बांसवाड़ा. केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा हिंदी के साथ-साथ जनजातीय भाषाओं के संरक्षण में भी जुटा है. संस्थान पूर्वोत्तर भारत की जनजातीय भाषाओं को लेकर विशेष सक्रिय है. 50 जनजाति भाषाओं के शब्दकोश तैयार किए जा रहे हैं और 26 कोष प्रकाशित किए जा चुके हैं. संस्थान के निदेशक प्रो. नंदकिशोर पांडेय ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में यह जानकारी दी.
केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा तैयर कर रहा 50 जनजातीय भाषाओं के शब्दकोश गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय बांसवाड़ा द्वारा जनजाति लोक संस्कृति एवं साहित्य विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने आए प्रो. पांडेय ने ईटीवी भारत के एक सवाल पर कहा कि संस्थान भारतीय भाषाओं पर निरंतर काम कर रहा है. अरुणाचल प्रदेश की 8 जनजातीय भाषाओं के शब्दकोश प्रकाशित किए जा चुके हैं.
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वहीं आसपास के अन्य जनजाति भाषाओं के शब्दकोश तैयार किए जा रहे हैं. एक सवाल पर शब्दावली आयोग के कामकाज को संभाल चुके पांडेय ने कहा कि जनजाति भाषा को कोई खतरा नहीं है. इसे बोलने वालों की संख्या कम नहीं हुई है. वर्तमान में यह वर्ग अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है.
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देश के जाने माने हिंदी विशेषज्ञ प्रो. पांडेय ने कहा कि अशिक्षा के बावजूद वस्तुत भारतीय संस्कृति कोई है तो जनजाति संस्कृति है. उनका कहना रहा कि प्रकृति और जनजीवन का संरक्षण जनजाति वर्ग ही करता आया है. साइंस एंड टेक्नोलॉजी में हिंदी शब्दावली संबंधी सवाल पर हिंदी संस्थान आगरा के निदेशक ने कहा कि हमारा ध्यान 5 फीसदी एनसीआरटी और अंग्रेजीदा लोगों पर है. 90 फीसदी लोग हिंदी या भारतीय भाषाओं का उपयोग करते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश हम अंग्रेजी पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं.