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बांसवाड़ा: व्याख्याताओं की कमी का खामियाजा भुगत रहे छात्र, पढ़ाई हो रही है प्रभावित - गोविंद गुरु राजकीय महाविद्यालय बांसवाड़ा

बांसवाड़ा के गोविंद गुरु राजकीय महाविद्यालय में व्याख्याताओं की कमी के चलते छात्रों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. सिर्फ नाम मात्र के ही व्याख्याता इस महाविद्यालय में बचे है. सत्र शुरू होने के 4 माह बाद भी कई क्लासों के पाठ्यक्रम भी पूरे नहीं हो पाए. इसे लेकर छात्र-छात्राएं चिंतित नजर आते हैं.

Lack of lecturers in Govind Guru Government College, गोविंद गुरु राजकीय महाविद्यालय में व्याख्याताओं की कमी

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Published : Oct 19, 2019, 12:44 PM IST

बांसवाड़ा.दुबले को दो आषाढ़ वाली कहावत उदयपुर संभाग के सबसे बड़े गोविंद गुरु राजकीय महाविद्यालय के साथ चरितार्थ हो रही है. जहां पिछले कई सालों से धीरे-धीरे व्याख्याताओं की संख्या कम होती जा रही है. वहीं अब राजनीतिक कुद्रष्टि महाविद्यालय की शैक्षणिक व्यवस्था को तार-तार करती दिख रही है. यहां पहले से ही एक तिहाई व्याख्याता से काम चलाया जा रहा था.

व्याख्याताओं की कमी का खामियाजा भुगत रहे छात्र

गत दिनों सरकार ने एक आदेश जारी कर कुछ व्याख्याताओं को डेपुटेशन की आड़ में अन्यत्र भेज दिया गया. जिसका खामियाजा यहां अध्ययनरत गरीब छात्र-छात्राओं को भुगतना पड़ रहा है.हालत यह है कि कई विषयों के व्याख्याताओं के पद रिक्त है. इसके चलते कई कक्षाओं के पाठ्यक्रम एक चौथाई भी पूरे नहीं हो पाए हैं और विद्यार्थी अपने भविष्य को लेकर चिंतित नजर आते हैं.आदिवासी बहुल बांसवाड़ा के इस कॉलेज में वर्तमान में करीब 7000 छात्र-छात्राएं अध्ययनरत है.विद्यार्थियों की संख्या के लिहाज से यह महाविद्यालय उदयपुर संभाग का सबसे बड़ा महाविद्यालय माना जाता है. लेकिन पिछले कुछ समय से अध्यापन कार्य को लेकर ग्रहण लगा हुआ है.ईटीवी भारत की ओर से यहां की शिक्षण व्यवस्था को लेकर आंकड़े जुटाए गए तो हैरानी भरी बात सामने आई की इस महाविद्यालय के लिए 115 व्याख्याताओं के पद स्वीकृत है.

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लेकिन आज हालात ये है कि तीन दर्जन व्याख्याता भी दिखाई नहीं देते. इसका कारण यह है कि कई व्याख्याताओं ने समय के साथ अपने इच्छित स्थान पर ट्रांसफर करवा लिए तो कुछ को डेपुटेशन के नाम पर इधर-उधर कर दिया गया. स्थिति 35 से 36 तक पहुंच गई. इकोनॉमिक्स हो या जियोग्राफी, हिस्ट्री या इंग्लिश जिन कक्षाओं में 3-3 टीचर्स की जरूरत है वहां बमुश्किल 1-1 व्याख्याता भी नहीं है. ऐसे में कई क्लासों में तो सप्ताह में 2 दिन क्लास भी नहीं लग रही है. नतीजा यह निकला कि सत्र शुरू होने के 4 माह बाद भी कई क्लासों के पाठ्यक्रम भी पूरे नहीं हो पाए. इसे लेकर छात्र-छात्राएं चिंतित नजर आते हैं.

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छात्रों का कहना है कि क्लास में इंग्लिश का एक भी टीचर नहीं है. यहा तक की अब तक किताब का एक पन्ना भी नहीं खोला गया. वहीं जियोग्राफी में मात्र 3 दिन क्लास लगती है क्योंकि स्वीकृति के मुकाबले व्याख्याता ही नहीं है जबकि यह एक टेक्निकल सब्जेक्ट है जिसे घर पर बैठकर पढ़ना मुश्किल है. मजबूरन सत्र के अंत में छात्रों को ट्यूशन का सहारा लेना पड़ता है. बता दें कि अधिकांश छात्र-छात्राएं दूरदराज से यहां पढ़ने के लिए आते हैं लेकिन व्याख्याताओं की कमी के कारण उन्हें निराशा झेलनी पड़ती है. कुल मिलाकर व्यर्थ में पैसा लग रहा है.

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एक अन्य छात्र का कहना है कि हमें पता ही नहीं लगता कि किस सब्जेक्ट का टीचर कब आ रहा है, क्योंकि टीचर्स के ट्रांसफर चलते ही रहते हैं. ऐसे में कई बार व्याख्याताओं के दर्शन ही नहीं होते हैं. छात्रसंघ अध्यक्ष भवानी निनामा के अनुसार लेक्चरर्स की कमी चिंताजनक कही जा सकती है. स्वीकृति के मुकाबले एक तिहाई व्याख्याता भी नहीं है. उसमें से भी सरकार की तरफ से कईयों को व्यवस्था के नाम पर डेपुटेशन पर भेज दिया गया. बता दें कि 80% बच्चे आदिवासी वर्ग से आते हैं. जिनकी आर्थिक हालत किसी से छुपी नहीं है. महाविद्यालय की कार्यवाहक प्राचार्य डॉ सरला पांड्या भी मानती है की व्याख्याताओं की कमी का असर पढ़ाई पर पढ़ रहा है. सरकार को गरीब वर्ग के छात्रों के भविष्य को देखते हुए स्वीकृत पदों के अनुसार व्याख्याताओं की व्यवस्था करनी चाहिए.

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