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Special: कोरोना में रोडवेज का राजस्व औंधे मुंह गिरा - कोरोना में रोडवेज का राजस्व

कोरोना में राजस्थान रोडवेज घाटे में चल रही है. अकेले बांसवाड़ा डिपो को तीन महीनों में 1 करोड़ से ऊपर का घाटा हो चुका है. लोग यात्रा करने से बच रहे हैं. बसों और बस स्टैंड को सैनिटाइज करवाने का अतिरिक्त भार भी रोडवेज पर बढ़ रहा है. कैसे कोरोना की जकड़ में आई रोडवेज पढ़ें रिपोर्ट...

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कोरोना का राजस्थान रोडवेज पर असर

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Published : Sep 12, 2020, 3:21 PM IST

बांसवाड़ा. कोरोना के लगातार बढ़ते केसोंं ने रोडवेज बसों के संचालन को प्रभावित किया है. संक्रमण के डर से लोग यात्रा करने से बच रहे हैं. जिसका सीधा असर यात्री भार में कमी के रूप में रोडवेज को उठाना पड़ रहा है. लॉकडाउन में सभी तरह की सेवाएं बंद थी लेकिन अनलॉक के बाद चीजें धीरे-धीरे खुलने लगी तो रोडवेज बसों का संचालन भी शुरू हुआ. लेकिन सरकारी गाइडलाइन के अनुसार बसें चलाना और घटने यात्री भार के चलते रोडवेज लगातार घाटा उठा रहा है.

कोरोना काल में घाटे में घूम रहे हैं रोडवेज के पहिए

जून से अगस्त तक एक करोड़ का घाटा

आगार प्रबंधन के आंकड़ों पर नजर डालें तो जून महीने में अलग-अलग रूटों पर 114098 किलोमीटर बस चली थी. जिसके केवल 2911820 रुपए का राजस्व आया. जून महीने में 25.52 रुपए प्रति किलोमीटर का राजस्व हासिल हुआ. जबकि जुलाई में यह और घट गया. इस महीने प्रति किलोमीटर आय का ग्राफ 23.48 रुपए तक पहुंच गया, जबकि इस महीने 374016 किलोमीटर ही रोडवेज बसों का संचालन किया गया था.

35 रुपए प्रति किलोमीटर के राजस्व के बाद रोडवेज नो प्रोफिट नो लॉस की स्थिति में आएगी

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इनकम का यह ग्राफ गिरने का मुख्य कारण यात्री भार में आई कमी है. यात्री भार गत महीने के मुकाबले 10% ही बढ़ पाया. जबकि गाड़ियों की संख्या और फेरे 3 गुना तक कर दिए गए. हालांकि अगस्त में प्रति किलोमीटर आय 27.69 रुपए तक पहुंच गई है. जुलाई के मुकाबले अगस्त में केवल 25000 किलोमीटर के फेरे बढ़ाए गए थे. कुल मिलाकर इस दौरान 800000 किलोमीटर बसों का संचालन किया गया. जिससे औसतन करीब 25 रुपए प्रति किलोमीटर की इनकम ही हो पाई. जबकि नो प्रॉफिट नो लॉस में भी प्रति किलोमीटर इनकम 35 रुपए होनी चाहिए.

लोग कोरोना के डर से यात्रा करने से बचते दिखाई दे रहे हैं

इस अवधि में प्रति किलोमीटर इनकम के अलावा अन्य खर्चों को मिलाकर बांसवाड़ा आगार को करीब एक करोड़ रुपए का घाटा झेलना पड़ा. मुख्य प्रबंधक रवि मेहरा ने कहा कि यह सही है कि हमें पिछले 3 माह में खासे घाटे का सामना करना पड़ा. लेकिन अब धार्मिक स्थलों के खुलने तथा अंतरराज्यीय परिवहन सेवाओं की बहाली से इनकम बढ़ने की उम्मीद है. क्योंकि निजी बस ऑपरेटर अब भी आंशिक तौर पर अपनी सेवाएं बहाल कर पाए हैं. ऐसे में यात्री भार बढ़ने की संभावना है.

रोडवेज में यात्री भार में कमी के चलते राजस्व का घाटा हो रहा है

यात्री भार नाम मात्र का

कोरोना के चलते पूरे देश में 24 मार्च से देशभर में लॉकडाउन लगा दिया गया था. जिसके बाद रोडवेज ने अपनी सेवाएं पूरी तरह से बंद कर दी थी. अनलॉक में उदयपुर संभाग में सबसे पहले बांसवाड़ा डिपो ने बसों का संचालन शुरू किया था. रोडवेज सूत्रों के अनुसार जुलाई तक 30 प्रतिशत रूटों पर बसों का संचालन प्रारंभ कर दिया गया था परंतु यात्री भार 20 से लेकर 25% तक भी नहीं पहुंच पाया. सरकार ने सोशल डिस्टेंसिंग का मेंटेन करने के लिए बसों में पहले 30 सवारियों को ही बैठाने की छूट दी. लेकिन फिर भी 50 प्रतिशत यात्री भार भी रोडवेज बसों को नहीं मिला.

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नियमित खर्चों के साथ अन्य खर्चों में बढ़ोतरी

कोरोना का रोडवेज बसों पर असर इस तरह से समझा जा सकता है कि इस दौरान यात्री भार एक तिहाई भी नहीं रहा तो कोविड-19 की गाइड लाइन का खर्चा भी रोडवेज के माथे पड़ गया. नफे की बात तो दूर रोडवेज के चक्के घाटे में घूम रहे हैं. बस स्टैंड और बसों में सैनिटाइजेशन की व्यवस्था की चलते अतिरिक्त खर्चों का बोझ भी रोडवेज के घाटे को बढ़ा रहा है. आने वाले दिनों में रोडवेज को घाटे से उबरने की उम्मीद है. सरकार धीरे-धीरे बंदिशों को कम कर रही है. धार्मिक स्थल भी खोल दिए गए हैं. ऐसे में उम्मीद की ही की जा सकती है कि गरीबों और मध्यम वर्ग की सवारी रोडवेज बसें एक बार फिर से अपनी पूरी ताकत के साथ सड़कों पर दौड़ती नजर आएंगी.

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