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अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस: कपड़ों में कैद होकर रह गई बांसवाड़ा के संस्थापक बांसिया भील की प्रतिमा

बांसवाड़ा शहर को स्थापित करने वाले बांसिया भील की शूरवीरता और उनके बलिदान को अब तक पहचान नहीं मिल पाई है. शहर में बनी बांसिया भील की भव्य प्रतिमा स्थापित होने के साथ प्रोजेक्ट के अनुरूप सारा कामकाज भी पूरा हो गया है. परंतु मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से अनावरण कराए जाने के प्रयासों में यह भव्य प्रतिमा कपड़ों में कैद होकर रह गई है.

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अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस

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Published : Aug 9, 2020, 7:02 AM IST

बांसवाड़ा.नैंसर्गिक सौंदर्य के साथ-साथ मानगढ़ धाम हो या सत्ता की देवी मां त्रिपुरा सुंदरी का भव्य मंदिर. समंदर सा दिखने वाला माही बांध हो, या फिर यहां अरथुना के प्राचीन मंदिर. बांसवाड़ा को देश और दुनिया में नई पहचान दिलाते हैं. लेकिन बांसवाड़ा शहर को स्थापित करने वाले बांसिया भील की शूरवीरता और उनके बलिदान को पहचान नहीं मिल पाई है.

अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस

आदिवासी वर्ग की भावनाओं को देखते हुए तत्कालीन भाजपा सरकार की ओर से उनकी भव्य प्रतिमा स्थापित करने का प्रोजेक्ट बनाया और तत्काल धरातल पर उतारने का प्रयास किया. अचरज की बात यह है कि, बांसिया भील की भव्य प्रतिमा स्थापित होने के साथ प्रोजेक्ट के अनुरूप सारा कामकाज भी पूरा हो गया. परंतु मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से अनावरण कराए जाने के प्रयासों में यह भव्य प्रतिमा कपड़ों में कैद होकर रह गई है.

नगर परिषद प्रशासन पिछले 1 साल से प्रतिमा के केवल कपड़े बदल रहा है. प्रशासन की इस बेरुखी को लेकर आदिवासी वर्ग में आक्रोश पनप रहा है. इस वर्ग के लोगों का आरोप है कि, जानबूझकर इस कार्यक्रम को लटकाया जा रहा है.

कपड़ों में कैद होकर रह गई भव्य प्रतिमा

गत वर्ष अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर इस भव्य प्रतिमा के अनावरण की उम्मीद थी. इसके चलते नगर परिषद की ओर से भी इसका शेष कार्य तुरंत में पूरा कराया गया और मूर्ति स्थापना का कार्य लगभग अंतिम चरण में पहुंच गया. हालांकि इसके बाद नगर परिषद चुनाव में बोर्ड बदल गया. नए सभापति जैनेंद्र त्रिवेदी ने भी समय रहते इसके काम को कंप्लीट करवा दिया. लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाथों अनावरण कराने के चक्कर में अब तक मूर्ति कपड़ों से बाहर नहीं निकल पाई. जिसे लेकर जनजाति वर्ग के लोगों में असंतोष के सूर पनपते जा रहे हैं.

आदिवासी वर्ग के दिनेश राणा का कहना है कि, केवल राजनीतिक फायदा लेने के लिए हमारे आराध्य बांसिया भील की प्रतिमा के अनावरण के कार्यक्रम को लटकाया जा रहा है. इसे अब बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.

असुविधाओं से भरा पड़ा है प्रतिमा स्थल

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गोविंद गुरु राजकीय महाविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष भवानी निनामा का कहना था कि, 1 साल पहले ही इसका अनावरण होना था, परंतु नगर परिषद प्रशासन भावनाओं की बजाए राजनीतिक फायदे पर नजर गड़ाए हैं. इसे लेकर समाज में आक्रोश पनप रहा है. प्रशासन को अनावरण कार्यक्रम तय कर देना चाहिए. अन्यथा आंदोलन के लिए भी प्रशासन को तैयार रहना चाहिए.

अजय खराड़ी का कहना था कि बादशाह भील हमारे पूर्वज हैं. हर बार आदिवासी दिवस पर बड़े बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. लेकिन इस प्रतिमा का अनावरण नहीं होना, हमें खलता रहता है.

समाजसेवी कोदर लाल बुनकर के अनुसार हर वर्ग की इच्छा है कि, मूर्ति का जल्द से जल्द अनावरण होता कि शहर के संस्थापक को एक नई पहचान दिलाई जा सके और यहां आने वाले हर व्यक्ति को उनकी वीरता का एहसास हो सके. लगातार अनावरण कार्यक्रम को टालना समाज के लोगों को आहत कर रहा है.

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इस संबंध में सभापति त्रिवेदी का कहना था कि, भव्य प्रतिमा का काम पूरा हो चुका है, और हमने इस संबंध में मुख्यमंत्री कार्यालय से भी संपर्क किया है. कोरोना के कारण किसी भी प्रकार का कार्यक्रम नहीं हो रहा है. ऐसे में मुख्यमंत्री गहलोत का जैसे ही कार्यक्रम तय होगा, भव्यता के साथ मूर्ति का अनावरण किया जाएगा.

4300 किलो की है, प्रतिमा

प्रोजेक्ट के अनुसार बांसिया भील की 4300 किलोग्राम की भव्य प्रतिमा स्थापित कर दी गई है. केवल प्रतिमा पर ही 39 लाख 42 हजार रुपए खर्च किए गए. इसके अलावा 2 फव्वारे, 2 गुंबद और 2 फॉक्सिंग लाइट इस भव्य प्रतिमा को और भी आकर्षक रंग देने वाले होंगे. इस सिविल वर्क पर 35 लाख रुपए खर्च किए गए हैं.

बता दें, 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में पहचाना जाता है. इस दिन संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने आदिवासियों के भले के लिए एक कार्यदल गठित किया था, जिसकी बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी. उसी के बाद से (UNO) ने अपने सदस्य देशों को प्रतिवर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाने की घोषणा की.

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