घाटोल (बांसवाडा).कहते हैं होली का पर्व रंग और गुलाल का होता है. पर हम आपको एक ऐसी जगह की होली के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां रंग और गुलाल से नहीं, बल्कि आग में जलती हुई लट्ठ से होली खेली जाती है. जी हां, हम बात कर रहे हैं, बांसवाड़ा के घाटोल उपखण्ड की, जहां लठमार होली खेली जाती है. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग भी आते हैं.
दरअसल, होलिका दहन के बाद सुबह 5 बजे यहां पाटीदार समाज की ओर से गेर नृत्य की जाती है. करीब 2 घंटे बाद ये ढोल की थाप में बदल जाती हैं. इसके बाद गेर नृत्य कर रहे लोग दो गुटों में विभाजित हो जाते हैं और आमने-सामने से जलती हुई लकड़ियां एक-दूसरे पर बरसाना शुरू कर देते है.