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Special : आदिवासी बच्चों के लिए गुरुकुल...जहां खुद 'भविष्य' संवार रही पुलिस

आदिवासी बच्चों को पढ़ाने के लिए बांसवाड़ा के एक गांव में गुरुकुल बनाया गया है. इस गुरुकुल की खास बात यह है कि यहां पुलिस के जवान बच्चों को पढ़ाते हैं. पुलिस अधीक्षक केसर सिंह शेखावत की पहल पर एक कोचिंग क्लास की तरह यह स्कूल खोला गया है. इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा की नींव मजबूत करना है. देखिये ये रिपोर्ट...

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पुलिस के जवानों की पहल

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Published : Jul 17, 2020, 11:54 AM IST

Updated : Jul 17, 2020, 5:28 PM IST

बांसवाड़ा. गुरुकुल...यह नाम जेहन में आते ही हमारे सामने खुले आसमान तले पेड़ों के नीचे पढ़ते हुए बच्चों की तस्वीर उभर कर सामने आती है. हालांकि, यह शिक्षा पद्धति आजादी से पहले तक देश के कुछ हिस्सों में चल रही थी. उसके बाद धीरे-धीरे शिक्षा पद्धति बदल गई. उसके स्थान पर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बन गई. अलग-अलग सब्जेक्ट के लिए अलग-अलग कक्षा बन गई. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि शिक्षा के साथ-साथ सुविधाएं भी बढ़ गई. प्रदेश के बांसवाड़ा जिले में ऐसा ही एक गुरुकुल है जो पुलिस विभाग के अधीन आने वाली मेवाड़ भील कोर (एमबीसी) की ओर से संचालित किया जा रहा है.

पुलिस के जवानों की पहल

तत्कालीन पुलिस अधीक्षक केसर सिंह शेखावत की पहल पर एक कोचिंग क्लास की तरह यह स्कूल खोला गया. इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा की नींव मजबूत करना है. पुलिस अपने इस मकसद में काफी हद तक कामयाब भी रही है. यहां आने वाले तमाम बच्चों का बेसिक नॉलेज अच्छा है. हालांकि, कोरोना संक्रमण को देखते हुए पुलिस विभाग की ओर से बच्चों की सेफ्टी के व्यापक प्रबंध भी किए गए हैं.

पाठशाला में बच्चों को ना केवल शैक्षिक सामग्री, बल्कि कोविड-19 की तमाम गाइडलाइन का भी पालन करवाया जा रहा है. बच्चों के नाश्ते तक की व्यवस्था भी यहां की जा रही है. उसी का नतीजा है कि आज गांव के बच्चे शायद ही इधर-उधर घूमते नजर आएंगे. इस गुरुकुल में पढ़ने वालें बच्चों की संख्या 30 के करीब पहुंच चुकी है.

घूम रहे थे बच्चे, पुलिस को देखा तो भाग निकले...

बच्चों को पढ़ाते पुलिस के जवान

यह अस्थाई स्कूल खोलने की दास्तां भी कुछ अलग है. राज्य सरकार की ओर से एमबीसी सेकंड बटालियन के लिए जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर माही डैम की तलहटी में 119 बीघा जमीन आवंटित की गई थी. इसका गांव के कुछ लोग विरोध कर रहे हैं. हालांकि, पुलिस प्रशासन ने इस पर ग्रामीणों से समझाइश की.

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ग्रामीणों के साथ संवाद कायम करने के लिए जून के प्रारंभ में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक केसर सिंह शेखावत वहां पहुंचे तो आवंटित जमीन में बकरियां चरा रहे बच्चे डर के मारे वहां से भाग निकले. कई बच्चे इधर-उधर घूमते दिखाई दिए. यह देखकर शेखावत ने एमबीसी के जवानों को नया मिशन दिया. उन्होंने बच्चों के मन से पुलिस को लेकर कायम डर को दूर करने के लिए आम्रकुंज में अस्थाई स्कूल चलाने का आइडिया रखा. उसके बाद से ही एमबीसी के जवानों ने इन बच्चों से मेल मिलाप बढ़ाया और उन्हें स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित किया.

गणित, अंग्रेजी का बेसिक नॉलेज...

बच्चे की कॉपी चैक करता जवान

लगातार 4 महीने से स्कूल बंद हैं और कब तक खुलेंगे इसका भी अब तक निर्णय नहीं हुआ है. एसपी शेखावत ने स्कूल खुलने तक अंग्रेजी, गणित आदि सब्जेक्ट में B.A और B.Ed की डिग्री प्राप्त तीन से चार जवानों को यह काम सौंपा है. उन्होंने जवानों को कोचिंग सेंटर की तरह बच्चों का बेसिक नॉलेज मजबूत करने के लिए कहा है. आज अधिकांश बच्चों को गिनती और पहाड़ा याद हो गए हैं. साथ ही अंग्रेजी की वर्णमाला भी सीख रहे हैं. खास बात यह है कि जिन जवानों को यह जिम्मेदारी दी गई है, वे भी बड़ी रुचि के साथ अपना काम कर रहे हैं. कांस्टेबल सुरेश बताते है कि हमें खुशी है कि बच्चों को पढ़ाने का मौका मिल रहा है.

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चबूतरे पर बैठक, पेड़ पर प्लानर...

पेड़ पर लगाया गया पहाड़े का चार्ट

आम के घने पेड़ों के बीच 70 के दशक में माही डैम परियोजना के अंतर्गत यहां एक चबूतरा बनाया गया था. हालांकि, यह काफी जर्जर हो चुका है लेकिन इसी चबूतरे को बैठक के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. आसपास के पेड़ों पर गिनती, पहाड़े और वरमाला के प्लानर टंगे हुए दिखाई देते हैं. सुबह 9 से 11 बजे तक पढ़ाई के अलावा बच्चों को योगा भी करवाया जाता है. इस पाठशाला में सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान भी रखा जा रहा है. साथ ही बच्चों को मास्क भी उपलब्ध कराए गए हैं, ताकि कोरोना से बचाव किया जा सके.

Last Updated : Jul 17, 2020, 5:28 PM IST

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