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निजी स्कूलों में पाठ्य पुस्तकों की जिम्मेदारी, हजारों विद्यार्थियों का भविष्य मझधार में

गैर सरकारी स्कूलों में पाठ्य पुस्तकों के नाम पर अभिभावकों से होने वाली ठगी पर सरकार आखिरकार हरकत में आई और गैर सरकारी विद्यालयों में भी एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू कर दिया. सरकार की इस मंशा पर राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल पानी डालते दिख रहा है. एक पखवाड़े से अधिक समय बाद भी पुस्तक मंडल बच्चों को कई पुस्तके उपलब्ध नहीं करवा पाया है. इसका खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है.

निजी स्कूलों में पाठ्य पुस्तकों की जिम्मेदारी

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Published : Jul 23, 2019, 7:51 AM IST

Updated : Jul 23, 2019, 1:29 PM IST

बांसवाड़ा. ईटीवी भारत की पड़ताल में सामने आया कि इस मामले में शिक्षा विभाग और पाठ्य पुस्तक मंडल पूरी तरह से गैर जिम्मेदाराना रवैया अपना रहे हैं. पहली बार निजी स्कूलों में नेशनल काउंसिल ऑफ रिसर्च एंड ट्रेनिंग का पाठ्यक्रम लागू करने से अभिभावकों की जेब कटने से बचने की उम्मीद थी लेकिन पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराने का जिम्मा संभाल रहे राजस्थान राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल स्थानीय प्रबंधन की नाकामी माने या फिर मिलीभगत की जिले के सरकारी स्कूलों के बच्चों को कई प्रकार की पुस्तकें अब तक उपलब्ध नहीं हो पाई हैं.

निजी स्कूलों में पाठ्य पुस्तकों की जिम्मेदारी

एडवांस में करवाया था पाठ्यक्रम बुक

विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले भर में करीब 300 निजी स्कूल संचालित है. इनमें हजारों बच्चे अध्ययनरत है. गैर सरकारी स्कूलों के बच्चों को भी एनसीईआरटी की पुस्तकें उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी पाठ्य पुस्तक मंडल को दी गई है. यह पुस्तकें मंडल को पंजीकृत स्टेशनरी विक्रेताओं को दी जानी थी.

मजेदार बात यह है कि शहर के पंजीकृत 16 पुस्तक विक्रेताओं द्वारा फरवरी 2019 में ही पाठ्यक्रमों के सेट बुक करवाते हुए दस परसेंट राशि एडवांस में जमा भी करा दी. लेकिन सत्र शुरू होने से पहले तो दूर की बात सत्र शुरू होने के 22 दिन बाद भी पाठ्य पुस्तक मंडल का स्थानीय डिपो कई प्रकार की पुस्तके उपलब्ध नहीं करवा पा रहा है. इनमें सातवीं क्लास की हिंदी और सामाजिक, आठवीं कक्षा की विज्ञान और सामाजिक विज्ञान तथा हिंदी, 11वीं और 12वीं कक्षा की भौतिक और रसायन तथा भूगोल के अलावा पांचवी क्लास की कई पुस्तकें भी शामिल है. इसे लेकर विद्यार्थी दिन भर पुस्तक विक्रेताओं के चक्कर काटते देखे जा सकते हैं.

फिर कहां से आ रही है पुस्तकें

पता चला है कि इनमें से कई पुस्तकें कुछ विक्रेताओं के पास चोरी छुपे पहुंच रही है. इसके डेढ़ से 2 गुना दाम तक वसूले जा रहे हैं. पुस्तक विक्रेता और आरटीआई एक्टिविस्ट निर्मल दोसी के अनुसार हमने 5 माह पहले ही एडवांस में राशि जमा करा दी थी. इसके बावजूद निर्धारित पुस्तकें उपलब्ध नहीं कराई जा रही है. जब भी स्थानीय मंडल प्रबंधन से बातचीत की जाती है तो आजकल का बहाना बनाया जाता है, जबकि प्रतापगढ़, उदयपुर, डूंगरपुर आदि में आसानी से पाठ्यक्रम उपलब्ध है. स्थानीय प्रबंधन की मिलीभगत के कारण स्थानीय बाजार में अभिभावकों को कई पुस्तकें ऊंचे दाम देकर खरीदनी पड़ रही है. इसके लिए पूरी तरह से पाठ्य पुस्तक मंडल का स्थानीय डिपो जिम्मेदार है.

एक दूसरे पर डाल रहे हैं जिम्मेदारी

इस मामले में ईटीवी भारत द्वारा स्थानीय डिपो प्रबंधक आशीष शुक्ला से बातचीत की गई तो उन्होंने चुप्पी साध ली और कैमरे के सामने आने से स्पष्ट इनकार कर दिया. इसके लिए शिक्षा विभाग से संपर्क करने को कहा गया. जब पाठ्य पुस्तक वितरण के नोडल प्रभारी लक्ष्मी नारायण पाटीदार से संपर्क किया गया तो उन्होंने भी गैर सरकारी स्कूलों की पुस्तकों के मामले में पाठ्य पुस्तक मंडल और स्थानीय डिपो के बीच का मामला बता कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया. फिलहाल दोनों ही विभागों के इस गैर जिम्मेदाराना रवैया का खामियाजा निजी स्कूलों के हजारों बच्चों को भुगतना पड़ रहा है.

Last Updated : Jul 23, 2019, 1:29 PM IST

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