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भारत-पाकिस्तान और इंडोनेशिया के 80% आदिवासी अपने स्तर पर करते हैं विवादों का निपटारा : प्रोफेसर संजय लोढ़ा - pakistani tribal

बांसवाड़ा के गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय और केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय जनजातीय लोक संस्कृति एवं साहित्य विषयक संगोष्ठी रविवार को संपन्न हो गई.

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Published : Aug 12, 2019, 3:41 AM IST

बांसवाड़ा. गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय और केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय जनजातीय लोक संस्कृति एवं साहित्य विषयक संगोष्ठी रविवार को संपन्न हो गई. संगोष्ठी के दौरान देशभर के विभिन्न हिस्सों से आए शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र पढ़े. इन शोध पत्रों से एक बात स्पष्ट हो गई कि भारतीय संस्कृति का मूल जनजाति संस्कृति रही है.

जनजातीय लोक संस्कृति एवं साहित्य विषयक संगोष्ठी

समापन समारोह के मुख्य अतिथि बागीदौरा विधायक और पूर्व मंत्री महेंद्र जीत सिंह मालवीय ने आदिवासियों के हरिद्वार बेणेश्वर और संत मावजी की ओर से दशकों पूर्व रचित चोपडों में वर्तमान समाज और विकास के संबंध में की गई कल्पनाओं को परंपरागत गीत के जरिए प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि संत मावजी ने अपने काल में ही बिजली हवाई जहाज आदि के बारे में संकेत दे दिए थे. जनजाति संस्कृति मानवीय मूल्यों का सागर रही है.

भारत में 10 करोड़ आदिवासी

मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष के प्रोफेसर शैलेंद्र शर्मा ने अपने उद्बोधन के दौरान बताया कि दुनिया भर में 30 करोड़ आदिवासी 500 संस्कृतियों में बटे हुए हैं और इनकी 7000 भाषाएं हैं. भारत में 10 करोड़ लोग 705 जनजातीय संस्कृतियों में विभक्त है. जनजाति संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता प्राचीन काल से ज्ञान संपदा और मानवीय मूल्यों का समावेश है.

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मोहनलाल सुखड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के राजनीति विभाग के प्रोफेसर संजय लोढ़ा ने बताया कि भारत-पाकिस्तान और इंडोनेशिया के आदिवासी लोगों की रिसर्च में सामने आया कि यहां के 80% लोग अपने खुद के कंडीशनर इंस्टीट्यूशनल में विश्वास रखते हैं और अपने विवादों का निस्तारण चौकी थाने और कोर्ट की बजाए स्वयं के स्तर पर करते हैं. जहां उन्हें त्वरित गति से न्याय मिल जाता है.

31 को होगा मानगढ़ धाम में विशाल कार्यकर्म

समारोह की अध्यक्षता कर रहे मोहनलाल सुखड़िया विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर आईवी त्रिवेदी ने कहा कि वागड़ कांठल में जनजाति वर्ग का अनूठा इतिहास रहा है और उन्होंने इसे नजदीक से देखा है. इस पर शोध कर पुस्तक प्रकाशित करने की आवश्यकता है. उन्होंने संस्मरण के माध्यम से जनजाति साहित्य व परंपराओं पर प्रकाश डाला. जनजाति विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर कैलाश सोडाणी ने बताया कि आगामी 31 अगस्त को मानगढ़ धाम पर विशाल कार्यक्रम होने जा रहा है जिसमें बांसवाड़ा डूंगरपुर प्रतापगढ़ की विभिन्न कुल 10 विद्यार्थी पहुंचेंगे. उन्होंने जनजाति शोध संस्थान को उदयपुर से कुशलगढ़ में स्थानांतरित करने गए इंजीनियरिंग कॉलेज को विश्वविद्यालय से संबद्ध करने की मुख्य अतिथि से मांग की.

आयोजन सचिव डॉक्टर नरेंद्र पांडे ने बताया कि संगोष्ठी के दौरान 467 संकाय सदस्यों ने पंजीयन कराया और करीब 200 शोध पत्र प्राप्त हुए जिन्हे विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित कराया जाएगा.

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