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बांसवाड़ा में बड़ी संख्या में लोगों के  हीमोग्लोबिन की कमी...कई महज 5 से 6 मिलीग्राम पर हैं जिंदा

कहते हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है. लेकिन, अक्सर ऐसा देखा जाता है कि लोग अपने शरीर का ध्यान नहीं रख पाते हैं. इसके पीछे कोई भी वजह हो सकती है. बांसवाड़ा में भारी मात्रा में लोगों के अंदर हीमोग्लोबिन की कमी पाई जा रही है. विश्वास करना मुश्किल है पर यह सच है कि यहां लोग महज 1 से 2 ग्राम हीमोग्लोबिन के सहारे जिंदा हैं.

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Published : Dec 7, 2019, 4:18 PM IST

Updated : Dec 7, 2019, 11:02 PM IST

बांसवाड़ा की खबर, only 5 to 6 mg of hemoglobin, चकित चिकित्सक
हीमोग्लोबिन की कमी से बीमार लोगों का इलाज करते चिकित्सक

बांसवाड़ा. एक स्वस्थ शरीर में 5 से 6 लीटर तक खून होता है और उसमें 12 ग्राम तक हीमोग्लोबिन आवश्यक होता है. लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बांसवाड़ा में बड़ी संख्या में लोग महज 5 से लेकर 6 मिलीग्राम हीमोग्लोबिन पर जिंदा है.

भारी मात्रा में हीमोग्लोबिन की कमी के बावजूद भी जिंदा हैं लोग

हीमोग्लोबिन के जरिए ही ऑक्सीजन हृदय के जरिए सप्लाई होती है. ऐसे में हीमोग्लोबिन की कमी के चलते ऐसे लोग जिंदा लाश बन चुके हैं जिनकी कहने मात्र को सांसे चल रही है. इसके चलते संबंधित व्यक्ति चलने फिरने तक में परेशानी महसूस करता है और एक दो कदम चलने पर ही दम फूलने लग जाता है.

मुख्यतः यह समस्या महिलाओं में अधिक है. इस समस्या का मूल कारण कुपोषण और जागरूकता की कमी माना जाता है. महात्मा गांधी चिकित्सालय में प्रतिदिन 5 से लेकर 6 रोगी ऐसे पहुंचते हैं, जिनके जिंदा रहने पर भी चिकित्सकों को आश्चर्य होता है. खून की कमी अर्थात एनीमिक एक प्रमुख व्याधि बनकर सामने आ रही है.

सबसे पहले हीमोग्लोबिन की जांच

यहां का चिकित्सक कुपोषण की समस्या को मानते हुए ग्रामीण क्षेत्र से आने वाली अधिकांश महिलाओं की सबसे पहले हीमोग्लोबिन की मात्रा की जांच कराते हैं. कई बार तो हीमोग्लोबिन की मात्रा 1 से 2 मिलीग्राम भी नहीं होती. पहले महिलाओं में यह समस्या सबसे बड़ी थी. लेकिन अब पुरुष भी एनेमिक प्रॉब्लम का शिकार हो रहे हैं.

खून चढ़ाना ही विकल्प

ऐसे लोगों के लिए हॉस्पिटल प्रशासन को प्रतिदिन 5 से लेकर 6 यूनिट ब्लड की व्यवस्था करनी होती है. जैसे ही इस प्रकार की रिपोर्ट पहुंचती है यहां कार्यरत सामाजिक संस्था रेड ड्राप इंटरनेशनल अपने सदस्यों को बुलाकर हाथों-हाथ रक्तदान करवाती है.

महात्मा गांधी चिकित्सालय के सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉ देवेश गुप्ता के मुताबिक इस आदिवासी अंचल की यह प्रमुख समस्या कही जा सकती है. खानपान के अभाव में कुपोषण और उसके बाद जागरूकता की कमी के चलते यह समस्या बढ़ती जा रही है.

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ऐसी स्थिति में रोगी का चलना-फिरना दूबर हो जाता है और 12 कदम चलते ही दम फूलने लगता है. कुल मिलाकर ऐसे लोग एक प्रकार से घूमती फिरती लाश कही जा सकती है. लापरवाही बरतने पर ऐसे लोगों की जान भी जा सकती है.

वहीं, रेड ड्राप इंटरनेशनल के अध्यक्ष राहुल सराफ का कहना है कि 2 से 3 मिलीग्राम हीमोग्लोबिन के मरीज अब आम समस्या बन गई है. हमें जैसे ही ऐसे किसी जरूरतमंद व्यक्ति की सूचना मिलती है हम अपने सदस्यों को कॉल कर बुलाते हैं और संबंधित व्यक्ति के लिए उसके ग्रुप के खून की व्यवस्था करवाते हैं. संस्था के पास 3000 युवा और 637 महिला सदस्य हैं जो कि ऐसी किसी सूचना पर तत्काल हॉस्पिटल पहुंच जाते हैं.

Last Updated : Dec 7, 2019, 11:02 PM IST

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