बांसवाड़ा. माही सिंचाई परियोजना की आवासीय कॉलोनी कार्मिकों के लिए दुधारू गाय बन गई है. ऐसा इसलिए क्योंकि कई लोग तो जब से आवास मेंआए हैं किराए के नाम पर एक रुपये तक नहीं जमा किए हैं. यहां तक कि बड़ी संख्या में ऐसे कार्मिक भी चिन्हित किए गए हैं, जो किराया राशि तो दूर की बात है पानी और बिजली के बिल भी जमा नहीं कर रहे हैं.
अब तक इस प्रकार के 1 दर्जन से अधिक कर्मचारियों को चिह्नित किया जा चुका है. सर्वे के दौरान बकायदा एक-एक आवास पर जाकर मौके की स्थिति जानी तो अधिकारी भी हैरत में पड़ गए. आवास आवंटन किसी और के नाम था तो रहने वाला कोई और निकला. कई मकान तो ऐसे थे जिनका बरसों से किराया तक जमा नहीं हुआ लेकिन वहां अधिकारी और कर्मचारी ठाठ से रह रहे हैं. अधिकारियों ने रिकॉर्ड खंगाला तो बतौर किराया राशि एक करोड़ रुपए से अधिक का आकलन सामने आया है.
80 के दशक में माही बांध परियोजना के दौरान कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए 370 आवास बनाए गए थे. समय के साथ परियोजना के अधिकारी कर्मचारी रिटायर होते गए और कइयों के ट्रांसफर हो गए जिससे मकान खाली होते गए. विभाग के सामने इनके रखरखाव की भी समस्या खड़ी हुई तो वहीं अन्य विभागों के कर्मचारी, अधिकारियों को भी आवास आवंटन का तरीका निकाला गया. अधिकारियों के अनुसार करीब 100 से अधिक आवास अन्य विभागों के लोगों को आवंटित किए गए हैं.
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आवंटन के लिए जी ए-55 की अनिवार्यता
हालांकि परियोजना के अंतर्गत आवंटन कमेटी बाकायदा संबंधित विभाग से भी हरी झंडी लेती है. इसके लिए कर्मचारी अधिकारी से जी ए-55 फार्म मंगवाए जाता है. इसमें हर महीने के सदस्यों का विवरण होता है, लेकिन कई कर्मचारी और अधिकारी संबंधित विभाग से G A 55 फॉर्म को दबाए जाने से भी नहीं बाज आए और मूल विभाग से किराया राशि उठाते रहे.