बांसवाड़ा.जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर तलवाड़ा को वागड़ अंचल में धर्मनगरी के रूप में जाना जाता है. निकट ही सत्ता की देवी मां त्रिपुरा सुंदरी का मंदिर है, तो तलवाड़ा में भगवान गणेश का विशाल मंदिर है. इस कस्बे में साल भर कोई न कोई धार्मिक आयोजन का सिलसिला चलता रहता है. इस धर्म नगरी को सोमपुरा समाज के लोग एक और नई पहचान दे रहे हैं. अपनी मूर्ति कला के बल पर आज सोमपुरा समाज के लोग राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश-विदेश में भी मशहूर हो रहे हैं.
सफेद पत्थर पर यहां के लोग मशीनों को इस प्रकार चलाते हैं कि देखते ही देखते देवी देवताओं के अलावा महापुरुषों का आकार ले लेती है. कुल मिलाकर यह कला आज खानदानी कला का रूप ले चुकी है और नई पीढ़ी के लोग भी इसे आगे बढ़ा रहे हैं.
500 पुराना है इतिहास
करीब 500 साल पहले सोमपुरा समाज के कुछ लोगों ने आसपास मिलने वाले सफेद पत्थर पर मूर्ति गढ़ाई का काम शुरू किया था. पहले छैनी-हथौड़े से पत्थरों को मूर्ति का आकार दिया जाता था. धीरे-धीरे करते परिवार के अन्य लोग भी इसमें हाथ अजमाने लगे और आज उनके हाथों में मशीनें आ चुकी है. जो काम एक 1 महीने तक नहीं हो पाता था, वह आज 8 से 10 दिन में पूरा कर लिया जाता है.
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मां त्रिपुरा सुंदरी रास्ते पर आपको पत्थरों को मूर्ति का रूप देते यहां काफी लोग मिल जाएंगे. कोई बड़े-बड़े पत्थरों को काट रहा है, तो कोई मूर्ति का शेप दे रहा है. कोई अन्य उसे फिनिशिंग देकर चमका रहा है. मूर्ति कला को नई ऊंचाई प्रदान कर रहे सोमपुरा समाज के लोगों के अनुसार मशीनों के बाद इस व्यवसाय में कंपटीशन बहुत बढ़ गया है, लेकिन अब राजस्थान ही नहीं देश के अन्य हिस्सों तक भी हमारी कला का डंका बज चुका है. ऐसे में ज्यादा कोई दिक्कत नहीं आती और व्यवसाय चलता रहता है. सबकी अलग-अलग पार्टियां होती है. उनके ऑर्डर के हिसाब से काम करते रहते हैं.
50 से 60 परिवार करते हैं मूर्तियां बनाने का काम