राजस्थान

rajasthan

ETV Bharat / state

स्पेशल स्टोरी: मासूम चेहरों पर खिलौनों से खिलखिलाहट, 'संदीप और स्वाति' ने गरीब बच्चों की मुस्कुराहट को बना लिया Mission

बांसवाड़ा में गरीब परिवार के बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने का जिम्मा एक दम्पति ने उठाया है. इसके लिए यह दम्पति गांवों में जाकर पहले सर्वें करता हैं, फिर जरूरतमंद बच्चों को खिलौनों का उपहार देता है.

banswara news, बांसवाड़ा की ताजा खबर

By

Published : Nov 14, 2019, 3:25 PM IST

बांसवाड़ा.'घर लौट के रोएंगे मां-बाप अकेले में, मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में' ऐसी ही कुछ हकीकत होती है, हर गरीब परिवार की. लेकिन अब इस हकीकत को बदलने का जिम्मा उठाया है, संदीप और उनकी पत्नी स्वाति ने. यह दम्पति बांसवाड़ा के रहने वाले हैं और नौकरी के साथ-साथ इनका मकसद गरीब परिवार के बच्चों के चेहरों पर मुस्कुराहट लाना है.

खिलौने के जरिए बच्चों को मुस्कान का अनोखा 'स्पर्श'

अब तक आपने सामाजिक संस्थाओं द्वारा गरीब बच्चों को कपड़े और किताबें आदि बांटते हुए ही देखा होगा. लेकिन बांसवाड़ा के स्वाति और संदीप एक अलग ही मिशन में जुटे हैं. वे हर गरीब बच्चे के चेहरे पर खिलखिलाहट लाना चाहते हैं. इसका जरिया खिलौने को बनाया गया है. खिलौना न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि बच्चे के सकारात्मक सोच में भी काफी हद तक बदलाव ला सकता है या उसे नई दिशा दे सकता है.

स्वाति शहर से करीब 100 किलोमीटर दूर प्रतापगढ़ में कांट्रेक्ट बेस जॉब कर रही हैं. वहीं संदीप भी नौकरी करते हैं. नौकरी के अतिरिक्त वे अवकाश के दिनों में अपने इस मिशन के लिए काम करते हैं. प्रारंभ में अपनी जेब से इस मिशन को शुरू किया. बाद में अपने मित्रों तथा चिर परिचित लोगों का साथ लिया. इसके साथ ही लोग अपने बच्चों के अनुपयोगी खिलौने दान कर सके. इसके लिए साल 2017 में स्पर्श नामक संस्था बनाई.

दोनों ही पति-पत्नी का प्रोफेशन एक है और अपने प्रोफेशन के दौरान उन्हें गांवों में जाने का मौका मिलता है. उस दौरान सर्वे कर यह लोग खिलौना वितरण के लिए स्थान का चयन करते हैं. जिसके बाद शहर के लोगों से जन्मदिन हो या और कोई ऑकेजन, गरीब बच्चों के खिलौने लाते हैं.

पढ़ें: हरीश चौधरी ने सुनियोजित तरीके से मुझ पर हमला करवाया और यह उन्होंने खुद मान लिया : केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी

संदीप का कहना है कि मां के बाद खिलौना ही एक ऐसा साथी होता है, जो कि बच्चे के करीब रहता है. और यह बच्चे को विकास में भी सहभागी बनता है. यह बच्चों के एकाकीपन को दूर कर उनमें एक सकारात्मक ऊर्जा पैदा कर देता है. इस संबंध में संदीप त्रिपाठी यह भी कहते हैं कि खिलौनों से बच्चों की रचनात्मक सोच का विकास होता है.

वहीं स्वाति के मुताबिक उन दोनों की नौकरी में काफी भागदौड़ रहती है लेकिन वे अवकाश के दिनों में आराम नहीं कर इन बच्चों के लिए काम कर रहे हैं और इससे उन्हें काफी सुकून मिलता है. स्वाति का कहना है कि जब भी उन्हें मौका मिलता है वे अपने मिशन के लिए काम करने से नहीं चूकते.

वागड़ अंचल का सबसे बड़ा अभिशाप गरीबी को माना जाता है. आज भी यहां का एक बहुत बड़ा हिस्सा गरीबी से जूझ रहा है. कुल मिलाकर परिवार दिहाड़ी मजदूर पर निर्भर है. ऐसे में उनके बच्चों की स्थिति को बखूबी महसूस किया जा सकता है. आज तक संस्था के जरिए 2500 खिलौनों का वितरण किया जा चुका है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details