बांसवाड़ा. मोदी सरकार की उज्ज्वला गैस योजना की हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम शहर के श्यामपुरा बस्ती क्षेत्र के पार्ट-2 में पहुंची. जहां अधिकांश महिलाएं चूल्हे के धुएं के बीच खाना पकाती मिली. केंद्र सरकार की उज्जवला योजना लोगों की बेरुखी का शिकार होकर रह गई है. हालांकि अधिकांश लोग गरीब वर्ग के ही इसका लाभ ले पाए हैं. लेकिन उनके लिए अधिकांश परिवार लगातार गैस का उपयोग करने में सक्षम नहीं है और गाहे-बगाहे रसोई गैस का उपयोग करते हैं. इन परिवारों में अधिकांश मजदूर और किसान वर्ग के हैं. जिनके लिए समय-समय पर गैस रिफिलिंग कराना बूते से बाहर है.
चूल्हे के धुएं से उबर नहीं पाए परिवार
हालत यह है कि शहरी क्षेत्र में लोग 3 से 4 महीने तक रिफिलिंग नहीं करवाते, तो ग्रामीण क्षेत्र में हालत और भी बदतर कही जा सकती है. जहां बड़ी संख्या में ऐसे उपभोक्ता भी है, जो गैस कनेक्शन के बाद अब तक गैस एजेंसी की दहलीज पर नहीं चढ़ पाए मतलब इन परिवार की महिलाएं अब भी चूल्हे के धुएं से उबर नहीं पाई है.
बांसवाड़ा की श्यामपुरा बस्ती के ऐसे हालात
शहर के श्यामपुरा बस्ती क्षेत्र में रहने वाले लोग खेती किसानी या फिर मजदूरी से अपना पेट पाल रहे हैं. जिनके लिए लगातार गैस का उपयोग करना संभव नहीं है. बातचीत में सामने आया कि गैस का अधिकांश उपयोग मेहमानों के आने या फिर आवश्यक कामकाज होने की स्थिति में ही किया जाता है. हर घर में 5 से लेकर 7 मेंबर होते हैं, जिनके लिए यदि गैस पर खाना-पीना बनाया जाए तो सिलेंडर बामुश्किल 25 दिन भी नहीं चल पाता, जबकि रिफिलिंग के लिए ₹880 मौके पर ही जमा कराने होते हैं. हालांकि सरकार द्वारा सब्सिडी भी दी जाती है, लेकिन यह सब्सिडी भी उन्हीं लोगों को मिलती है. जिनकी कनेक्शन राशि सब्सिडी के जरिए जमा हो चुकी हो.
विसंगति यह है कि अधिकांश लोग इसका उपयोग ही नहीं कर रहे हैं और कनेक्शन के समय जमा कराए जाने वाली राशि बतौर सब्सिडी भी पूरी नहीं हो पाई है. ऐसे में इन परिवारों को सब्सिडी भी नहीं मिलती और रिफिलिंग के दौरान पूरा पैसा जमा कराने का प्रावधान है. इन लोगों के कमाई का कोई स्थाई जरिया भी नहीं है. ऐसे में एक साथ ₹880 जमा कराना इनके बस में नहीं है. इस कारण गैस का उपयोग सोच समझकर करना इनकी मजबूरी बन चुका है.