केवल कपड़े बदल रहा है. प्रशासन की इस बेरुखी को लेकर आदिवासी वर्ग में आक्रोश पनप रहा है. इस वर्ग के लोगों का आरोप है कि, जानबूझकर इस कार्यक्रम को लटकाया जा रहा है.
गत वर्ष अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर इस भव्य प्रतिमा के अनावरण की उम्मीद थी. इसके चलते नगर परिषद की ओर से भी इसका शेष कार्य तुरंत में पूरा कराया गया और मूर्ति स्थापना का कार्य लगभग अंतिम चरण में पहुंच गया. हालांकि इसके बाद नगर परिषद चुनाव में बोर्ड बदल गया. नए सभापति जैनेंद्र त्रिवेदी ने भी समय रहते इसके काम को कंप्लीट करवा दिया. लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाथों अनावरण कराने के चक्कर में अब तक मूर्ति कपड़ों से बाहर नहीं निकल पाई. जिसे लेकर जनजाति वर्ग के लोगों में असंतोष के सूर पनपते जा रहे हैं.
आदिवासी वर्ग के दिनेश राणा का कहना है कि, केवल राजनीतिक फायदा लेने के लिए हमारे आराध्य बांसिया भील की प्रतिमा के अनावरण के कार्यक्रम को लटकाया जा रहा है. इसे अब बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.
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गोविंद गुरु राजकीय महाविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष भवानी निनामा का कहना था कि, 1 साल पहले ही इसका अनावरण होना था, परंतु नगर परिषद प्रशासन भावनाओं की बजाए राजनीतिक फायदे पर नजर गड़ाए हैं. इसे लेकर समाज में आक्रोश पनप रहा है. प्रशासन को अनावरण कार्यक्रम तय कर देना चाहिए. अन्यथा आंदोलन के लिए भी प्रशासन को तैयार रहना चाहिए.