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स्पेशल स्टोरी: अस्पताल के अंदर भी शिशुओं को हो सकता है संक्रमण, एक बेड पर ही हो रहा 2 से 3 बच्चों का उपचार - शिशुओं को हो सकता है संक्रमण

बांसवाड़ा के महात्मा गांधी चिकित्सालय की स्पेशल बोर्न केयर यूनिट पर संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है. यहां एक पलंग पर दो से तीन बच्चों का उपचार किया जा रहा है. जबकि यहां भर्ती होने वाले शिशु पहले से ही बहुत ही कमजोर होते हैं. साथ ही उन पर संक्रमण होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है.

शिशुओं  को हो सकता है संक्रमण, Children can get infection
शिशुओं को हो सकता है संक्रमण

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Published : Feb 11, 2020, 7:58 PM IST

बांसवाड़ा.आज के इस दूषित परिवेश में अब अस्पतालों के अंदर भी संक्रमण का खतरा मंडराने लगा है. सरकार की लापरवाही के चलते अब मरीज अस्पतालों में भी स्वस्थ्य होने की उम्मीद नहीं रख सकते. जिसका उदाहरण हमें बांसवाड़ा के महात्मा गांधी चिकित्सालय की स्पेशल बोर्न केयर यूनिट में देखने को मिला. जहां एक पलंग पर दो से तीन बच्चों का उपचार किया जा रहा है. जबकि यहां भर्ती होने वाले शिशु पहले से ही बहुत ही कमजोर होते हैं. साथ ही उन पर संक्रमण होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है.

शिशुओं को हो सकता है संक्रमण

बता दें कि यह स्पेशल बोर्न केयर यूनिट जिले का एकमात्र एसएनसीयू है और रिकॉर्ड के अनुसार महज 12 बच्चों को यहां भर्ती किया जा सकता है. उसी के अनुरूप यहां पर मानव संसाधन की नियुक्ति की गई है. वहीं सरकार की ओर से बाद में 6 पलंग (वार्मर) बढ़ाकर 18 कर दिए गए. लेकिन केवल वार्मर ही बढ़ाए गए, उसके मुकाबले न अतिरिक्त विशेषज्ञ डॉक्टर की व्यवस्था की गई और ना ही अतिरिक्त नर्सिंग स्टाफ की. जबकि नियमानुसार हर वार्मर के लिए अलग से नर्सिंग स्टाफ को लगाने का प्रावधान है.

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वहीं बात की जाए यहां भर्ती होने वाले स्टाफ की, तो यहां प्रतिदिन 30 से लेकर 35 बच्चे भर्ती कराए जाते हैं. ऐसे में हर वार्मर पर दो बच्चों का उपचार किया जा रहा है. जबकि 1 महीने से कम उम्र के नवजात संक्रमण के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील माने जाते हैं. खासकर क्रॉस इन्फेक्शन की आशंका इनमें सबसे ज्यादा मानी जाती है. यहां भर्ती होने वालों में करीब 60 फीसदी बच्चों का वजन एक से डेढ़ किलो के बीच होता है. जबकि एक स्वस्थ बच्चे के लिए ढाई किलो तक का वजन होना आवश्यक माना गया है. इस कारण ऐसे बच्चों पर संक्रमण का खतरा और भी बढ़ जाता है.

वहीं पैदाइश के समय से ही कमजोर माने जाने वाले बच्चों में कई प्रकार के संक्रमण की आशंका बनी रहती है. खासकर निमोनाइटिस, स्ट्रैप्टॉकोक्कस बैक्टीरिया और स्टैफी कॉकस अर्थात निमोनिया के साथ-साथ नाक गले संबंधी इनफेक्टेड बैक्टीरिया बहुत जल्दी एक दूसरे में फैलता है. अमूमन आने वाले नवजात इन्हीं बैक्टीरिया का सबसे अधिक शिकार होते हैं. जिनमें क्रॉस इन्फेक्शन की आशंका सबसे अधिक मानी जाती है.

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वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर आरके मालोत के अनुसार बांसवाड़ा जिले में जन्म के समय बच्चों के कमजोर होने की समस्या पहले से ही है. ऐसी स्थिति में अलग-अलग वार्मर होना जरूरी है. अन्यथा संक्रमण की आशंका बनी रहती है. निमोनिया के साथ-साथ नाक,कान और गले संबंधी बैक्टीरिया एक दूसरे में तेजी से खेलते हैं. क्योंकि बच्चे पहले से ही कमजोर होते हैं, इसलिए इनमें संक्रमण तेजी से फैलने की गुंजाइश बनी रहती है. खासकर क्रॉस इन्फेक्शन का खतरा सबसे अधिक रहता है.

आगे बात करते हुए उन्होंने कहा कि एसएनसीयू में तो हर वार्मर पर बच्चे के उपचार और उचित देखभाल के लिए सिंगल नर्सिंग कर्मी लगाया जाना चाहिए. हॉस्पिटल के प्रमुख चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर नंदलाल चरपोटा का कहना है कि जिले में अन्य किसी सीएचसी और पीएसी पर इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं है. इस कारण लोड महात्मा गांधी चिकित्सालय पर बना रहता है. सीएचसी पर इस प्रकार की सुविधा उपलब्ध करा दी जाए, तो हमें काफी राहत मिल सकती है.

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